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Updated: 19 मई, 2017 10:51 AM
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भारत ने पाकिस्तान पर फिर बड़ी जीत हासिल की... ये जीत न खेल के मैदान में मिली और न जंग के मैदान में... बल्कि ये जीत इंटरनेशनल कोर्ट में मिली. कुलभूषण की फांसी के फैसले पर इंटरनेशनल कोर्ट ने रोक लगा दी. ICJ के जज जस्टिस रोनी अब्राहम ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उसे जासूस बताने वाला पाकिस्तान का दावा नहीं माना जा सकता.

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पाकिस्तान ने अदालत में जो भी दलीलें दीं, वे भारत के तर्क के आगे कहीं नहीं ठहरतीं. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि विएना संधि के तहत भारत को कुलभूषण जाधव तक कॉन्सुलर एक्सेस मिलना चाहिए. बता दें, पाकिस्तान ने उन्हें जासूसी के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी. ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान ने किसी भारतीय को पहली बार पकड़ा हो... वो पहले भी जासूसी का आरोप लगाकर पकड़ चुका है.

इन भारतीयों पर आरोप लगाकर पाकिस्तान ने मौत की सजा सुनाई. लेकिन कभी अमल नहीं कर पाया. किसी को जेल में मार दिया गया तो किसी को छोड़ना पड़ा. आइए जानते हैं इनके बारे में...

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रामराज

रामराज को पाकिस्तान ने 6 साल तक जेल में रखा गया. वो बताते हैं कि उन्होंने 18 साल इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए जासूसी की. 2004 में कथित तौर पर लाहौर में पकड़े गए रामराज शायद एकमात्र ऐसे भारतीय व्यक्ति थे जो 'पाकिस्तान पहुंचते ही गिरफ़्तार हो गए'. उन्हें छह साल क़ैद की सज़ा हुई और जब वह अपनी सज़ा काटकर वापस भारत पहुंचे तो कहा जाता है कि भारतीय संस्थाओं ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया.

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गुरबख्श राम

गुरबख्श राम को 1990 में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह कई साल पाकिस्तान में बिताने के बाद वापस भारत जा रहे थे, लेकिन पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के हाथ लग गए. राम पाकिस्तान में कथित तौर पर शौकत अली के नाम से जाने जाते थे. 18 साल तक पाकिस्तानी जेलों में रहे.

उन्हें 2006 में 19 अन्य भारतीय कैदियों के साथ कोट लखपत जेल से रिहाई मिली. वापिस लौटकर उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके परिवार को कोई सुविधाएं नहीं मिली. उन्होंने ये भी दावा किया कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से भी मुलाकात की, लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी गई है.

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राम प्रकाश

राम प्रकाश को एक साल तक फोटोग्राफी में ट्रेनिंग लेने के बाद, 1994 में इंटेलिजेंस एजेंसी ने राम प्रकाश को जासूसी करने पाकिस्तान भेजा. 1997 में इंडिया वापस आते वक़्त, उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और सियालकोट की गोरा जेल में भेज दिया. एक साल वहां कैद में रहने के बाद 1998 में पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें 10 साल की सज़ा सुनाई. 59 साल के राम प्रकाश बताते हैं कि पकड़े जाने से पहले उन्होंने 3 साल में करीब 75 बार बॉर्डर पार किया था. उन्हें 7 जुलाई, 2008 को वापस हिंदुस्तान भेज दिया गया.

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ओम प्रकाश

कमल कुमार बताते हैं कि उनके पिता, ओम प्रकाश 1998 में जासूसी करने पाकिस्तान गए थे. इस बारे में उन्हें तब पता लगा, जब ओम प्रकाश का एक ख़त पाकिस्तानी जेल से उनके पास पहुंचा. उसके बाद से ओम प्रकाश जेल से ही अपने परिवार को चिट्ठी भेजते रहते लेकिन उनकी आखरी चिट्ठी 14 जुलाई, 2014 को इंडिया पहुंची. उसके बाद से ओम प्रकाश का कोई पता नहीं है कि वो ज़िंदा हैं कि नहीं.

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विनोद साहनी

विनोद साहनी जम्मू एक्स-सलेथ एसोसिएशन (जासूस) के अध्यक्ष हैं और बताते हैं कि ये संस्था उन्होंने उन जासूसों के हितों के लिए शुरू की थी, जिन्हें पाकिस्तान भेजा गया था, लेकिन पकड़े जाने के बाद उन्हें ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया. साहनी खुद भी इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए एक जासूस थे और उससे पहले वो टैक्सी चलाया करते थे.

एक इंटेलिजेंस अधिकारी ने उन्हें जासूस बनने का प्रस्ताव दिया और सरकारी नौकरी के प्रलोभन में आ कर विनोद तैयार हो गए. 1977 में उन्हें पाकिस्तान भेजा गया और उसी साल वो गिरफ़्तार भी हो गए. पूछताछ और मुक़दमे के बाद उन्हें 11 साल की सज़ा हुई. मार्च, 1988 में वो वापस भारत आ गए और तबसे अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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सुरम सिंह

सुरम सिंह ने 1974 में पाकिस्तान में घुसने की कोशिश की थी लेकिन बॉर्डर पर ही उन्हें पकड़ लिया गया. 4 महीनों की पूछताछ के बाद वो सियालकोट की गोरा जेल में करीब 13 साल 7 महीनों तक कैदी रहे. 1988 में सिंह को वापस भारत भेज दिया गया.

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जसवंत सिंह, बलवीर सिंह के बेटे

जसवंत सिंह अपने पिता, बलवीर सिंह को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं जिनकी मृत्यु 4 साल पहले हो चुकी है. बलवीर सिंह को 1971 में पाकिस्तान भेजा गया था और 1974 में उन्हें पकड़ लिया गया. 12 साल जेल में रहने के बाद, बलवीर को 1986 में वापस भारत भेज दिया गया. अधिकारियों और एजेंसी से जब उन्हें कोई सहायता नहीं मिली तब उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. 1986 में हाई कोर्ट ने उन्हें मुआवज़ा देने का आदेश सुनाया लेकिन आज तक वो मुआवज़ा, बलवीर सिंह के परिवार तक नहीं पहुंचा है.

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सरबजीत सिंह

सरबजीत सिंह को पाकिस्तान की खूफिया एजेंसियों ने अगस्त 1990 में गिरफ्तार किया था. भारत का कहना था कि नशे में धुत एक पंजाबी किसान खेतों में हल चलाते हुए ग़लती से सीमा पार कर गया था. पाकिस्तान ने सरबजीत सिंह के ख़िलाफ़ फैसलाबाद, मुल्तान और लाहौर में धमाकों के आरोप में मुकदमा चलाया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई. सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ़ के कार्यकाल के दौरान जब भारत-पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता का सिलसिला जारी था, उस समय भारत में कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों ने सरबजीत सिंह की रिहाई की मुहिम चलाई.

कई बार ऐसा लगा कि पाकिस्तान सरकार उन्हें रिहा कर देगी, लेकिन वार्ता की विफलता के बाद सरबजीत सिंह की रिहाई भी खटाई में पड़ गई. सरबजीत 2013 में कोट लखपत जेल में कैदियों के हमले में घायल हो गए और अस्पताल में उनकी मौत हो गई. सरबजीत के शव को भारत के हवाले किया गया और भारत सरकार ने सरबजीत के पार्थिव शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया.

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डेनियल

डेनियल ने 1992 से भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए काम करना शुरू किया था और 1993 में बॉर्डर पार करते वक़्त वो पकड़े गए थे. अपनी सज़ा काटने के बाद वो 1997 में भारत वापस आ गए. डेनियल अब रिक्शा चलाते हैं. किसी ने खुद को जासूस बताया तो किसी को पाकिस्तान ने जासूस बताकर मौत की सजा सुना दी. पाकिस्तान हमेशा से ही ना पाक हरकतों के लिए जाना गया. इस बार वो नाकाम रहा और इंटरनेशनल कोर्ट से लताड़ लगने के बाद कुलभूषण की फांसी पर रोक लग गई.

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