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Updated: 10 अगस्त, 2016 07:48 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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कोई खिलाड़ी ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीत ले तो उसका नाम खुद-बखुद  महान खिलाड़ियों की लिस्ट में शुमार हो जाता है. लेकिन अगर कोई खिलाड़ी ओलंपिक में 21 गोल्ड मेडल जीत ले तो फिर उसे आप क्या कहेंगे? चमत्कार, महामानव, अद्भुत खिलाड़ी, तो ये सारे विशेषण भी महान अमेरिकी तैराक माइकल फेल्प्स के लिए कम पड़ जाएंगे.

रियो ओलंपिक से पहले ही 18 गोल्ड मेडल सहित ओलंपिक में 22 मेडल जीत चुके फेल्प्स का कारनामा यहां भी जारी है और अब तक वह तीन गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुके हैं. इसके साथ ही ओलंपिक में उन्होंने अपने गोल्ड मेडल की संख्या 21 और कुल मेडल की संख्या 25 पर पहुंचा दी है. वह ओलंपिक इतिहास में सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल और मेडल जीतने वाले खिलाड़ी हैं. उनके पदकों की संख्या कहां जाकर रुकेगी, कह पाना मुश्किल है क्योंकि न सिर्फ रियो में अभी उनके मुकाबले बाकी हैं बल्कि उनकी उम्र भी अभी 31 साल ही है. शायद वह अगले ओलंपिक में भी नजर आएं.

2008 में बीजिंग में हुए ओलंपिक में फेल्प्स ने आठ गोल्ड मेडल जीतते हुए इतिहास रच दिया था. वह किसी भी ओलंपिक में सबसे ज्यादा पदक जीतने वाले खिलाड़ी बन गए. फेल्प्स ने एक और अमेरिकी तैराक मार्क स्पिट्ज द्वारा 1972 म्यूनिख ओलंपिक में जीते गए 7 गोल्ड मेडल के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था.

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माइकल फेल्प्स ओलंपिक इतिहास में सबसे ज्यादा गोल्ड और मेडल जीतने वाले खिलाड़ी हैं

फेल्प्स के नाम इतने रिकॉर्ड दर्ज हैं कि उनकी चर्चा में एक किताब लिखी जा सकती है. कुछ कुदरती विशेष शारीरिक बनावट, असीम प्रतिभा लेकिन जबर्दस्त मेहनत ने ही माइकल फेल्प्स को इतना महान तैराक बनाया है कि दुनिया को उनकी कामयाबी देखकर अपनी आंखों पर भरोसा नहीं होता है. आइए जानें आखिर क्यों इतना महान हैं माइकल फेल्प्स.

माइकल फेल्प्स की महानता की वजह क्या है?

माइकल फेल्प्स की उपलब्धियां उन्हें सबसे महान तैराक ही नहीं बल्कि सबसे महान एथलीट भी बनाती हैं. वह फुटबॉल के पेले, हॉकी के ध्यानचंद, एथलेटिक्स के उसैन बोल्ट या फिर क्रिकेट के डॉन ब्रैडमैन और सचिन तेंडुलकर सरीखे अद्भत प्रतिभा के धनी और अविश्वसनीय कारनामे करने वाले खिलाड़ियों में शुमार हैं. बीजिंग में जब उन्होंने 8 गोल्ड मेडल जीते तो अन्य देशों के विशेषज्ञों ने उनकी कामयाबी पर सवाल उठाए कि आखिर कोई खिलाड़ी लगभग असंभव कारनामा कैसे कर सकता है?

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लोग उनकी सफलता के वैज्ञानिक मायने तलाशते हैं, उनकी शारीरिक बनावट से लेकर उनके खानपान तक की चर्चा होती है. आखिर वे कौन सी बाते हैं जो फेल्प्स को महामानव सरीखा बना देती हैं, जिनसे वे ऐसे कारनामे कर गुजरते हैं जोकि आम इंसानों के लिए सोच पाना भी असंभव हो.

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माइकल फेल्प्स ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में 8 गोल्ड मेडल जीतते हुए इतिहास रच दिया था

कुदरत से मिला गिफ्ट है विशेष शारीरिक बनावटः

इसमें कोई दो राय नहीं है कि फेल्प्स की विशेष शारीरिक बनावट उन्हें एक बेहतरीन तैराक बनने में मदद करती है. उनकी शारीरिक बनावट का उनकी कामयाबी में विशेष हाथ है. लेकिन अकेले यही उनकी कामयाबी की वजह नहीं है. लेकिन फिर भी पहले चर्चा फेल्प्स की विशेष शारीरिक बनावट की.

माइकल फेल्प्स का कद 6 फीट 4 इंच (193 सेंटीमीटर) है, इतना ही नहीं उनके विंगस्पैन यानी कि दोनों हाथों का फैलाव 6 फीट 7 इंच है, जोकि उनके कद के हिसाब से 3 इंच ज्यादा है. इतना लंबा विंगस्पैन ही उन्हें तेज गति के साथ पानी को पीछे ढकेलकर तेजी से तैरने में मदद करता है. लंबे विंगस्पैन पानी में उनके लिए किसी नाव के चप्पू की तरह काम करते हैं. उनकी ये खासियत प्रतिद्वंद्वंदियों पर उन्हें बढ़त दिलाती है.

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माइकल फेल्प्स के विंगस्पैन (दोनों हाथों का फैलाव) 6 फीट 7 इंच लंबे हैं जो उन्हें तेज गति से तैरने में मदद करते हैं

साथ ही फेल्प्स का लंबा धड़ भी उन्हें एक चैंपियन तैराक बनाता है. उनका धड़ लंबा, पतला और ट्राइंगुलर शेप है, जोकि 6 फीट 8 इंच के कद वाले आदमी जितना लंबा है. इससे भी फेल्प्स को बेहतरीन तैराक बनने में मदद मिली. इसके अलावा फेल्प्स के हाथ के हथेलियां और पैर के पंजे काफी लंबे हैं. उनके लंबी हथेलियां तैराकी के दौरान नाव के चप्पू की तरह काम करती है.

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माइकल फेल्प्स की लंबी हथेलियां तैराकी के दौरान चप्पू की तरह काम करती हैं

उनके पैर के पंजे की साइज 14 है, ये लंबे पंजे तैराकी के दौरान फ्लीपर्स की तरह काम करते हैं. उनके धड़ के नीचे का हिस्सा अपेक्षाकृत छोटा है जोकि उनकी तैराकी के लिए मददगार है.

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फेल्प्स का लंबा और पतला धड़ा और पैर के लंबे पंजे उन्हें महान तैराक बनने में मदद करते हैं

कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग ने बनाया चैंपियन!

लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ विशेष शारीरिक बनावट के गॉड गिफ्ट की वजह से ही फेल्प्स महान तैराक बनने में कामयाब रहे. फेल्प्स की जबर्दस्त कामयाबी के पीछे उनकी कड़ी मेहनत भी छिपी है. फेल्प्स बचपन से ही तैराकी की कड़ी ट्रेनिंग लेते आ रहे हैं. वह हर हफ्ते स्विमिंग पूल में 80 किलोमीटर लंबी तैराकी करते हैं, यानी कि औसतन एक दिन में 12 किलोमीटर लंबी तैराकी.

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इसके लिए वह खानपान का विशेष ध्यान रखते हैं और एक दिन में फेल्प्स को 12 हजार कैलरीज बर्न करते हैं, जबकि किसी आदमी को औसतन एक दिन में 2200 से 2700 कैलरी की ही जरूरत होती है. इससे पता चलता है कि फेल्प्स कितनी कड़ी मेहनत करते हैं. यानी शारीरिक बनावट उनकी कामयाबी में मददगार जरूर रही है लेकिन उन्हें चैंपियन बनाया उनकी कड़ी मेहनत, लगन और जज्बे ने.

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माइकल फेल्प्स हर हफ्ते पूल में ट्रेनिंग के दौरान 80 किलोमीटर लंबी तैराकी जितना सफर तय करते हैं

30 जून 1985 को अमेरिका के बाल्टीमोर में जन्मे फेल्प्स ने अपनी दोनों बड़ी बहनों को देखकर तैराकी करनी शुरू की. शुरू में उन्हें पानी में मुंह डालने से डर लगता था इसलिए वह घंटो पूल में बैकस्ट्रोक की प्रैक्टिस करते थे, इसी प्रैक्टिस ने उन्हें आगे चलकर सबसे बेहतरीन बैकस्ट्रोक खिलाड़ी बना दिया.

छठी कक्षा में उन्हें अटेंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) नामक मानसिक विकार हो गया था. इससे उबरकर वह 15 वर्ष की उम्र में 2000 के सिडनी ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करने वाले 68 वर्षों में सबसे कम उम्र के अमेरिकी तैराक बने थे.

1972 के ओलंपिक में 7 गोल्ड मेडल जीतने वाले मार्क स्पिट्स ने कहा था कि उनकी सफलता इंसान के चांद पर कदम रखने जैसी है. उस लिहाज से बीजिंग ओलंपिक में 8 गोल्ड जीतने की फेल्प्स की सफलता इंसान के मंगल पर कदम रखने जैसी कही जा सकती है.

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आने वाली पीढ़ियों को यकीन ही नहीं होगा कि इस धरती पर कभी फेल्प्स जैसी क्षमता वाला खिलाड़ी भी हुआ था. क्या भविष्य में कभी कोई दूसरा फेल्प्स बन पाएगा जो आलंपिक में 25 मेडल जीतने जैसा अद्भुत कारनामा कर दिखाए? तो जवाब है नहीं, क्योंकि दुनिया में फेल्प्स जैसा और कोई नहीं हो सकता!

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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