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Updated: 21 अप्रिल, 2017 01:28 PM
मौसमी सिंह
मौसमी सिंह
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन तलाक पीड़िता की तुलना द्रोपदी के चीरहरण से करके एक नया सियासी बवंडर खड़ा कर दिया. मगर लखनऊ की रुखसाना इस बात का प्रमाण है कि मुख्यमंत्री की तुलना आज की तारीख में एक खौफनाक सचाई है.

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सुन लीजिये क्यों...

अप्रेल की गर्मी थी...रात के 7 बज रहे थे. लखनऊ के घंटाघर के पास रुखसाना एक हिंदी न्यूज चैनल पर अपनी बिखरी हुई जिंदगी को समेटने की कोशिश में लगी थी. साल दर साल ज़लील होने के बाद ,अब बस बहुत हो चला था...आज वो उस चौराहे पर खड़ी थी जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी. वो बेहद सहमी हुई थी, मन में खौफ था..कहीं मौलवी ना खफा हो जायें, कहीं फतवा न जारी हो जाये, कहीं ये इस्लाम के खिलाफ तो नहीं?

तभी रुखसाना ने आस पास नज़र दौड़ाई, लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. देखते ही देखते एक घेरा सा बन गया था. वहां मौजूद हर एक नजर रुखसाना और उसके साथ खड़ी रेशा और हाशमी पर टिकी थी. आंखों में उनके सवाल कम नफरत के बादल ज्यादा थे.

बस कैमरा बंद ही हुआ था कि भीड़ का घेरा मानो फंदे में तब्दील हो गया. वो तीन थे और ये तीस, नहीं चालीस या और भी ज्यादा. एक ने कहा "इन औरतों में गैरत नहीं, कितनी बेहया है टीवी पर इस्लाम को बदनाम कर रही है', 'इनको शर्म नहीं आई? इनको तो कहीं और होना चाहिए था'. अचानक किसी ने हाथ पकड़ के जोर से सड़क पर खड़े एक टेम्पो की तरफ रूखसाना को खींचा, तब तक भीड़ नाराज हो चली थी और टेम्पो स्टार्ट.

रूखसाना की आंखों के सामने ज़िंदगी के मनहूस पल तैरने लगे. वो रात जब उसके शौहर शराब के नशे में धुत घर आये और उसके साथ गाली गलौज करने लगे. देखते ही देखते मार पीट और जोर जबरदस्ती उनकी रोज की आदत बन गई. इसी नर्क में कभी कुचलते और कभी बचते उसके दो बच्चे भी हो गए. गरीब के लिए बच्चे मेहनत करने की वजह होते हैं, पर अगर शौहर ही शैतान का रूप हो तो बच्चे मजबूरी बन जाते हैं.

कुछ सात साल पहले एक दिन रूखसाना के शौहर ने दो मिनट में उसे तीन तलाक दे दिया. उस वक्त रूखसाना को अपनी मां की बात याद आई 'अल्लाह की तुझ पर बरकत बनी रहे, खुदा ना करे तीन तलाक की बिजली तुझ पर गिरे'. तीन तलाक का खौफ मुस्लिम महिलाओं के जिंदिगी की एक कड़वी हकीकत है. पहले और दूसरे तलाक के बाद तो शौहर-बीवी फिर से निकाह कर सकते हैं. पर अगर तीन की गिनती पार हो गई तो वापस एक होना मुमकिन नहीं है.

वो रोई, गिड़गिड़ाई, भीख मांगी, बच्चों की दुहाई दी पर बहोत देर हो चुकी थी. दरअसल तीन तलाक देने के बाद अगर महिला किसी औए पुरुष से निकाह करती है और शादी पूरी होने के बाद तलाक हो जाता है तब वो अपने पहले शौहर से निकाह कर सकती है. इसको हलाला कहते हैं, पर ये प्लान नहीं किया जा सकता.

पर आजकल बड़ी बेहयाई से हो रहे तीन तलाक के चलते हलाला का भी इस्तेमाल आजकल धड़ल्ले से हो रहा है. वो भी तोड़-मरोड़ के. घरवालों के कहने पर उसका शौहर दोबारा उसको अपनाने के लिए तैयार था बशर्ते 'वो अपनी आदत सुधारे, हलाला करे ताकि वो उसके लिए पाक हो! 'उस वक्त रूखसाना सिर्फ एक मां थी और उसने अपने बहनोई के साथ हलाला किया.

फिर दोनों का निकाह हुआ. उसके दो और बच्चे हुए. इसके बाद हालात बद से बद्दतर होते गए. रूखसाना का शौहर उसे घर की जूठन समझता और जानवरों जैसा सुलूक करता. मगर रूखसाना के पास चारा ना था. उसके अब्बू पहले ही गुजर गए थे और अम्मी बेहद गरीब है. औरों के घर मे झाड़ू पोंछा करके गुजर बसर करती. वो कैसे उन पर बोझ बन सकती थी?

जब पानी सर से ऊपर निकल गया और उसको लगा के उसका शौहर उसे जान से ही मार डालेगा तब वो सब छोड़ छाड़ के मां के पास लौट आई.

फिर एक दिन उसके पति ने वो ही किया जो इस्लाम मे हराम है, गुस्से में उसे फोन पर तीन तलाक दे दिया...फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार रूखसाना टूटी नहीं, गिड़गिड़ाई नहीं, वो खुद पर हुए ज़ुल्मों के खिलाफ आवाज उठाना सीख गई.

आज रूखसाना खड़ी है तो उन सब मर्दों को उससे नफरत है जो औरत को अपनी जूती की नोक पर रखना चाहते हैं. आज रूखसाना इंसाफ के लिए लड़ रही है तो धर्म के ठेकेदार उसे झूठा करार दे रहे हैं, आज रूखसाना अपने पूर्व-शौहर को सजा दिलाना चाहती है तो घंटा घर पर खड़ी वो भीड़ फब्तियां कस उसका बहिष्कार करना चाहती है.

पर अब रूखसाना ना रुकेगी, न थमेगी न झुकेगी और ना खामोश रहेगी.

उस अप्रेल की रात रूखसाना जान बचा कर भागी. घटना की शिकायत लिखने के लिए पुलिस ने खूब आना-कानी की, भीड़ अपने आप हुई या किसी ने घंटा घर भेजा ये मालूम नहीं चला पर मेरे सहयोगी को एक मौलाना ने उससे दो घंटे पहले रूखसाना के साथ मेरे लाइव टेलिकास्ट देख ये जरूर कहा "आपकी रिपोर्टर ने तो झूठा केस तैयार किया है"

तो जनाब मीडिया से खफा ना हों... खबरों के पीछे रूखसाना जैसी हजारों की आवाज सुनें...जिनकी आप बीती फ़ैज साहब की ये चंद लाइनें बयान कर रही हैं...

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.

दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं,

दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है.

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लेखक

मौसमी सिंह मौसमी सिंह @mausami.singh.7

लेखिका आज तक में विशेष संवाददाता हैं.

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