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Updated: 10 सितम्बर, 2022 04:08 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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लोकतंत्र में समर्थन और विरोध जरूरी माने जाते हैं. यदि कोई किसी मत, विचार या फैसले से सहमत नहीं है, तो वो उसका विरोध कर सकता है. वो उसका हक है. लेकिन विरोध की आग में इतना अंधा भी नहीं होना चाहिए कि सही और गलत के बीच फर्क दिखना बंद हो जाए. जैसे कि इस वक्त बॉलीवुड के साथ हो रहा है. करीब दो साल पहले शुरू हुआ बॉलीवुड बायकॉट मुहिम अब असर दिखाने लगा है. सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक बॉलीवुड फिल्मों का बड़े पैमाने पर बहिष्कार किया जा रहा है. इसकी शिकार कई बड़ी फिल्में पहले ही हो चुकी हैं. बड़े बजट और स्टारकास्ट की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर डिजास्टर साबित हो चुकी हैं. हालिया रिलीज फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' इस वक्त निशाने पर है.

फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' को रिलीज के बहुत पहले से ही टारगेट किया जा रहा है. गुनाह सिर्फ इतना है कि ये बॉलीवुड की फिल्म है, जिसे करण जौहर जैसे मठाधीश ने प्रोड्यूस किया है. लोगों का गुस्सा बॉलीवुड और करण जौहर के खिलाफ बहुत ज्यादा है. लोगों का हमेशा से मानना रहा है कि सिनेमाई अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बॉलीवुड में हिंदू धर्म की हमेशा नकारात्मक छवि पेश की गई है. इसमें धर्मा प्रोडक्शन और यश राज फिल्म्स जैसे बड़े बैनर की भूमिका बहुत ज्यादा रही है. इतना ही नहीं करण जौहर और आदित्य चोपड़ा जैसे फिल्म मेकर नेपोटिज्म के सबसे बड़े पोषक रहे हैं. ये लोग टैलेंट की जगह नेपो किड्स यानी बॉलीवुड के बड़े कलाकारों के बेटे-बेटियों को मौका देते रहे हैं.

brahmastra_650_090922110952.jpg'ब्रह्मास्त्र' का सपना अयान मुखर्जी ने देखा, जिसके लिए जीवन के 11 साल लगा दिए.

इन आरोपों में दम भी है. ऐसी गलत बातों का विरोध भी होना चाहिए. लोग कर भी रहे हैं. लेकिन विरोध का ये मतलब कत्तई नहीं है कि हम गलत के साथ अच्छी बातों का भी विरोध करने लगें. बिना सोचे-विचारों समझे किसी भी चीज को बुरा बोलने लगें. जैसा कि इस वक्त हो रहा है. माना कि पिछले कुछ समय से कई बकवास फिल्में बॉलीवुड ने बनाई हैं. लेकिन इसी बीच में 'द कश्मीर फाइल्स' और 'भूल भुलैया 2' जैसी बेहतरीन फिल्में भी रिलीज हुई हैं. इन फिल्मों ने दर्शकों मनोरंजन भी खूब किया है. इनका रिकॉर्डतोड़ कलेक्शन इस बात की गवाही देता है. लेकिन केवल करण जौहर और शाहरुख खान की वजह से 'ब्रह्मास्त्र' का विरोध समझ से परे है. लोगों की समझ पर सवाल खड़े करता है.

130 करोड़ की आबादी वाले भारत में महज 2-3 फीसदी लोग ही सिनेमाघरों में फिल्म देखते हैं. यदि एक फिल्म के टिकट की औसत लागत 100 रुपए भी मान ली जाए, तो 2 फीसदी का मूल्य 260 करोड़ रुपए होगा. यदि इतने लोगों ने फिल्म देख ली तो औसत बजट की कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट हो सकती है. सबसे क्लासिक उदाहरण आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' को लिया जा सकता है. हॉलीवुड फिल्म 'फॉरेस्ट गंप' की हिंदी रीमेक बॉक्स ऑफिस पर डिजास्टर रही है. इसे IMDb पर 5/10 रेटिंग के साथ करीब 1 लाख 61 हजार लोगों ने वोट किए हैं. यदि वोट और कलेक्शन का विश्लेषण किया जाए, तो समझ में आ जाएगा कि कितने लोगों ने बिना फिल्म देखे ही रेटिंग दी है.

सोशल मीडिया पर अधिकतर ऐसे लोग मौजूद हैं जो बिना फिल्म देखे तय कर ले रहे हैं कि अमुक फिल्म बहुत खराब है. अब तो लोगों के दबाव में आकर कई बड़े फिल्म क्रिटिक्स भी निगेटिव रिव्यू करने लगे हैं. उदाहरण के लिए फिल्म समीक्षक तरण आदर्श को ही ले लीजिए. उन्होंने फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' को निराशाजनक बताया है. ये वही फिल्म समीक्षक हैं, जो बॉलीवुड की कई खराब फिल्म को बेहतरीन बताकर 5 में से 3,4 स्टार दे चुके हैं. जबकि वो फिल्म दर्शकों को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई. किसी फिल्म को बहुत अच्छा कहने से बचने का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि आप उसे घटिया बता दें. वो भी 450 करोड़ बजट में 11 साल की मेहनत के बाद बनी फिल्म की समीक्षा एक शब्द में तो नहीं हो सकती.

माना कि बॉलीवुड में बहुत बड़े बदलाव की जरूरत है. इसके कंटेंट से लेकर क्रिएशन तक में बदलाव करना चाहिए. ऐसे में यदि कोई फिल्म मेकर लीक से अलग हटकर लोगों की इच्छा के अनुरूप फिल्म बनाने का काम कर रहा है, तो बायकॉट गैंग को ठहरकर उसका काम देखना चाहिए. इसके बाद ही उस पर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. इस वक्त अयान मुखर्जी ने भी एक सकारात्मक कोशिश की है. फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' के जरिए उन्होंने आधुनिक पृष्ठभूमि में हिंदू पौराणिका कथा को पेश किया है. इसमें उन पौराणिक अस्त्रों की कहानी है, जिसके बारे में हमारी नई पीढ़ी शायद ही जानती होगी. इस फिल्म के जरिए उनको हमारे गौरवशाली इतिहास के बारे में पता चलेगा. इसकी तारीफ होनी चाहिए.

बॉलीवुड बायकॉट मुहिम की वजह से बॉलीवुड को बहुत नुकसान हो चुका है. अरबों रुपए की चपत लग चुकी हैं. कई मेगा बजट फिल्में ठंडे बस्ते में डाल दी गई. कई फिल्मों की शूटिंग रोक दी गई है, तो कई का रिलीज डेट अब आगे बढ़ाने पर मेकर्स विचार करने लगे हैं. उनको लगता है कि बॉलीवुड फिल्मों की रिलीज के लिए ये सही वक्त नहीं है. यदि ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्म भी फ्लॉप हुई तो उनके विचार को बुरा नहीं कहा सकता. हालांकि, इस फिल्म के लीड एक्टर रणबीर कपूर फिल्म के कंटेंट को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ''यदि आप अच्छी फिल्म, अच्छा कंटेंट देते हैं, जिससे कि लोग एंटरटेन होते हैं, तो वो सिनेमाघरों तक फिल्म देखने जरूर जाते हैं.''

रणबीर कपूर कहते हैं, ''फिल्म के कंटेंट पर निर्भर करता है कि लोग फिल्म देखेंगे या फिर नहीं. यदि शमशेरा बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली, तो इसका मतलब है कि लोगों को ये पसंद नहीं आई. क्योंकि रिलीज से पहले फिल्म को लेकर मुझे कोई नेगेटिविटी नहीं नजर आई थी. इसके बावजूद शमशेरा बॉक्स-ऑफिस पर नहीं पसंद की गई. इसके साथ ही लोगों को इसका कंटेंट अच्छा नहीं लगा. अच्छे कंटेंट की वजह से लोग फिल्म देखते हैं. यदि फिल्म का कंटेंट अच्छा है, लोगों का मनोरंजन होता है, तो निश्चित तौर पर लोग फिल्म देखने के लिए जाएंगे. यदि आपकी फिल्म नहीं चलती है तो इसके पीछे सिर्फ एक कारण है कि फिल्म का कंटेंट अच्छा नहीं है. इसके अलावा दूसरा कारण नहीं समझ आता.''

बॉलीवुड बायकॉट गैंग फिल्मों के बहिष्कार के लिए हर बार नई-नई बातें सामने लाता है. इसके लिए हर फिल्म से जुड़े कलाकारों या मेकर्स से जुड़े पुराने बयान सामने लाए जाते हैं. उनको सोशल मीडिया पर शेयर करके फिल्म के प्रति नफरत फैलाने की कोशिश की जाती है. उदाहरण के लिए फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' को बायकॉट करने के लिए रणबीर कपूर का 11 साल पहले दिया गया एक बयान सामने लाया गया. इसमें रणबीर ने खुद को बिग बीफ बॉय कहा था. यानी बीफ खाने वाला. वहीं पहले ही नेपो किड होने पर सुर्खियों में रहने वालीं आलिया ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में अंहकारी अंदाज में ये कहा कि यदि लोग उन्हें पसंद नहीं करते तो न देखें. दोनों के बयान बायकॉट गैंग के हथियार बन चुके हैं.

इसका असर हाल ही में उज्जैन प्रमोशन के लिए पहुंचे रणबीर कपूर और आलिया भट्ट को देखने को मिला. जब उनको प्राचीन महाकाल मंदिर में घुसने से रोक दिया गया. उनके खिलाफ बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया. काले झंडे तक दिखाए. इस तरह से देखा जाए तो सोशल मीडिया पर शुरू हुई बहिष्कार की मुहिम अब सड़क तक पहुंच चुकी है. इस मुहिम की शिकार कई बड़ी फिल्में हो चुकी हैं. पिछले कुछ महीनों में अजय देवगन की फिल्म 'रनवे 34', शाहिद कपूर की 'जर्सी', टाइगर श्रॉफ की 'हीरोपंती 2', अक्षय कुमार की 'बच्चन पांडे' और 'सम्राट पृथ्वीराज', कंगना रनौत की 'धाकड़', रणवीर सिंह की 'जयेशभाई जोरदार' और रणबीर कपूर की 'शमशेरा' जैसी फिल्मों का बुरा हश्र बॉक्स ऑफिस पर देखा जा चुका है. आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' और अक्षय कुमार की 'रक्षा बंधन' से बहुत उम्मीदें थी, लेकिन ये फिल्में भी बहिष्कार का शिकार हो गईं.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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