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Updated: 08 अगस्त, 2016 05:15 PM
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'मैं पिछले दस साल से हिजाब पहन रही हूं. इसने कभी मुझे उन चीजों से दूर नहीं रखा जिसे मैं करना चाहती हूं. बीच वॉलीबॉल भी इन्हीं में से एक है.' ये शब्द हैं मिस्र की बीच वॉलीबॉल खिलाड़ी डुआ एल्गोबैशी का. हिजाब पहनकर बीच वॉलीबॉल खेलती एक महिला! सुनने में ये बात अजीब लग सकती है. क्योंकि बीच वॉलीबॉल की एक खास पहचान इस खेल से जुड़ा ग्लैमर और इसके बोल्ड परिधान भी हैं. ऐसे में कोई हिजाब पहनकर मैदान में उतर जाए तो चौंकना लाजमी है.

इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि मिस्र की डुआ एल्गोबैशी और नाडा मिवाद ने वाकई सबको चौंका दिया. ओलंपिक खेलों में मिस्र पहली बार बीच वॉलीबॉल में अपनी दावेदारी पेश कर रहा है. रविवार को जब ओलंपिक में पहली बार मिस्र की महिला टीम जर्मनी के खिलाफ खेलने उतरी तो ये कई लोगों को हैरान कर गया. डुआ पूरी बाजू के कपड़ें पहनी हुईं थी और उनके बाल भी ढके हुए थे. उनकी साथी खिलाड़ी नाडा भी कुछ इसी अंदाज में नजर आईं, बस उनके बाल डुआ की तरह ढके हुए नहीं थे.

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 हिजाब भी नहीं रोक पाया डुआ के जज्बे को

एक और खास बात ये कि दोनों ओलंपिक बीच वॉलीबॉल में हिस्सा लेने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी हैं. नाडा की उम्र 18 जबकि डुआ की 19 साल है. हालांकि इस मैच में मिस्र को जरूर 12-21, 15-21 से हार का सामना करना पड़ा लेकिन बीच ओलंपिक के इतिहास में एक नया अध्याय तो डुआ ने जोड़ ही दिया.

बिकनी और बीच वॉलीबॉल पर विवाद पुराना...

बीच वॉलीबॉल पर हमेशा से सेक्सिस्ट, महिलाओं को बोल्ड और आकर्षण के तौर पर प्रस्तुत करने का आरोप लगता रहा है. 1999 में पहली बार इंटरनेशनल वॉलीबॉल फेडरेशन (FIVB) ने इस खेल के यूनिफॉर्म को लेकर कायदे बनाए थे. तब ये जरूरी कर दिया गया था कि खिलाड़ी 'बीचवीयर' ही पहनेंगे.

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 क्या बीच वॉलीबॉल में केवल सेक्सिस्ट छवि पर ही होता है सबका फोकस!

इसमें महिलाओं के लिए बिकनी पहनना जरूरी कर दिया गया था. बकायदा बिकनी कितनी बड़ी हो, ये तक निर्धारित कर दिया गया. नियमों के अनुसार तब ये केवल सात सेंटीमीटर चौड़ी हो सकती थी. हां, अगर मौसम बहुत ठंडा हो तब पूरे बाजू के कपड़े पहने जा सकते थे लेकिन तब भी बिकनी का ऊपर होना जरूरी था. इस पर तब खूब बहस हुई थी. लेकिन कायदा बन गया तो बन गया.

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कई बार ये आरोप लगे कि मीडिया या दूसरे लोग बीच वॉलीबॉल की खेल शैली के बारे में कम और बिकनी के बारे में बात करना ज्यादा पसंद करते हैं. कई बार तो खिलाड़ियों ने इस ड्रेस कोड को लेकर नाराजगी जाहिर की. बहरहाल, इस तुगलकी नियम में बदलाब आया 2012 के लंदन ओलंपिक से ठीक पहले. फिर खिलाड़ियों को छूट दी गई कि वे जो चाहे पहन सकते हैं लेकिन वो 'स्पोर्ट्सवीयर' होना चाहिए.

FIVB के अनुसार इस बदलाव का मकसद खेल को दुनिया के दूसरे देशों और संस्कृतियों तक पहुंचाना था. निश्चित तौर पर मिस्र का उदाहरण दिखाता है कि FIVB की पहल कुछ हद तक तो कामयाब जरूर हुई है. वैसे, एक दूसरा पक्ष भी है. कई महिला खिलाड़ियों को बिकनी से कोई समस्या नहीं है.

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 एक मैच में केरी वॉल्श (बाएं) अपने साथी खिलाड़ी के साथ जश्न मनाती हुईं..

अमेरिका की केरी वॉल्श जेनिंग्स कह चुकी हैं कि इस खेल को खेलने के लिए बिकनी ही सबसे बेहतर है. बकौन केरी, 'मुझे लगता है कि हमें बस लोगों को और समझाने की जरूरत है कि हम वाकई इस खेल के लिए मेहनत करते हैं और सेक्स अपील का प्रदर्शन नहीं कर रहे. बिकनी इस खेल के साथ शुरू से जुड़ा हुआ है.'

दरअसल, माना जाता है कि बीच वॉलीबॉल की शुरुआत हवाई और कैलिफॉर्नियां जैसे अमेरिकी राज्यों में 1900 के आसपास हुई. और फिर वहां से होते हुए कैरेबियाई द्वीपों और फिर दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंचा. जाहिर है अमेरिकी संस्कृति की एक छाप इससे जुड़ी रहेगी और इसे स्वीकार भी करना होगा. लेकिन, अगर बदलाव की गुंजाइश बनती है तो ये कई दूसरे देशों के लिए भी अच्छा है.

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