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Updated: 12 जुलाई, 2017 08:56 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले के बाद दो तरह की बातें सामने आईं. एक तो ड्राइवर सलीम मिर्जा ने सूझबूझ से बाकी 50 यात्रियों की जान बचाई. और दूसरा यह कि कश्‍मीर के बाकी लोगों को इस हमले का बड़ा दुख है. और कश्‍मीरियत अभी जिंदा है.

घटना में मारे गए 7 लोगों के शव और बाकी घायल यात्रियों को हवाई जहाज से सूरत पहुंचा दिया गया है. कुछ घायलों से दैनिक भास्‍कर ने बात की. उस घटना का जो सूरतेहाल उन्‍होंने बयां किया है, वह कुछ और ही इशारा करता है.

injured, amarnath terror attackअमरनाथ आतंकी हमले में घायल यात्री

आतंकी के हमले में घायल हुए लोगों की जुबानी, जो दैनिक भास्‍कर ने प्रका‍शित की है:

1. रात 8.10 बजे के करीब सामने की ओर कुछ दूरी पर 5-7 लोग बंदूकें लिए आर्मी की ड्रेस में दिखाई दिए. यह देख तसल्ली हुई कि यहां भी सुरक्षा इंतजाम है. लेकिन जैसे ही बस उनके करीब पहुंची, उन्होंने ड्राइवर की तरफ बंदूकें कर बस पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया. बस ऑपरेटर के बेटे हर्ष देसाई को शायद पहले ही कुछ आशंका थी. गोलियां चलते ही उसने बस ड्राइवर सलीम मिर्जा का सिर पीछे से पकड़कर स्टेयरिंग पर झुका दिया. अचानक हुई फायरिंग और हर्ष द्वारा सिर झुकाने से ड्राइवर सलीम हड़बड़ा गया. उसने बस रोक दी. लगभग चारों तरफ से ही बस पर गोलियां लगी थीं.

2. घायल हर्ष ने यात्री दरवाजे को लॉक करने की कोशिश की. उससे ताकत नहीं लगी तो बस का क्लीनर मुकेश पटेल चिल्लाते हुए उसकी मदद करने लगा- 'सलीम बस भगाओ...' आतंकी बस के दरवाजे तक पहुंचते तब तक हड़बड़ाए ड्राइवर सलीम ने रुकी बस आगे बढ़ा दी. पीछे से गोलियां बरसने का शोर और तेज हो गया. करीब 500 मीटर बढ़ने तक गोलियां बस से टकराने की आवाज आती रही. फिर बंद हो गई. सब चीख-पुकार रहे थे और ड्राइवर बस को भगाए जा रहा था.

harsh, amarnath yatraआतंकी फायरिंग में घायल हर्ष

3. करीब दो-ढाई किलोमीटर जाकर ड्राइवर ने बस रोक दी. आसपास छोटी-छोटी दुकानें थीं. दुकानदारों को देख हमारी कुछ हिम्मत बंधी. लेकिन बस से उतरने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. कुछ लोगों ने दुकानदारों से मदद की गुहार लगाई- 'प्लीज... हमारी मदद करो, यहां कुछ लोगों को गोलियां लग गई हैं, खून भी नहीं रुक रहा है, आओ न... मदद करो. पुलिस को फोन ही कर दो'. पर दुकानदार इस गुहार को अनसुना कर रहे थे. हमने देखा उनमें से कुछ तो मदद करने की बजाय उल्टा हंस रहे थे, मुस्कुरा रहे थे. वे नहीं आए तो हमारी आस टूटने लगी.  

4. तभी सामने से कुछ गाड़ियां आकर रुकीं. वे सेना के लोग थे. बोले- 'घबराइए नहीं! आप लोगों को कुछ नहीं होगा. हम सेना के जवान हैं, आपकी मदद के लिए आए हैं.' सांत्वना देते हुए उन्होंने सबसे पहले घायल महिलाओं और बच्चों को अपनी गाड़ियों में बैठाकर अस्पताल की ओर रवाना कर दिया. फिर कम घायलों और अन्य को भी अपनी गाड़ियों में बैठाया. करीब 15 मिनट में आगे गई सेना की कुछ गाड़ियां भी वहां वापस आ गईं. बाकी लोगों को उन पर बैठाकर सेना के जवानों ने रवाना कर दिया. इस दौरान पास के दुकानदार भी दुकानें बंद कर जा चुके थे.

सलीम ने बेशक बहादुरी का काम किया है, लेकिन यही पूरा सच नहीं है...

बस ड्राइवर सलीम से ज्‍यादा सूझबूझ हर्ष ने दिखाई है. उसी ने सलीम का सिर झुकाकर उसकी जान बचाई. और डर के मारे बस रोक चुके सलीम को बाद में तेजी से ड्राइव करने के लिए भी उसी ने कहा.

saleem, amarnath terror attackड्राइवर सलीम मिर्जा

इस बात के लिए भी दलीलें दी जा रही हैं कि आम कश्‍मीरी इस वारदात से दुखी हैं. यदि ये सही है, तो मृतकों और घायलों से भरी हुई इस बस को जहां रोका गया, वहां लोग मदद को आगे क्‍यों नहीं आए? वे हंसते-मुस्‍कुराते क्‍यों रहे?

एक आतंकी हमले में भी हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र ढूंढने का दबाव झेल रहे कुछ बुद्धिजीवियों ने घटना की पूरी जानकारी लिए बिना अपनी सुविधा से हीरो ढूंढ लिए हैं. लेकिन, इससे क्‍या सच को बदला जा सकता है ?

..और सबसे अंत में सबसे जरूरी बात. जब घायल यात्री कह रहे हैं कि आतंकियों ने हमला सीधे बस पर किया था, तो यह थ्‍योरी क्‍यों सामने लाई जा रही है कि पुलिस और आतंकियों के बीच क्रॉसफाइरिंग में बस चपेट में आ गई? कहीं उद्देश्‍य यह तो नहीं कि क‍श्‍मीर में जारी दरिंदगी को इस तीर्थ यात्रियों पर हमले से धक्‍का न लगे?

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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