New

होम -> सिनेमा

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 14 जून, 2022 01:42 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
  • Total Shares

सफलता और असफलता एक सिक्के के दो पहलू हैं. इंसान की कोशिश, परिश्रम और मेहनत पर निर्भर करता है कि वो कितना सफल और कितना असफल हो सकता है. काम के प्रति लगन और सकारात्मक दृष्टिकोण विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान को सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में मदद कर सकता है. लेकिन जरूरी ये है कि असफलता से सबक लेकर सफलता के लिए ईमानदारी से प्रयास किया जाए. लेकिन कुछ लोग सबक लिए बिना ही कोशिश करते रहते हैं और हर बार मुंह की खाते हैं. इस वक्त बॉलीवुड का भी कुछ ऐसा ही हाल है. लगातार कोशिशों के बावजूद साउथ सिनेमा के सामने उसकी एक नहीं चल रही है. एक से बढ़कर एक बड़े बजट की फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरती जा रही हैं. फ्लॉप होना तो छोड़िए डिजास्टर साबित हो रही हैं. इस फेहरिस्त में अक्षय कुमार और कंगना रनौत जैसे सुपरस्टार्स की फिल्में भी शामिल हैं.

कंगना रनौत की फिल्म 'धाकड़' के डिजास्टर साबित होने के बाद अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर की फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई है. 300 करोड़ के मेगा बजट में बनी यह फिल्म पहले हफ्ते में सिर्फ 55 करोड़ ही कमाई कर पाई है. फिल्म का कलेक्शन लगातार घटता जा रहा है. आलम ये है कि रिलीज के आठवें दिन फिल्म की कमाई 1.66 करोड़ रुपए ही हुई है. इससे पहले यही हाल 'धाकड़' का हुआ था. 100 करोड़ रुपए में बनी ये फिल्म महज 5 करोड़ रुपए ही कमा पाई है. यदि 'द कश्मीर फाइल्स' और 'भूल भुलैया 2' जैसी बॉलीवुड की कुछ फिल्मों को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट रही हैं. साउथ मार्केट में तो छोड़िए अपने परंपरागत हिंदी मार्केट में भी नहीं चल पा रही हैं. इसके पीछे क्या वजह हो सकती है, बॉलीवुड के सभी फिल्म मेकर्स और कथित सितारों को मंथन करना चाहिए.

prithaviraj-650_061222102810.jpg

फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' और 'धाकड़' की असफलता से बॉलीवुड को क्या सबक लेनी चाहिए...

- बॉलीवुड को आत्ममंथन करने की जरूरत है

भारतीय सिनेमा ने आज रचनात्मकता में एकजुट होने के लिए भाषा की बाधाओं को पार कर लिया है. मनोरंजन उद्योग के लिए यह एक बड़ा और सुखद क्षण माना जा सकता है. इसके साथ ही यह हमारे सुपरस्टार और सुपर फिल्म मेकर्स के लिए भी अपनी कला को फिर से परिभाषित करने का अहम वक्त है. पिछले कुछ समय में मनोरंजन जगत में तेजी से बदलाव हुआ है. इसके साथ ही व्यवसाय भी परिवर्तन आया है. अब तक हम बदलते ट्रेंड के बारे में बात करते आए हैं. लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपना नजरिया बदलें. हमारे खान बंधुओं और कपूर खानदान के चिरागों को अपनी छवि या व्यक्तित्व को फिर से परिभाषित करना होगा या फिर उन्हें उस संभावना के लिए तैयार रहना होगा कि आने वाले वक्त में वे साउथ सिनेमा के सितारों से पीछे रह जाएं. इस वक्त बॉक्स ऑफिस पर साउथ सिनेमा के सामने बॉलीवुड का जो हाल है, उसे देखकर तो यही लगता है कि वक्त रहते चेत जाने की जरूरत है. साउथ सिनेमा की इस सुनामी में अक्षय कुमार और कंगना रनौत जैसे राष्ट्रवादी अभिनेता जब बह गए तो खान बंधुओं की क्या विसाद है.

- सोच, समर्पण और नजरिया जरूरी है

बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स को 'बाहुबली' के निर्देशक एसएस राजामौली, 'केजीएफ' के निर्देशक प्रशांत नील और हॉलीवुड फिल्म 'अवतार' के निर्देशक जेम्स कैमरून से बहुत कुछ सीखना चाहिए. इन तीनों दिग्गज फिल्म मेकर्स ने अपनी-अपनी फिल्मों के जरिए सिनेमा के इतिहास में नए अध्याय जोड़े हैं. उनकी फिल्मों की सफलता शोध का विषय बन चुकी हैं. यह सबकुछ उनकी सोच, समर्पण और नजरिए की वजह से संभव हो पाया है. एसएस राजामौली को 'बाहुबली' फिल्म बनाने में सात साल से अधिक समय लगा. उसके तीन साल पहले से वो अकेले ही इस फिल्म की कहानी पर काम कर रहे थे. कहानी के मूर्त रूप लेने के बाद उन्होंने सबसे पहले एक बड़े सेट का निर्माण कराया. वहां एक नया नगर बसाया. उसके बाद पांच साल लगातार शूटिंग होती रही. इस दौरान फिल्म के स्टारकास्ट को किसी भी दूसरे प्रोजेक्ट पर काम करने की मनाही थी.

राजामौली की तरह प्रशांत नील भी बहुत रचनात्मक व्यक्ति हैं. उन्होंने अभी तक महज तीन फिल्में ही बनाई हैं, लेकिन तीनों ब्लॉकबस्टर रही हैं. इनमें केजीएफ के दोनों पार्ट्स शामिल हैं. उसी तरह हॉलीवुड फिल्म 'अवतार' के बारे में हर सिनेप्रेमी जानता है. इस फिल्म के निर्देशक जेम्स कैमरून ने इसका दूसरा पार्ट बनाने में 10 साल लगा दिए. इसके पीछे की वजह यही रही कि अंडर वॉटर शूट की जिस तकनीक को वो चाहते थे, वो बहुत समय बाद उनको मिली. इसके विपरीत 'सम्राट पृथ्वीराज' जैसी बॉलीवुड फिल्म को महज 42 दिन में शूट कर दिया गया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिल्म बनाने वाले को फिल्म से ज्यादा अपने समय और पैसे की चिंता रही होगी. अभी भी वक्त है, बॉलीवुड को सबक लेकर अपने अंदर त्वरित सुधार करना चाहिए. वरना वो दिन दूर नहीं होगा जब बॉलीवुड का अस्तित्व भी खतरे में नजर आने लगेगा.

- फिल्में केवल बड़े बजट से नहीं बनती हैं

साउथ सिनेमा की फिल्मों की सफलता को देखकर बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स को लगता है कि फिल्मों का बजट बढ़ाकर इसे भव्य बनाया जा सकता है. माना कि साउथ की कई फिल्में बहुत बड़े बजट में बनी हैं. जैसे कि 'बाहुबली 2' 250 करोड़ रुपए, 'आरआरआर' 550 करोड़ रुपए, 'राधे श्याम' 300 करोड़ रुपए में बनी है. इन फिल्मों में 'बाहुबली' और 'आरआरआर' की कमाई और लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं है. शायद इसे देखकर ही यशराज फिल्म्स ने 'सम्राट पृथ्वीराज' पर 300 करोड़ रुपए खर्च डाले. 'धाकड़' पर 100 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए. लेकिन इतना पैसा कहां लगाया गया, इसके बारे में न तो किसी ने पूछा और न ही किसी ने बताया.

राजामौली अपनी फिल्मों पर पैसा लगाकर उसे भव्य बनाते हैं. उसके लिए विशाल सेट का निर्माण करते हैं. दुनिया की अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन 'सम्राट पृथ्वीराज' में एक भी ऐसा सीन नहीं है, जिसे देखने के बाद लोगों ने दांते तले उंगलियां दबाई हो या उस सीन की चर्चा हुई हो. हर सीन जेनेरिक लगता है. इसमें तकनीक का स्तर भी ऊंचा नहीं है. 'बाहुबली' और 'आरआरआर' जैसी फिल्में तब ही बन पाती हैं, जब कोई फिल्म मेकर अपनी सोच दूसरों से अलग रखता है. लीक से हटकर सोचने वाला ही अलग तरह के सिनेमा का निर्माण कर सकता है.

- बॉलीवुड को वक्त के साथ बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए

वक्त के साथ जो अपने अंदर बदलाव नहीं करता है, वो पीछे रह जाता है. इनदिनों बॉलीवुड के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. घिसे-पिटे और फिक्स्ड फॉर्मूले पर फिल्में बनाने वाले बॉलीवुड को अब समझ में आ जाना चाहिए कि वक्त के साथ दर्शकों की डिमांड बदल चुकी है. अब लोग परोसी हुई फिल्में मजबूरी में नहीं देख रहे हैं. उनके सामने एक से बढ़कर एक विकल्प मौजूद हैं. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और साउथ सिनेमा के साथ हॉलीवुड भी अच्छी फिल्मों के साथ लगातार अपनी हाजिरी देता रहा है. ऐसे में बॉलीवुड को रीमेक, बॉयोपिक और हॉलीवुड से चोरी की गई कहानी पर फिल्में बनाने की बजाए फ्रेश कंटेंट पर काम करना चाहिए. नई कहानियां लाना चाहिए. दुनिया में बेहतरीन तकनीक के साथ फिल्मों को शूट किया जा रहा है. एडिट किया जा रहा है. ऐसी तकनीक का इस्तेमाल बॉलीवुड को भी करना चाहिए. फिल्म मेकर्स को अपनी सोच और नजरिए में बदलाव लाना चाहिए. आखिर करण जौहर और आदित्य चोपड़ा जैसे मठाधीश कब तक नेपोटिज्म के सहारे अपनी दाल गलाते रहेंगे. नए और टैलेंटेड कलाकारों को मौका दिया जाना चाहिए. तब जाकर बॉलीवुड आगे बढेगा.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय