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Updated: 06 मई, 2017 06:47 PM
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18 साल की उम्र में लोग क्या करते हैं? टीनएज में अक्सर बच्चे या तो एक्जाम के प्रेशर में रहते हैं, दोस्तों के साथ मस्ती करते हैं, नाइट आउट का प्लान बनाते हैं, करियर को लेकर नए प्लान बनाए जाते हैं और अक्सर कल्पना की दुनिया में रहा जाता है. ये तो मेरा मानना है, लेकिन कई बच्चे कुछ ऐसा कर जाते हैं कि सबके लिए मिसाल बन जाते हैं.

स्मार्ट ब्रास्मार्ट ब्रा ईवा सेंसर के जरिए काम करेगी.

ऐसा ही कुछ किया है मेक्सिको के एक टीनएजर ने. 18 साल के जूलियन रिओस कैंटू ने ग्लोबल स्टूडेंट एन्टर्प्रिनियर अवॉर्ड जीता है. कारण ये कि जूलियन ने एक ऐसी ब्रा बनाई है जिसकी मदद से ब्रेस्ट कैंसर का पता शुरुआत में ही लगाया जा सकता है. इस ब्रा को हफ्ते में सिर्फ 1 घंटे पहनना होगा. इस स्मार्ट ब्रा का नाम ईवा रखा गया है.

क्यों किया ऐसा आविष्कार....

जूलियन जब 13 साल के थे तो उनकी मां को ब्रेस्ट कैंसर हो गया. एक चावल के दाने बराबर ट्यूमर 6 महीने में ही गोल्फ बॉल के साइज का हो गया और जूलियन की मां के दोनों ब्रेस्ट निकाल दिए गए. जूलियन की मां की जान जाते-जाते बची और इस कारण ही जूलियन को लगा कि उन्हें इस बीमारी के लिए करना चाहिए.

क्या करती है ये ब्रा...

जूलियन और उसके तीन दोस्तों द्वारा बनाई गई ये ब्रा सेंसर का इस्तेमाल करती है और इससे ब्रेस्ट का टेक्सचर, कलर और टेम्प्रेचर नापा जाता है. अगर कोई भी अनियमितता दिखती है तो इसके बारे में यूजर को अलर्ट कर दिया जाता है. ये स्मार्ट ब्रा स्मार्टफोन एप के जरिए यूजर को अलर्ट करती है. इस ब्रा में 200 सेंसर लगे हैं जो इस बीमारी का पता लगाने में असरदार होंगे.

जूलियन ने एक नई कंपनी हीजिया टेक्नोलॉजी (Higia Technologies) बनाई है जिसके वो खुद सीईओ हैं. जूलियन कहते हैं कि जहां ब्रेस्ट में ट्यूमर होता है वहां ज्यादा खून होता है, ज्यादा गर्मी होती है और स्किन बदलने लगती है. इन्हीं सब मापदंडों से ये स्मार्ट ब्रा ट्यूमर का पता लगती है.

फिलहाल इस ब्रा का सिर्फ प्रोटोटाइप ही सामने आया है. दो साल के अंदर असली प्रोडक्ट लोगों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा.

महिलाओं में होने वाला सबसे आम कैंसर है ब्रेस्ट कैंसर. इसके लिए जादरुकता फैलाने के अभियान भी चलाए जा रहे हैं, लेकिन ब्रेस्ट कैंसर के मरीज हर साल दुनिया भर में बढ़ते ही चले जा रहे हैं. अभी तक सिर्फ बायप्सी ही इस बीमारी का पता लगाने का साधन थी. इस प्रोसेस में टिशू का एक हिस्सा निकाला जाता है और चेक किया जाता है कि ये घातक है या नहीं. इसके पहले मरीज को मेमोग्राम, इमेज टेस्टिंग, फिजिकल एक्सामिनेशन और कई तरह के चेकअप से गुजरना होता है.   

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