New

होम -> स्पोर्ट्स

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 19 जून, 2017 08:51 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी खत्म हो चुकी है. पाकिस्तान मैच जीत गया है, भारत मैच हार चुका है. हम जीतते तो बात और थी, हम हार चुके हैं, हार पर कोई नमक छिड़क रहा है तो कोई सांत्वना दे रहा है. सांत्वना देते लोगों के अपने-अपने तर्क हैं. ऐसे तर्क जो सुनसान अंधियारे में अपने को जुगनू की रौशनी से रास्ता दिखाने जैसे हैं. सोशल मीडिया से लेकर हमारे आस पास तक कई ऐसे लोग हैं जिनका मत है कि खेल में हार जीत लगी रहती है. हमें खोल को खेल की तरह लेना चाहिए और खेल भावना का परिचय देते हुए ज्यादा इमोशनल नहीं होना चाहिए.

मैं सुबह से इस बिंदु पर गौर कर रहा हूं. मैं जितना इस बिंदु पर सोच रहा हूँ, मुझे मिल रहा है कि ये खेल भावना की बातें, ये आदर्श बनने की चाह, ये स्पोर्ट्स मैन स्पिरिट, ये अपने को सांत्वना देना सब कोरा झूठ है और झूठ के सिवा कुछ नहीं है. सच्चाई सिर्फ हमारी हार है, एक शर्मनाक हार.

याद रहे खेल को सिर्फ खेल कहना एक बेवकूफी भरी बात है. खेल, एक तरह का युद्ध है जिसमें दोनों टीमों का असल उद्देश्य शत्रु या प्रतिद्वंद्वी को हराना और उसे चित करते हुए धूल चटाना होता है. रविवार को हमने तीन अलग अलग जगहों पर तीन अलग-अलग युद्ध लड़े हैं. जिनमें दो स्थानों पर हम सम्मानजनक तरीके से जीते और अपनी विजय पताका फहराई और एक जगह हमने शर्मनाक हार का सामना किया. और हमारे प्रतिद्वंद्वी ने हमें धूल चटा के हमारी बखिया उधेड़  दी.

भारत, पाकिस्तान, क्रिकेट, आईसीसी खेल चाहे कोई भी हो ये खेल नहीं बस जंग है

भले ही हमने हॉकी में पाकिस्तान को और बैडमिंटन में जापान को हराकर मैदान मार लिया हो मगर जिस तरह हम क्रिकेट में पिटे हैं उससे हमारी भावना का आहत होना और हमारे अन्दर गुस्सा रोष आना लाजमी है.

मैंने अभी अभी अपना फेसबुक देखा, एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग कह रहा है कि इंडिया पाकिस्तान के बीच हुआ मैच केवल एक खेल था, तो लोग बेवजह जज्बाती न हों और इस सत्य को स्वीकारें कि हम अच्छा नहीं खेल पाए और पाकिस्तान ने हमसे अच्छा खेला और वो जीत गए. एक हद तक मैं इनकी बात से सहमत हूँ और जानता हूँ कि विपक्षियों ने संतुलित सामंजस्य का परिचय देते हुए कुशलता से खेला और हमारी तैयारी कमजोर होने के चलते हमें बुरी तरह से हराया.

इन सारी बातों के बावजूद व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए जज्बाती होना लाज़मी है. मेरे लिए या किसी भी उस व्यक्ति के लिए जो एक ऐसे समाज में रहकर पला बढ़ा है जहां क्रिकेट ही सब कुछ, जहां क्रिकेटरों को भगवान् की तरह पूजा जाता हो, जहां क्रिकेट ही साधना हो वहां अपनी हार पचा पाना असंभव है.

याद करिए अपने बचपन को, झांकिये अपने आस पड़ोस में, पलटिये अखबारों के पन्ने, छानिये  इंटरनेट के लिंक आप के सामने ऐसी कई खबरों का अम्बार लग जायगा जिसमें आपको मिलेगा कि गली मुहल्ले के क्रिकेट में घमासान लड़ाई हुई है, लोगों को क्रिकेट बैट और स्टंप्स से बेतहाशा मारा गया है, गोली चली है, पुलिस आई है, मुकदमे हुए हैं.

इतना सब जानने और समझने के बाद अगर कोई ये कहे कि पाकिस्तान की जीत और इंडिया की हार पर हम चुप रहें, धैर्य का परिचय दें, खेल को सिर्फ खेल की तरह लें तो ये मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं है. हमारा जज्बाती होना निस्संदेह ही स्वाभाविक है.

बात फिर वही है, खेल एक तरह का युद्ध है. युद्ध में जब कोई जाता है तो उसका लक्ष्य सिर्फ अपनी विजय पताका फहरा के जीतना होता है. हार शर्मनाक होती है, हम हार के आए हैं. यदि आप ये कह रहे हैं कि खेल में हार जीत लगी रहती है तो और कुछ नहीं बस आप एक छलावे का परिचय दे रहे हैं और अपनी गलतियों को, अपने झूठ को दबाने और छुपाने का काम कर रहे हैं.

भारत, पाकिस्तान, क्रिकेट, आईसीसी खेल मनोरंजन के माध्यम के अलावा सम्मान का भी प्रतीक है

आप भले ही इस बात से सहमत हों या न हों कि खेल खासतौर से क्रिकेट ही राष्ट्रवाद है मगर मैं हूं. मैं डंके की चोट पर कह सकता हूं कि किसी भी खेल में अपनी टीम के लिए उसे चीयर करना, जीत के वक़्त खुशी के मारे चींख पड़ना या हार के समय अपनी टीम पर गुस्सा दिखाना उस पर रोष प्रकट करना ही बिलकुल सामान्‍य है. हम राष्ट्र से भी दिल से जुड़े हैं और राष्ट्र के खेलों से भी. चाहे सरहद पर जीत मिले या रिंग और स्टेडियम में हमारा प्रेम सम्मान और गुस्सा तीनों ही जायज है. जिसपर कभी भी किसी तरह की कोई कोताही नहीं होनी चाहिए.

इस पूरे मामले में एक बात और है, कोई भी टीम अपने लिए नहीं खेलती. वो एक देश के लिए खेलती है. वो जो भी कर रही होती है देश के लिए कर रही होती है. उसकी जीत देश की जीत होती है. उसकी हार देश की हार होती है. एक टीम कैसे देश को दर्शाती हैं, इस बात को आप एक उदाहरण से समझिये. बीते दिन आपने इंडिया पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के अलावा हॉकी के मैच के बारे में भी सुना होगा.

इस मैच में भारतीय हॉकी टीम ने बाजू पर काली पट्टी बांध कर मैच खेला था. कारण कि हमारी टीम उन फैजियों को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दे रही थी जिन्होंने आतंकी हमलों में अपनी जान गंवाई है.

वो फौजी जो लगातार पाकिस्तान के आतंकियों और घुसपैठियों के चलते मारे जा रहे हैं. भारतीय टीम का ये रुख दुश्मन खेमे को इस बात का एहसास कराने के लिए काफी था कि हम भले ही तुम्हारे साथ खेल कर युद्ध कर रहे हैं और अपनी जीत दर्ज कर रहे हैं. अब यदि तुम हमें कमजोर समझो तो ये तुम्हारी भूल है. हम तुम्हें यहां रिंग में भी हराएंगे वहां युद्ध भूमि में भी.

बहरहाल अंत में बस इतना ही कि खेल सिर्फ खेल है और हमें इसे बस मनोरंजन का माध्यम मानना चाहिए जैसी कोई बात नहीं होती. खेल एक युद्ध है जीत गए तो सीना चौड़ा हो जाता है, हार गए तो शर्मिंदगी होती है. रोष आता है और डूब के मर जाने का मन होता है. साथ ही ये बात भी की व्यक्ति जिन चीजों से अपने को जुड़ा हुआ समझता है, उन्हीं चीजों पर वो अपना प्यार और गुस्सा दोनों दर्शाता है. बाकी जिससे जुड़ा हुआ नहीं, वो सब उसके लिए अमेरिकन फुटबाल जैसा है.

ये भी पढ़ें -

मैच को लेकर ऐसा क्रेज, टीम इंडिया को बनाया सेना

#IndVSPak- पाक का मैच नहीं सोहेल का दिमाग 'फिक्स' है

आफरीदी ने सचिन के बल्ले से बनाया था एक वर्ल्ड रिकॉर्ड    

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय