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Updated: 05 जनवरी, 2017 06:56 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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जिसने भारतीय टीम को देश से बाहर विदेशों में जाकर विजेता की तरह खेलना और जीतना सिखाया; जिसने भारत को एकदिवसीय और टेस्ट, क्रिकेट के इन दोनों ही प्रारूपों में नंबर एक बनाया; जिसने देश को दो-दो विश्व कप, चैंपियंस ट्राफी एवं अनेक छोटे-बड़े खिताब दिलाया; जिसने भारतीय टीम में विजेताओं के जैसा आत्मविश्वास जगाया; जिसने खिलाड़ियों के समक्ष खेल के दौरान किसी भी परिस्थिति में सहज व संयमित रहने का उच्चतर आदर्श प्रस्तुत किया और जो आज भारतीय क्रिकेट टीम का सफलतम कप्तान कहलाया, उस खिलाड़ी का नाम है - महेंद्र सिंह धोनी.

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धोनी ने विजेता की तरह खेलना और जीतना सिखाया

लेकिन, कहते हैं न कि आदमी के सितारे हर समय एक जैसे नहीं रहते, बुलंदी हर समय बरकरार नहीं रहती, गर्दिशों का दौर जरूर आता है. ये दौर धोनी के सितारों की गर्दिश का है. टेस्ट से वे पूर्व में ही सन्यास ले चुके हैं, अब उन्होंने एकदिवसीय और टी-20 क्रिकेट के प्रारूपों की कप्तानी छोड़ने का निर्णय ले लिया. इसके पीछे के कारण समझे जा सकते हैं.

दरअसल टेस्ट में उनकी कप्तानी का प्रदर्शन खराब हो रहा था, वे लगातार श्रृंखलाएं हारे थे, इस कारण उनपर दबाव था. सो, आस्ट्रेलिया से श्रृंखला हारने के बाद उन्होंने सन्यास ले लिया. अब एकदिवसीय प्रारूप में भी उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं दिख रहा था, जिम्बाब्वे जैसे देश से हाल ही में हुई श्रृंखला में वे बमुश्किल जीत हासिल कर सके थे. फिर न्यूजीलैंड के साथ हुई घरेलू  श्रृंखला में भी उनकी जीत बमुश्किल हुई थी. उनकी बल्लेबाजी की भी आलोचना हुई.

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स्पष्ट है कि टेस्ट के बाद अब एकदिवसीय क्रिकेट में भी धोनी के लिए हालात हर तरह से प्रतिकूल थे. वहीं दूसरी तरफ विराट कोहली जो भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान हैं, का प्रदर्शन न केवल बतौर कप्तान बल्कि बल्लेबाज के रूप में भी शानदार चल रहा है. उनकी कप्तानी में भारत ने लगातार टेस्ट श्रृंखलाओं में जीत हासिल की और उनकी बल्लेबाजी भी बेहतरीन रही. एकदिवसीय क्रिकेट में भी कोहली का बल्ला लगातार रन उगल रहा है. अब एक तरफ धोनी का हर तरह से खराब प्रदर्शन और दूसरी तरफ कोहली का हर तरह से बेहतरीन प्रदर्शन, निश्चित रूप से इस स्थिति के मद्देनजर धोनी पर न केवल मानसिक रूप से बल्कि अंदरूनी तौर पर भी बहुत दबाव रहा होगा.

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 अपनी सूझबूझ और संयमित निर्णयों के जरिये हार को जीत में तब्दील किया

भारतीय क्रिकेट प्रशासन के अंदरखाने में उनपर ज़रूर सवाल खड़े हो रहे होंगे. शायद यही कारण है कि उन्होंने एकदिवसीय और टी-ट्वेंटी क्रिकेट की कप्तानी छोड़ने का निर्णय लिया है. संभव था कि अगर वे खुद ऐसा नहीं करते तो कुछ समय बाद उन्हें कप्तानी से हटा दिया जाता. यह बेहद शर्मनाक होता, इसलिए खुद कप्तानी छोड़ना एक सम्मानजनक रास्ता है. यह धोनी के संयम और सहजता के उसी गुण को दिखाता है, जो उनकी कप्तानी में अनेक बार हम देख चुके हैं.

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स्पष्ट है कि परिस्थितियां धोनी के लिए एकदम प्रतिकूल हैं, मगर हमें नहीं भूलना चाहिए कि धोनी वो खिलाड़ी है, जिसने अनेकों मैचों को अपनी सूझबूझ और संयमित निर्णयों के जरिये हार को जीत में तब्दील किया है. इसलिए जीवन की इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वे विजेता की तरह बनकर सामने आएंगे. अभी उन्होंने कप्तानी छोड़ी है, बल्लेबाजी करते रहेंगे. निश्चित रूप से कप्तानी के दबाव से मुक्त अपनी बल्लेबाजी के जरिये ही वे क्रिकेट से अपनी सम्मानजनक विदाई का मार्ग प्रशस्त करेंगे, इसमें संशय नहीं है. इसलिए इसे धोनी का अंत नहीं, एक नयी शुरुआत की तैयारी कहना ही सही होगा.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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