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Updated: 26 नवम्बर, 2015 05:07 PM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
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पहले एक सुपरस्टार कहता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है. फिर दूसरा सुपरस्टार सीन में आता है और वह भी कुछ इसी तरह की बात करता है. एक आजाद देश, जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी है. वहां किसी को भी अपने विचार रखने की आजादी है. यह किसी की भी अपनी राय हो सकती है. हालात को लेकर किसी का भी अपना इंटप्रेटेशन हो सकता है. एक इनसान की अपनी निजी अनुभूति हो सकती है जो कुछ घटनाओं की वजह से बनी मानसिकता भी हो सकती है.

आमिर खान ने जो महसूस किया वह कहा. सबके सामने कहा. बेशक किसी की बात सभी को अच्छी नहीं लग सकती. फिर कोई कुछ बोले तो उस पर रिएक्ट करना हमारा भी अधिकार है. हमने रिएक्ट किया और बात खत्म हो जानी थी, जैसी किसी भी मैच्योर डेमोक्रेसी में ऐसा ही होता. कारणों को जाना जाता, पता किया जाता आखिर ऐसी बातें क्यों हो रही हैं. लेकिन हम रिएक्शन से आगे ओवररिएक्ट करने लगे. तो क्या हमने उनके संशयों को सही सिद्ध कर दिया?

यह कहना कि स्नैपडील से सामान खरीदना बंद कर दो क्योंकि उसके ब्रांड एंबेसेडर आमिर खान है. इसे लेकर मुहिम तक चल पड़ी है. यह कहना कि टाटा स्काइ कनेक्शन लेना बंद कर दो क्योंकि आमिर खान उसका विज्ञापन किया कर रहे हैं. नेताओं का बड़े-बड़े ब्यान देना. गृह मंत्री राजनाथ सिंह का आमिर खान पर चुटकी लेना, “अपमान और भेदभाव के बावजूद भी भीमराव आंबेडकर ने देश छोड़ने के बारे में नहीं सोचा था.” चुभता है. यही नहीं, कुछ लोगों ने उनके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है तो कुछ सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न मंचों पर उन्हें कोसने से बाज नहीं आ रहे हैं.

एक सितारे ने अपनी राय रखी, उस पर स्वस्थ बहस की बजाय उसके डर में इजाफा करने का काम किया. अब आमिर के घर की सिक्योरिटी बढ़ा दी गई है. इस पार्टी की सुपारी के बाद कई लोग उन्हें झापड़ मारने के लिए तैयार बैठे होंगे. कुल मिलाकर वे अपने एक चहेते, जिम्मेदार सितारे की बात को गंभीरता से लेने की बजाए अपनी जी-जान लगाकर उसकी आशंकाओ को सही करने में लग चुके हैं. खेल अभी और आगे जाएगा. ऐसे में शुजा खावर की यही बात ध्यान आती है, या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों/ या जिन्हें खामोश रहने की सजा मालूम है…

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लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

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