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Updated: 12 सितम्बर, 2017 04:28 PM
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रेयान इंटरनेशनल स्कूल (गुड़गांव) में एक मासूम की क्रूर हत्या के बाद फिर से साबित हो गया है कि हमारे यहां के स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा कोई प्राथमिकता ही नहीं होती. बल्कि बच्चों का शिकार करने के लिए स्कूल एक मुफीद जगह हैं.

तेजी से बड़े स्कूलों का बढ़ना और इसके साथ ही उनमें छात्रों की बढ़ती संख्या का सीधा मतलब है कि स्कूलों में बच्चों पर उतना ही कम व्यक्तिगत ध्यान होगा. दूसरी तरफ इन बड़े स्कूलों को चलाने में लगने वाली भारी लागत, इस समस्या को और बढ़ा ही देती है. आलम ये है कि जितने बड़े स्कूल होंगे, वहां कहीं न कहीं, कोई न कोई कोना सीसीटीवी की नजरों से छूट जाने की उतनी ही संभावना होगी.

अब हमारे यहां के माता-पिता को ये सच स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि हमारे यहां के स्कूलों का मैनेजमेंट का जो हाल है, उस स्थिति में बच्चों की सुरक्षा की सौ फीसदी गारंटी नहीं मिलने वाली. इसलिए अब हमें अपने बच्चों को खुद की रक्षा करने के गुर सिखाने की जरुरत है. उन्हें बताएं कि अगर कोई इंसान गलत नीयत से उनकी तरफ आ रहा है तो उसके चंगुल से खुद को कैसे छुड़ाएं. स्वाभाविक रूप से ऐसी चीजें बच्चों के लिए नई होंगी. क्योंकि मुसीबत को समझने या उससे छुटकारा पाने के गुर बच्चों में पैदाइशी नहीं होते हैं. बल्कि उन्हें ये सिखाना पड़ेगा. उन्हें हर खतरे से निपटने के लिए तैयार रखने की जरुरत है.

Kids safetyबच्चों को हर परिस्थिति के लिए तैयार रहने की शिक्षा जरुर दें

सबसे बेसिक और जरूरी बात जो सबसे पहले बच्चे को सीखाएं और बार-बार उन्हें याद कराते रहें कि- "अजनबियों से कोई बात न करें. उनसे दूर रहें. हमेशा. चाहे कितनी भी जरुरत क्यों न पड़े." बच्चों के लिए ये सेल्फ डीफेंस क्लासेस मजेदार और मनोरंजक बनाने के लिए इसे "एक्शन प्लान" का नाम दें. बच्चे को बताएं कि जैसे ही कोई अजनबी या घरवालों के अलावा कोई भी व्यक्ति, उनके पास आकर मीठी-मीठी बातें करता है. उन्हें छूने या पकड़ने की कोशिश करता है. तो वो फौरन अपना "एक्शन प्लान" शुरू कर दें.

"एक्शन प्लान" बिल्कुल सिंपल है. दरअसल यही कारण है कि लोग इतने साधारण से एक्शन प्लान की अहमियत को हमेशा नजरअंदाज कर देते हैं. बच्चों का "एक्शन प्लान" ये होगा कि जैसे ही उन्हें खतरा महसूस हो वो पूरी जान लगाकर. गला फाड़कर. लगातार चीखने लगें. चिल्लाने लगें. और तुरंत ही उस जगह से भाग जाएं. भाग कर सीधा जहां कुछ लोग खड़े हों, वहां जाएं ताकि सहायता मिल सके.

दुर्भाग्य से अगर भागना संभव न हो तो उन्हें लगातार चीखना और चिल्लाना जारी रखना चाहिए. इस बात की तब काफी संभावना बन जाती है कि उनकी चीख-चिल्लाहट किसी को सुनाई दे जाएगी और लोग उनकी मदद करने के लिए आ जाएंगे.

इससे बच्चे की जान बच सकती है.

इसलिए, इस सुझाव को बिल्कुल साधारण या बचकाना मानकर खारिज न करें. बच्चों को जीवन का ये अत्यंत महत्वपूर्ण सबक सिखाना ही होगा.

देखें वीडियो-

याद रखें इस साधारण सी बात से आपके बच्चे का जीवन बच सकता है.

मेरे एक मित्र की दो बेटियां हैं. उसने अपनी बच्चियों को इस बात की सख्त हिदायत तो दे ही रखी कि- "किसी के साथ कभी भी नहीं जाना है. फिर चाहे वो कोई जानकार ही क्यों न हो." लेकिन इसके साथ ही उसने अपनी बेटियों को ये भी बता रखा है कि मुसीबत में फंस जाने पर वो क्या करेंगी. दोस्त की बड़ी बेटी ने जब पूछा कि- "अगर कोई रिश्तेदार स्कूल आएं और कहें कि मम्मी-पापा ने तुम्हें घर लाने के लिए मुझे भेजा है. या फिर वो कहें कि तुम्हारे मम्मी या पापा का एक्सीडेंट हो गया है जल्दी चलो. तो?"

दोस्त ने उसे बताया कि- "तुम दोनों को स्कूल से लाने के लिए हम सिर्फ फलां मामा और फलां चाचा को ही भेजेंगे. इनके अलावा कभी किसी को हम तुम्हें लाने नहीं भेजेंगे. अगर कोई और रिश्तेदार या पहचान वाला भी कभी आकर कहे कि मम्मी ने या पापा ने भेजा है. तो उनका भरोसा मत करना. फिर चाहे वो कोई भी हो."

मेरे दोस्त की सलाह उसके लिए बहुत लाभदायक साबित हुई है. और ये हर किसी के लिए कारगर होगी. यकीन मानिए.

सबसे जरुरी बात ये कि हमें अपने बच्चों को स्थिति और परिस्थितियों के लिए तैयार करना ही चाहिए. साथ ही उस समय उन्हें कैसे रिएक्ट करना है ये भी बताना बहुत जरुरी है. बहुत ही ज्यादा जरुरी.

(DailyO से साभार)

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