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Updated: 07 मार्च, 2021 09:23 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत के बाद 'मणिकर्णिका' एक्ट्रेस कंगना रनौत सबसे ज्यादा मुखर रही हैं. वह लगातार सोशल मीडिया पर दिवंगत अभिनेता को न्याय दिलाने के लिए अपील करती रही हैं. इसके साथ ही कई फिल्मी सितारों और राजनीतिक हस्तियों पर निशाना भी साधती रही हैं. महाराष्ट्र सरकार से उनकी अदावत किसी से छिपी नहीं है. सुशांत केस में कंगना ने जिस तरह से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को घेरा, उसके बाद शिवसेना से उनकी ठन गई. एक्ट्रेस द्वारा छेड़ी गई इंसाफ की लड़ाई जल्द ही सियासी रंग में रंग गई. इसका कंगना को राजनीतिक फायदा तो हुआ, लेकिन उनकी सिनेमाई छवि को बहुत नुकसान हुआ. इसमें उनके वित्तीय नुकसान को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है.

किसी भी लड़ाई में उद्देश्य और विजेता, इन दो पक्षों की तलाश करना शिक्षाप्रद होता है. सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत का लगातार राजनीतिकरण करने की कोशिश की गई. महाराष्ट्र मुख्यमंत्री के बेटे आदित्य ठाकरे के खिलाफ अभियान चलाकर सुशांत की मौत से कनेक्शन जोड़ने की भरसक कोशिश की गई. इस अभियान का नेतृत्व कंगना रनौत और एक वरिष्ठ पत्रकार ने किया था. दोनों लंबे समय से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक रहे हैं. इसलिए उनकी हर बात में इसका असर भी दिखता है. जब से शिवसेना ने बीजेपी से अलग होकर कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र सरकार बनाई है, दोनों के बीच राजनीतिक दुश्मनी परवान पर है. सुशांत की मौत के बाद सियासी दुश्मनी का रंग और भी गाढ़ा हो गया. दोनों ने जमकर राजनीतिक खेल खेला.

sushant-650_030621035635.jpgसुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत के बाद कंगना रनौत सबसे ज्यादा मुखर रही हैं.

बीजेपी और शिवसेना की सियासी लड़ाई में कई लोग मोहरे बने, इसमें कंगना का नाम भी शामिल है. हालांकि, एक्ट्रेस इसे इंसाफ की जंग बताती हैं. उनका कहना है कि 'ड्रग्स और मूवी माफिया रैकेट' द्वारा सुशांत की 'हत्या' की गई थी. वैसे राजनीतिक दृष्टिकोण को छोड़ दिया जाए, तो यह बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत और शिवसेना के बीच एक तर्कहीन लड़ाई दिखती है. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर छींटाकशी, अभद्रता, अपमानजनक और धमकी भरी भाषा का जमकर उपयोग किया. जो एक सेल्फ मेड फिल्म स्टार और महाराष्ट्र सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी, दोनों के लिए ही अशोभनीय था. इससे जनता को सिर्फ एक मुद्दा, मनोरंजन और प्राइमटाइम पर व्यर्थ की बहसें देखने को मिलीं. रनौत ने एक चाल चली, शिवसेना ने पलटवार किया. लड़ाई हर दिन बढ़ी.

कंगना रनौत की 'पॉलिटिकल पॉपुलैरिटी'

अब सवाल ये उठता है कि इस जंग से कंगना को फायदा हुआ या नुकसान? आखिर वो क्यों लगातार खुद को विवादों में बनाए रखना चाहती हैं? वैसे कंगना को विवादों का तंदूर भड़काए रखना बहुत पसंद है. उनकी हरकतों को देखकर ऐसा लगता है कि अमन उन्हें विचलित करता है और वह विवाद के लिए बेकरार रहती हैं. कुछ लोगों के लिए तनाव की दशा विटामिन की तरह साबित होती है. विवाद उनके लिए सुबह-शाम की खुराक बन जाती है. उनके लिए फायदे का सौदा बन जाती है. सुशांत केस से उपजे विवाद के बाद कंगना की 'पॉलिटिकल पॉपुलैरिटी' जबरदस्त बढ़ी है. फिल्म 'मणिकर्णिका' में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका निभाने वाली इस एक्ट्रेस को एक 'विचार विशेष' के लोग खूब पसंद करने लगे हैं. केंद्र सरकार की चहेती हो गई हैं.

यही वजह है कि जब महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार से कंगना की लड़ाई चरम पर पहुंची, एक्ट्रेस के ऑफिस पर बीएमसी ने बुलडोजर चलाया तो, पूरे देश में उनकी सिक्योरिटी की चिंता जाहिर की गई. इसके बाद भारत के गृह मंत्रालय ने तत्काल कंगना रनौत को Y+ कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करवा दी. अब सीआरपीएफ के 11 जवान एक्ट्रेस के आसपास हमेशा तैनात रहते हैं. भारी-भरकम सुरक्षा के बीच उनका जलवा देखते ही बनता है. अब कंगना रनौत खुद एक मुद्दा बन गई हैं. एक ऐसी लड़ाई में शामिल हो चुकी हैं, जो उनकी नहीं थी. उन्होंने सुशांत केस को अपनी व्यक्तिगत लड़ाई में बदल दिया और व्यक्तिगत बहुत तेजी से राजनीतिक में बदल गया. जब बात राजनीति की आती है, तो लड़ाई लंबी हो जाती है. सियासी अदावत सनसनीखेज हो जाती है.

कंगना रनौत की फिल्मी पॉपुलैरिटी

फिल्म इंडस्ट्री की गोल खाने वाली चौपड़ में तिकोनी कंगना समा नहीं सकती, लेकिन अपनी शर्तों पर काम करने वाली ये एक्ट्रेस अपने पूरे सनकीपन के साथ मिट्टी पकड़ पहलवान की तरह फिल्मी दंगल में लंबे समय से टिकी हुई हैं. अपने संघर्ष के दिनों में वह मुंबई के फुटपाथ पर सोई हैं और आज मनाली में भव्य भवन की मालकिन हैं. बॉलीवुड में अभिनेता राजकुमार बहुत सनकी थे और किशोर कुमार ने सनक का मुखौटा धारण किया था, ताकि वह अजनबी लोगों से बच सकें. इस तरह सनकीपन में कंगना रनौत 'जानी' राजकुमार की तरह हैं. पर सवाल ये उठता है कि उनके सनकीपन की वजह से उनकी सिनेमाई छवि का नुकसान हुआ है या फायदा? यदि आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलेगा कि इससे कंगना का नुकसान ज्यादा हुआ है.

किसी फिल्मी कलाकार के लिए उसके फैंस और फॉलोअर्स ज्यादा मायने रखते हैं. अभिनय की तारीफ के साथ ही चाहने वालों की संख्या किसी अभिनेता या अभिनेत्री की सफलता का पैमाना मानी जाती है. कलाकार के अभिनय के कायल किसी भी दल या विचार के हो सकते हैं. लेकिन जब कलाकार खुद किसी 'विचार विशेष' का पोषक हो जाए, तो उसके चाहने वाले भी दलीय हो जाते हैं. ऐसा करके कलाकार खुद को एक सीमा में बांध लेता है. यही कंगना के साथ हुआ है. सुशांत केस से जुड़ी हुई उनकी लड़ाई राजनीतिक हो गई. उनके फॉलोअर्स बंटने और घटने शुरू हो गए. बकौल कंगना पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर करीब 5 लाख फॉलोअर्स कम हुए हैं. सोशल मीडिया पर उनकी छवि ख़राब करने की कोशिश हो रही है.

कंगना रनौत का वित्तीय नुकसान

सुशांत केस में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बेटे और सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे के खिलाफ बोलने की वजह से शिवसेना और कंगना के बीच पैदा हुई कड़वाहट व्यक्तिगत बदले में बदलते देर नहीं लगी. इसका सबसे पहला असर देखने को तब मिला जब बीएमसी ने कंगना रनौत के पाली हिल स्थित दफ्तर मणिकर्णिका पर बुलडोजर चला दिया. इस दौरान हुई तोड़फोड़ में करीब दो करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. इसके बाद हाल ही में शुरू हुए सरकार विरोधी किसान आंदोलन में भी कंगना जमकर बोलीं, उन्होंने आंदोलन कर रहे किसानों को आतंकी कह दिया. इसके बाद एक महीने के अंदर ही उनको 12-15 करोड़ रुपये का नुकसान हो गया. दरअसल वो जिन 6-7 ब्रांड्स का विज्ञापन कर रही थीं, उन्होंने कंगना से उसका अनुंबध खत्म कर लिया.

कंगना का कहना है, 'जबसे यह आंदोलन शुरू हुआ है, तभी से मैं कह रही हूं कि ये किसान नहीं हैं. यह एक साजिश है. उस टाइम मेरे पास 6-7 ब्रांड्स थे, 3-4 एंडोर्स भी कर रही थी. उन लोगों ने भी मुझे अल्टीमेटम भेजा कि आप किसानों को आतंकी मत कहिए. करीब 12-15 करोड़ रुपए के ब्रांड्स मैंने एक महीने के अंदर खो दिए. फिल्म इंडस्ट्री ने तो मुझे पहले से ही बायकॉट किया हुआ है. कम से कम 25-30 केस मेरे खिलाफ दर्ज हुए हैं. हर दिन मुझे समन आ रहा है.' वैसे हिमालय की वादियो के अंदर पहाड़ों में जन्मी कंगना रनौत पहाड़ों सी मजबूत महिला है. कंगना फिल्म अभिनय क्षेत्र से राजनीतिक दंगल में प्रवेश कर सकती हैं. यदि ऐसा हुआ तो ये चौंकाने वाला नहीं होगा, क्योंकि उनकी राजनीति पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार हो चुकी है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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