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Updated: 04 फरवरी, 2022 08:09 PM
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ऐसा नहीं है कि पुष्पा: द राइज से पहले हिंदी दर्शकों के लिए अल्लू अर्जुन बिल्कुल अंजाना चेहरा ही थे. तेलुगु स्टार को चाहने वाले हिंदी दर्शकों की कमी नहीं. टीवी पर उनकी डब फिल्मों की लोकप्रियता इसका उदाहरण है. मगर यह पहली बार है जब एक्शन एंटरटेनर पुष्पा के जरिए अल्लू हिंदी रीजन में सीधे दर्शकों के पास पहुंचे और उन्हें हाथोंहाथ लिया गया. वह भी तब जब पुष्पा का बहुत प्रमोशन नहीं किया गया था और बॉक्स ऑफिस पर उनके मुकाबले में दो बड़ी फ़िल्में- हॉलीवुड की स्पाइडरमैन नो वे होम और बॉलीवुड की स्पोर्ट्स ड्रामा 83 थीं. पुष्पा के हिंदी वर्जन की हैरान करने वाली कामयाबी के बाद अब हर तरफ अल्लू की चर्चा हो रही है और इसी के साथ एक्टर के व्यक्तित्व के तमाम पहलू भी सामने आ रहे और उनपर बात भी हो रही.

इंटरनेट पर मौजूद उनके इंटरव्यूज देखे जा रहे हैं. लोग उनके व्यक्तित्व की तारीफें कर रहे. यहां तक कि उनके गेश्चर की तुलना बॉलीवुड के स्टार्स से भी की जा रही और लोग खुले दिल से मान रहे कि अल्लू मुंबइया सितारों की तुलना में बहुत हंबल और पारंपरिक नजर आते हैं. वैसे बॉलीवुड के बड़े सितारों और अल्लू के तमाम प्रमोशनल इंटरव्यूज को देखें तो यह फर्क साफ़तौर पर दिखता है. परदे पर अल्लू कैसे भी दिखते हों, मगर सार्वजनिक मौकों पर उनकी पब्लिक अपीयरेंस में तेलुगु के साथ देश का एक बड़ा सेलिब्रिटी चेहरा होने के बावजूद काफी नर्म, शालीन, सांस्कृतिक और पारंपरिक नजर आते हैं.

बॉलीवुड में अब नहीं दिखता यह लोक व्यवहार

गोल्डमाइंस के यूट्यूब चैनल पर अल्लू का एक ऐसा ही प्रमोशनल वीडियो मौजूद है जिसमें एक्टर के बारे में बताई बातों को देखा जा सकता है. यह वीडियो पुष्पा द राइज (हिंदी) के प्रमोशनल इवेंट का है. यह इवेंट फिल्म की रिलीज से पहले मुंबई में हुआ था. इसमें अल्लू और रश्मिका मंदाना प्रमुख रूप से मौजूद हैं. अल्लू को जब स्टेज पर बुलाया जाता है- वे सीढ़ियां चढ़ने से पहले हाथ से मंच को छूकर प्रणाम करते हैं. स्टेज पर भी उनका व्यवहार आम लोगों की तरह नजर आता है. तीन चार दशक पहले मंचों पर कई बॉलीवुड सितारों का भी कुछ ऐसा ही पारंपरिक रूप नजर आता है. रेखा की पीढ़ी के तमाम अभिनेताओं को मंचों पर बहुत शालीन देखा गया है.

Allu Arjun namasteअल्लू अर्जुन

अल्लू जैसा सेलिब्रिटी ऐसा व्यवहार करे तो हिंदी दर्शकों को हैरानी होगी

पुष्पा के प्रमोशनल इवेंट में एक और चीज गौर करने लायक है. बातचीत के दौरान उनके बगल बैठी रश्मिका को वे बार-बार हाथ झुकाकर प्रणाम करते दिखते हैं. यह नजारा भारतीय लोक व्यवहार में आम है. दरअसल, यह उस पारंपरिक प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें गलती से किसी को असम्मानजनक तरीके से छू लेने के बाद लोग उन्हें प्रणाम करके प्रतीकात्मक रूप से क्षमा या खेद जताते हैं. भारत के ग्रामीण जीवन में अब भी ऐसे नज़ारे देखने को मिल जाते हैं. लेकिन ग्लैमर की रोशनी से चाकचौंध फ़िल्मी दुनिया में ऐसा देखना वाकई हैरान करने वाला अनुभव है. इस इंटरव्यू के अलावा अल्लू के दूसरे इंटरव्यूज में भी ऐसा ही कुछ नजर आता है. वे बहुत शालीन नजर आते हैं. प्रश्नों का जवाब देते हुए उनकी मौजूदगी गरिमामयी दिखती है.

वैसे अल्लू अर्जुन ही नहीं साउथ के दूसरे स्टार सितारों का भी सार्वजनिक जीवन ऐसा ही नजर आता है. वो चाहे जयभीम फेम सुरिया हों, धनुष हों, विजय हों, प्रभास हों, जूनियर एनटीआर या कोई और युवा अभिनेता. बॉलीवुड सितारों की तुलना में सार्वजनिक मौकों पर दक्षिण के सितारों को देखकर लगता ही नहीं कि वे फिल्म उद्योग के दिग्गज अभिनेता हैं. कमल हासन, रजनीकांत, ममूटी, चिरंजीवी और मोहनलाल जैसे दिग्गज भी फ़िल्मी परदे से बाहर बहुत ही शालीन और साधारण नजर आते हैं. उनकी तुलना में बॉलीवुड सितारों को देखें, खासकर 90 के बाद की पीढ़ी को तो ज्यादातर मंचों पर 'हुल्लड़बाज' नजर आते हैं- बेमतलब, द्विअर्थी बातें करते हुए. खूब हंसते और चीखते-चिल्लाते हुए. जैसे वे अपनी हरकतों से लोगों का ध्यान खींचना चाहते हों.

नीचे प्रमोशनल इवेंट का वीडियो देख सकते हैं:-

उत्तर में जो चीज मजाक का विषय वहां सिर माथे रखते हैं

बॉलीवुड सितारों की तुलना में दक्षिण के सितारों के इस रूप-रंग को लेकर मानना है कि ऐसा उनके सांस्कृतिक परिवेश की तरह है. वहां भले ही आधुनिकता है लकिन कलाकारों पर उनके परिवेश का सांस्कृतिक असर मौजूद रहता है. आम दर्शकों में उनकी छवि भी भगवान की तरह होती है और वे सार्वजनिक मौकों पर भी सहज साधारण रूप से उस जिम्मेदारी का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं. हो सकता है कि दक्षिण के सितारों का इसी आम व्यवहार की वजह से उन्हें वहां बहुत ख़ास माना जाता है.

कई लोगों का मानना है कि सांस्कृतिक असर की वजह से ही अन्य क्षेत्रों की तुलना में आधुनिकता ने दक्षिण में गैरजरूरी मसलन सांस्कृतिक और पारंपरिक पहलुओं पर असर नहीं डाला है. यही वजह है कि वहां लुंगी पहनना पिछड़ेपन की निशानी नहीं माने एजाती. तिलक उनकी संस्कृति का हिस्सा है जिसे धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाता. दक्षिण में हिंदुओं के अलावा इसाई और कुछ अन्य धार्मिक जातीय समूह भी माथे पर तिलक लगाए बहुतायत दिख जाते हैं. जबकि कुछ साल पहले कुर्ता पहनना भी उत्तर के क्षेत्रों में पिछड़ा होने का प्रतीक मान लिया जाता था. बॉलीवुड फिल्मों ने भी पारंपरिक प्रतीकों का खूब मजाक उड़ाया है. कॉमेडी सीन्स में गंवार दिखाए जाने वाले किरदारों की भाषा और उनका पहनावा देख लीजिए.

दक्षिण की परंपरा और संस्कृति अभी भी उनके खानपान-पहनावे, बोलचाल और लोक व्यवहार में देश के दूसरे हिस्सों से ज्यादा प्रभावी नजर आता है और इसे जताने में वे संकोच नहीं करते.

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