दक्षिण या बॉलीवुड में नंबर 1 कौन? Attack से पहले जॉन अब्राहम से गुस्सा क्यों जता रहे हैं लोग?
जॉन अब्राहम के एक बयान को लेकर तेलुगुभाषियों ने गुस्सा जताया है. लोगों का आरोप है कि साउथ सिनेमा में क्षेत्रीयता की दीवार को ढहाना चाहता है मगर बॉलीवुड ऐसी कोशिश नहीं करना चाहता. यही फर्क है साउथ और बॉलीवुड के बीच का.
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दक्षिणभाषी सिनेमा और बॉलीवुड में सबसे बेहतर कौन है. यह सवाल दक्षिण की पैन इंडिया फिल्मों की कारोबारी सफकता के बाद ज्वलंत हो जाता है. फिलहाल पुष्पा द राइज के बाद आरआरआर की कामयाबी ने प्रतिस्पर्धा और बहस को एक नई वजह दे दी है. जॉन अब्राहम बहस की एक कड़ी बनते दिख रहे हैं. असल में बॉलीवुड के इतिहास में पहली सुपरसोल्जर फिल्म अटैक पार्ट 1 रिलीज हुई है. यह मसालेदार एक्शन से भरपूर फिल्म है. जॉन ने फिल्म का खूब प्रमोशन भी किया. लेकिन इसी दौरान उनका एक बयान बॉलीवुड और दक्षिण के सिनेमा के बीच अब तक छिपी नजर आ रही प्रतिस्पर्धा को सरेआम करता दिख रहा है. इसका असर यह है कि सोशल मीडिया पर तेलुगु भाषी जॉन अब्राहम को निशाना बना रहे हैं. मजेदार यह भी है कि उन्हें हिंदी भाषी समूह का भी समर्थन मिल रहा है.
असल में पिछले दिनों इस तरह की खबरें लगातार आईं कि 'बाहुबली' फेम प्रभास के साथ जॉन अब्राहम तेलुगु की 'सालार' करने जा रहे हैं. सालार साउथ की उन फिल्मों में से है जिसे पैन इंडिया बनाने और रिलीज करने की तैयारी है. अटैक के प्रमोशन के दौरान एक इंटरव्यू में जॉन से सालार को लेकर सवाल पूछा गया था जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि वे कभी भी क्षेत्रीय सिनेमा का हिस्सा बनना नहीं पसंद करेंगे. खुद को हिंदी फिल्मों का हीरो बताते हुए जॉन अब्राहम ने कहा था- "मैं सिर्फ एक फिल्म का हिस्सा बनने भर के लिए कभी सेकंड लीड रोल नहीं करूंगा. सिर्फ बिजनेस में बने रहने भर के लिए अन्य एक्टर्स की तरह क्षेत्रीय फिल्मों का हिस्सा कभी नहीं बनूंगा."
अटैक में जॉन अब्राहम सुपर सोल्जर के किरदार में हैं.
अब जॉन के इसी बयान को तेलुगु भाषी अपना सिनेमाई अपमान समझ रहे और तमाम तुलनाओं में साबित करने की कोशिश कर रहे कि जिस तेलुगु इंडस्ट्री को जॉन अब्राहम ने क्षेत्रीय सिनेमा कहा- असल में वह कितना व्यापक ताकतवर है. पिछले 24 घंटों के दौरान सोशल मीडिया पर जॉन की खिलाफत करने वाले ढेरों ट्वीट हैं. इसमें हिंदी भाषी भी शामिल हैं जो लगातार बॉलीवुड को लेकर नाराज़गी का प्रदर्शन करते रहते हैं. ट्विटर पर एक यूजर ने जॉन की पिछली 12 फिल्मों का बॉक्स कलेक्शन जोड़ते हुए दावा किया कि एक्टर की आख़िरी 12 फिल्मों ने करीब 620 करोड़ के आसपास बिजनेस किया.
क्या साउथ सिनेमा की भाषाई खाई को मिटाने की कोशिश कर रहा जिसके आड़े आ रहा बॉलीवुड
यूजर ने लिखा- "वे (जॉन) कहते हैं कि मैं बॉलीवुड हीरो हूं और तेलुगु फ़िल्में नहीं करना चाहता. RRR के 6 दिन का कलेक्शन 670 करोड़ रुपये है. RRR के 6 दिन जॉन अब्राहम के आख़िरी 10 साल के बराबर हैं." इसी प्लेटफॉर्म पर एक अन्य यूजर ने गुस्सा जताते हुए लिखा- "तेलुगु इंडस्ट्री के टियर 2 अभिनेताओं की ग्रॉसिंग जॉन अब्राहम से ज्यादा है. सिर्फ सूचना भर के लिए." एक और यूजर ने अटैक और RRR के प्रीसेल्स का आंकड़ा साझा करते हुए लिखा- "जॉन अब्राहम की अटैक रिलिजन हो रही है और इसके पहले दिन का प्रीसेल्स 77 लाख है. जबकि आठवें दिन RRR का प्रीसेल्स 2 करोड़ से ज्यादा है."
एक यूजर ने तो यह तक लिख दिया कि- "साउथ के अभिनेता और निर्देशक सिनेमा को उसके क्षेत्रीय दायरे से निकालकर उसे भारत बड़ी सिनेमा इंडस्ट्री के रूप में स्थापित करना चाहते हैं. लेकिन यह जॉन अब्राहम खुद को 'हिंदी हीरो' बुला रहे हैं. बॉलीवुड और दक्षिण की इंडस्ट्री में यही बड़ा अंतर है. वो खुद को एक हीरो के रूप में ले रहे हैं, एक्टर के रूप में नहीं." एक ने जॉन अब्राहम का मजाक उड़ाते हुए कहा- "आखिर आपको तेलुगु फिल्म करने को किसने कहा. तेलुगु ऑडियंस सिनेमा की बहुत शौक़ीन है. और वे किसी भी फिल्म से प्यार करते हैं और किसी भी फिल्म उद्योग का भरपूर सम्मान करते हैं जो कि वास्तव में उनकी संस्कृति और सिनेमा के प्रति सम्मान को भी दर्शाता है."
अटैक पार्ट 1
अच्छे सिनेमा को आंकने का पैमाना सिर्फ उसका कारोबार नहीं हो सकता
पिछले दिनों सलमान खान ने भी दक्षिण की फिल्मों का शेष भारत में जबरदस्त कारोबार को लेकर हैरानी जताई थी और सवाल किया था कि आखिर बॉलीवुड की फ़िल्में वहां ,क्यों नहीं चलती हैं. कुल मिलाकर जॉन अब्राहम के खिलाफ निकली प्रतिक्रियाओं से यह समझना मुश्किल नहीं कि तमाम तेलुगु भाषियों ने एक्टर की टिप्पणी को किस रूप में लिया. हालांकि यह बिल्कुल नहीं माना जा सकता कि जिस तरह की प्रतिक्रियाए दिख रही हैं जॉन के बयान का मकसद वैसा ही रहा हो.
हर फिल्म इंडस्ट्री का अपना बिजनेस सिस्टम होता है. साउथ के सिनेमा कारोबार और उनके कंटेट तुलनात्मक रूप से शेष भारत से अलग नजर आते हैं. कौन बड़ा है और कौन श्रेष्ठ है- स्वाभाविक रूप से उसके पैमाने अलग-अलग हैं. बॉक्स ऑफिस, स्टोरी, स्क्रीन प्ले, कंटेंट, स्टार पावर, आदि ढेर सारे पैमाने हो सकते हैं जिसके आधार पर किसी को बड़ा या छोटा तो करार दिया जा सकता है. मगर असल में ऐसा हो ही यह दावा नहीं किया जा सकता. कई बेहतरीन फिल्मों का बॉक्स ऑफिस बहुत खराब रहा है.
हाल के पांच दस सालों में बहुत सारी फ़िल्में आई हैं जिनकी लोगों को जानकारी तक नहीं हुई. जाहिर सी बात है कि फ़िल्में कायदे से सिनेमाघरों तक भी नहीं पहुंच पाई होंगी. इस पहलू से सबसे बड़ी बात यह है कि सिनेमा की कसौटी पर तमाम फ़िल्में जबरदस्त हैं. अब इन फिल्मों को सिर्फ उनके बॉक्स ऑफिस पैमाने से आंकना जायज नहीं है. जॉन अब्राहम खुद साउथ से ही आते हैं. हालांकि उन्होंने हिंदी इंडस्ट्री में करियर बनाने की कोशिश की.
किसी रोल को छोटा या बड़ा के रूप में देखना जॉन अब्राहम की गलती है
वैसे जॉन अब्राहम का यह कहना कि वे क्षेत्रीय सिनेमा सिर्फ इस वजह से नहीं करेंगे कि उन्हें सेकंड रोल मिल रहा है- एक जिम्मेदार अभिनेता के नाते बिल्कुल गलत हैं. बिजनेस को लेकर उनका अपना दर्शक हो सकता है मगर एक एक्टर के लिए रोल का छोटा या बड़ा होना कभी आदर्श दर्शन नहीं हो सकता. असल में जॉन 'स्टारपावर' यानी स्टारडम की बात कर रहे हैं. जो समय के साथ अब कमजोर पड़ गया है. बेहतर कंटेंट के दौर में आख़िरी सांसे गिन रहा है. क्योंकि अब सिनेमा बनाना किसी का विशेषाधिकार नहीं रह गया. सिनेमा मेकिंग सामूहिक प्रयास का प्रतिफल है. जहां सामूहिक प्रयास हैं वहां स्टारडम के मायने नहीं रह जाते. अब कोई भी अच्छा सिनेमा बना सकता है. और उसे बेच भी सकता है.
जॉन अब्राहम को नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी और संजय मिश्रा के करियर को उदाहरण के रूप में देखना चाहिए- ये एक्टर्स जितनी मजबूती से सहयोगी कलाकार के रूप में नजर आते हैं उतना ही सशक्त प्रभाव मुख्य भूमिकाओं में भी छोड़ने में कामयाब रहे हैं. दर्जनों फिल्मों का उदाहरण गिनाया जा सकता है.
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