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Updated: 14 मई, 2017 01:30 PM
अबयज़ खान
अबयज़ खान
  @abyaz.khan
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'गाय हमारी माता है. इसके चार पैर होते हैं. दो कान होते हैं और एक पूंछ होती है. ये हमारे बड़े उपयोग में आती है. गाय से हमें दूध, घी, मक्खन मिलता है. इसके सींघ से कंघी और बटन बनाए जाते हैं. पुराणों में गाय माता का बड़ा महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि गऊ माता के एक सींग पर धरती माता टिकी हैं. जिस दिन गऊ माता को गुस्सा आएगा उस दिन धरती माता डोल जाएंगी और हम सबका सर्वनाश हो जाएगा.' कभी किताबों में कभी किताबों से बाहर गाय के बारे में जितना जहां से पढ़ा सुना, उस ज्ञान को आत्मसात कर लिया.

गाय माता है, सम्मान की वजह है. बचपन में गली से गुजरने वाली गाय की घंटी की आवाज़ आती थी, तो गाय वाले बाबा को एक रुपये का सिक्का और गाय को रोटियां दे आते थे. लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गये वक्त के साथ गाय माता पर लिखे जाने वाले निबंध की भाषा बदल गई. अब गाय माता सियासत की कुंजी बन गईं. गाय पर अब निबंध कुछ इस तरह हो गया है. 'गाय हमारी माता है. इसके चार पैर और दो कान होने के साथ-साथ गाय अब सियासत का बड़ा मुद्दा है. गऊ माता हमारे लिए वोट बैंक हैं. अब गाय का गोबर और गो मूत्र आस्था का विषय बन गया है. माता अब सियासत की देहरी पर बैठा दी गई है.'

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हे गऊ माता, तुम चिंता मत करो. देश में आजकल तुम्हारा बहुत सम्मान है और जो तुम्हारा सम्मान नहीं करता उसकी हम ऐसी तैसी कर देते हैं. नेताजी ने संसद में और सड़क पर हमने तुम्हारी ख़ातिर मोर्चा संभाल लिया है. गांव-गांव गली-गली बस तुम्हारा ही चर्चा है. और जो तुम्हारा सम्मान नहीं करता उसका क्या हाल होता है ये भी सबको मालूम है.

कहीं मां के सम्मान में, कहीं मां के अपमान में ग़दर हो रहा है. मां के लाडले एक दूसरे के खून के प्यासे हैं. मुल्क में हिंदू और मुसलमान के बीच में गाय आ गई है. ऐसा लग रहा है जैसे ज़ंजीर फिल्म का डायलॉग हो. मेरे पास हाथी है, साइकिल है, झाड़ू है, हाथ का पंजा है, तुम्हारे पास क्या है...''मेरे पास गऊ माता है''...मां अब मेरे पास रहेगी क्योंकि मेरी मां मेरी पार्टी का वोट बैंक है. मां सियासी रहनुमाओं के लिए दूध देती गाय हैं.

मां खुश है. उसके बच्चे उसकी कद्र कर रहे हैं. सड़क से लेकर संसद तक बस मां का चर्चा है. बाबा मां की महिमा बता रहे हैं. गोबर से लेकर गोमूत्र तक के उपयोग बताए जा रहे हैं. नेताजी गला फाड़ फाड़कर चिल्ला रहे हैं. तथाकथित गौरक्षक मां के नाम पर गुंडई मचा रहे हैं. मां के नाम पर अनुष्ठान हो रहे हैं. बाज़ार में लाल गमछों की डिमांड बढ़ गई है. मां का दुलार-प्यार बढ़ गया है. मां रंभा रही हैं, तो भक्त बिलबिला उठते हैं. मां की एक आवाज़ पर दौड़े चले आते हैं. मां गौशाला में खूंटे से बंधी हैं, लेकिन मां अभी तो तुमको बंधे रहना है खूंटे से, बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारी अपनी मां घर के खूंटे से बंधी रहती है. खटती रहती है 24 घंटे, सातों दिन चूल्हे चौके में. अपनी जान की परवाह किये बिना. हमारी खुशियों के लिए सबकुछ न्योछावर कर देती है. तुम चिंता मत करो, तुम्हारे खुलने का वक्त अभी नहीं आया है क्योंकि अभी तो चुनावी मौसम नहीं आया है.

जब तक हमारी मां हमारे काम आती है, हम उसे भी अपने साथ रखते हैं सहेजकर. उसकी हर फिक्र को अपना बनाकर और जब हमारी मां बूढ़ी हो जाती है और किसी काम की नहीं रहती है तो हम उसे भी भेज देते हैं वृद्धा आश्रम. छोड़ देते हैं सरकारों की पेंशन के भरोसे. या फिर घर में भाइयों के बीच खड़ी कर लेते हैं दीवार. और फिर मां भटकती रहती हैं दर-दर. अब मां तुम क्यों परेशान हो. छोड़ आएंगे तुमको भी कहीं गौशाला. अब तुम्हीं बताओ कि हम तुम्हारा क्या करें. जब तक तुम दूध देती रहीं हमारे काम की रहीं. तुम्हारे बहाने अच्छी खासी सियासत भी हो गई. अब दूध देना तुमने बंद कर दिया. कोई और काम तुमसे ले नहीं सकते. पहलू खान अब तुम्हें लेकर जाएगा नहीं. किसी और को हम तुम्हें पालने नहीं देंगे. घर में हमारे अपने बच्चों के लिए खाने को नहीं है, फिर तुम को कहां से खिलाएं. तुम्हारा क्या है माता...तुम तो पॉलीथीन खाकर भी गुज़ारा कर लोगी और हां मां, तुम सड़क पर आवारा भी घूमोगी तो चिंता मत करना, अभी किसी की इतनी मजाल नहीं जो तुमके हाथ लगाए क्योंकि इस देश में आजकल तुम्हारा बहुत सम्मान है.

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लेखक

अबयज़ खान अबयज़ खान @abyaz.khan

लेखक पत्रकार हैं

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