छुट्टियों के मजे पुरुष नहीं महिलाएं ज्यादा लूटती हैं
एक स्टडी में ये पाया गया है कि छुट्टियां बीताने के मामले में महिलाएं ज्यादा उत्साही होती हैं. मतलब छुट्टियों का मजा वो ज्यादा उठाती हैं न की पुरूष.
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जब हम अपने रोजमर्रा के जीवन में होते हैं तब का हमारा व्यवहार और छुट्टियों पर जब जाते हैं तब के व्यवहार में कितना अंतर होता है कभी इस बात की तरफ ध्यान दिया है आपने? अगर नहीं दिया तो अब से इस चेंज को फील करना शुरू कीजिए. तब आपको पता चलेगा कि इन दोनों समय में आपके व्यवहार, बॉडी लैंग्वेज यहां तक की सोचने के तरीके में भी जमीन-आसमान का अंतर आ जाता है.
हम ऐसा करने के लिए इसलिए कह रहे हैं क्योंकि एक स्टडी में ये पाया गया है कि छुट्टियां बिताने के मामले में महिलाएं ज्यादा उत्साही होती हैं. मतलब छुट्टियों का मजा वो ज्यादा उठाती हैं न की पुरूष.
अपनी जिंदगी जीना है तो घूमने जाओ
सर्वे क्या कहता है?
हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार AirBNB ने अपने एशिया पैसिफिक ट्रैवल सर्व का रिजल्ट घोषित किया. इसमें कहा गया- "भारतीय पुरुषों की तुलना में 68% स्थानीय भोजन और ड्रिंक्स का स्वाद चखने में महिला (74%) ज्यादा तत्पर रहती हैं. साथ महिलाएं (71%) पुरुषों (66%) के मुकाबले नई गतिविधियों का अनुभव करने के लिए तैयार रहती हैं. इसके अलावा 71% भारतीए स्थानीय भोजन खाने के लिए ललायित रहते हैं." ये सर्वे सात देशों में किए गए हैं- ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड.
क्या यह सच है?
बेशक. इस दावे का समर्थन करने के लिए पर्याप्त आंकड़ें उपलब्ध हैं. लेकिन एक बात साफ कर दें कि यहां रोमांच का मतलब सिर्फ पहाड़ चढ़ना, लंबी पैदल यात्राएं करना और स्कूबा डाइविंग करना नहीं है. यहां रोमांच यानी एडवेंचर का मतलब है नई चीजों और कामों को करने कोशिश करने की इच्छा. कुछ ऐसा जो किसी इंसान को उसके कंफर्ट ज़ोन के बाहर करना हो. ऐसा संभव की किसी काम को आप अपने रोजमर्रा की जिंदगी में करना पसंद नहीं करते होंगे या आपको लगता होगा कि आप ये कर नहीं पाएंगे. हालांकि एक बार जैसे ही आप छुट्टी पर जाते हैं आपके अंदर का संकोच मिट जाता है. अपने अंदर के एक अलग ही इंसान से आप मिलते हैं.
ऐसा क्यों होता है, हम बताते हैं-
हमारे समाज में महिलाओं को कैसे रहना है, कैसे चलना है, कैसे खाना, कैसे हंसना है, कैसे बोलना है, कैसे कपड़े पहनने हैं आदि-आदि हर चीज का ज्ञान दिया जाता है. और उन्हें वो करना भी पड़ता है. इसलिए वो एक निश्चित दायरे में रहती हैं. खुद के अंदर की शख्सियत को दबा कर बैठी रहती हैं. फिर जैसे ही वो छुट्टी पर जाती हैं अपने अंदर के असल चेहरे को सामने लाती हैं. सारे रिति रिवाजों को भूल खुद को जीती हैं. खुद के तरीके से उस समय का इस्तेमाल करती हैं. नए वातावरण में जान-पहचान, नाते-रिश्तेदार की नजरों से दूर अपनी जिंदगी का मजा लेती हैं.
शिकागो ट्रिब्यून में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है- "पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए पर्यटक होना ज्यादा जरुरी होता है. क्योंकि महिलाओं को अपने समाज में दोहरे मापदंडों के अनुसार रहना होता है. जीना होता है. लेकिन घर से बाहर किसी अनजान जगह पर निकलते ही वो अपने अंदर के डर और हिचक को ताक पर रख देती है."
इसलिए अगर आप भी फ्री होकर कुछ दिन जीना चाहती हैं तो छुट्टियों पर जाएं.
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