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Updated: 27 अगस्त, 2017 01:29 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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पंजाब के जालंधर शहर के करीब एक गांव है बल्लन. यहां पर एक बड़े से विशाल परिसर में एक बड़ी गुरुद्वारानुमा इमारत है. यह एक डेरे की है. सैकड़ों लोग गुरुजी के सत्य और कर्म पर गहन विचार सुन रहे हैं. सुनने वालों की वेशभूषा और चेहरे-मोहरों को देखकर साफ झलकता है कि समाज के गरीब-गुरुबा वर्ग से ही ये संबंध रखते हैं.

इनमें मर्द, औरतें, बच्चे, सिख, गैर-सिख यहां तक की मुस्लिम और ईसाई सब शामिल हैं. इमारत के बाहर बीसियों स्वयंसेवक सारी व्यवस्थाएं कर रहे हैं. गुरुजी का भाषण खत्म हुआ नहीं कि सब के सब लोग पंगत में बैठकर भोजन करने लगे. कहीं कोई अव्यवस्था नहीं. सब कुछ कायदे से हो रहा है. यह मंजर है एक डेरे का.

पंजाब और हरियाणा में सैकड़ों इस तरह के छोटे-बड़े डेरे चल रहे हैं. पहले संत रामपाल के सबलोक आश्रम में जो कुछ भी हुआ और अब बाबा राम रहीम के कथित कांडों के बाद इन डेरों के फलने-फूलने और इनसे जुड़े दूसरे अनेकों पक्षों पर पैनी नजर डाली जा रही है. कई सवाल भी पूछे जा रहे कि क्यों हरियाणा और पंजाब में नए-नए डेरे सामने आ रहे हैं? कहां से मिलता है इन्हें पैसा? इनमें आने वाले कौन है? क्यों आते हैं? वगैरह.

Dera Sachha Sauda, Religionडेरा लोगों को सम्मान देते हैं

क्यों डेरे छाने लगे

हिन्दू और सिख धर्म के सामाजिक-आर्थिक रूप से सबसे कमजोर समझे जाने वाले लोग ही इन डेरों में ज़्यादातर पहुंचते हैं. क्यों पहुंचते है? कई वजहों में से एक तो यह है कि इनमें इन लोगों की काफी हद तक आध्यात्मिक प्यास मिटती है. उससे बड़ी बात यह है कि सबको बराबरी का हक मिलता है. किसी को भी दुत्कारा या धिक्कारा नहीं जाता!

हालांकि, पंजाब और हरियाणा तो सौ वर्षों से भी ज़्यादा समय से आर्य समाज और सिख धर्म से प्रभावित इलाके रहे हैं. पर इनमें अभी भी जाति का जहर बहुत अंदर तक फैला हुआ है. दलित हिन्दुओं और सिखों को अगड़ी जाति के ठेकेदार, मंदिरों और गुरुद्वारों में हीन भावना से देखते हैं और उन्हे सम्मानपूर्ण जगह नहीं देते. आप कह सकते हैं कि दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को अपने ही धर्मस्थलों में अभी भी बराबरी का स्थान नहीं मिलता. पर इन डेरों में ससम्मान शरण मिल जाती है.

डेरों में एक खास वर्ग को स्पिरिचुअल स्पेस तो मिलता है. इनमें बहुत से लोग अपनी अनेकों छोटी-मोटी मन्नतों को पूरा करवाने के लिए 'बाबा', 'संत, 'महाराज' या 'गुरुजी' से आशीर्वाद भी लेने जाते हैं. इन्हें लगता है कि डेरों में बाबा के आशीर्वाद मिलते ही इनका काम बनने लगेगा. इनमें पुत्र पाने की इच्छा से लेकर अपने पति या भाई को शराब के नशे से मुक्ति दिलवाने के लिए, बेटियों का बढ़िया रिश्ता हो जाये या घर में अच्छी बहू आ जाए की कामना लेकर भी बहुत सी स्त्रियां पहुंचती हैं.

Dera Sachha Sauda, Religionडेरा अनुयायी अपने धर्म के साथ रह सकते हैं

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इन डेरों में समाज सुधार का भी एक पुट तो है ही! ये शराब और दूसरी नशे की आदतों के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं. अभियान भी चलाते हैं. वैसे, पुत्र पाने की चाहत में ही हरियाणा और पंजाब देश के भ्रूण हत्या के मामले में सबसे कुख्यात प्रदेश भी बन गए.

यह तो सर्वविदित ही है कि पंजाब और हरियाणा का एक बड़ा युवावर्ग नशे के चंगुल में है. इन्हीं डेरों में नशे की लत के शिकार शख्स को उसे छोड़ने के लिए प्रेरित भी किया जाता है. जाहिर है, यह भी एक बड़ा कारण है जिसके चलते तमाम दु:खी और ज़रूरतमंद लोग इन डेरों का रुख करने लगे हैं.

बाबा तो दलित नहीं

यह जरूरी नहीं है कि डेरों के प्रमुख संत या बाबा भी दलित हों या फिर किसी पिछड़ी जाति से आते हों. उदाहरण के रूप में आप सिरसा, हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा को ही ले लीजिए. यह पंजाब के मालवा क्षेत्र से लगता हुआ इलाका है. इसके प्रमुख बाबा राम रहीम राजस्थानी मूल के जाट हैं. इसके ज्यादातर प्रमुख प्रबंधनकर्ता भी ऊंची जातियों के हिन्दू और सिख हैं. पर इसमें आस्था रखना वाले बेहद पिछड़ी जातियों के हिन्दू-सिख हैं. इससे मिलते-जुलते चरित्र के कई और भी डेरे हैं.

Dera Sachha Sauda, Religion

वैसे कहने को तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) सच्चा सौदा डेरे का कड़ा विरोध करती रही है. पर अकाली दल के अनेकों नेता डेरे के हर चुनाव में समर्थन के लिए लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं. बदले में डेरों को नेताओं से धन इत्यादि के रूप में लाभ भी मिलता ही रहता है. डेरों से जुड़े लोग यह कहने से नहीं थकते कि ये मोटे तौर पर गैर-राजनीतिक होते हैं, पर सच्चाई यह नहीं है. ये मतदान की तिथि से पहले किसी खास नेता या दल के हक में वोट देने की अपील कर ही देते हैं. बहुत साफ है कि डेरों का सियासत से अप्रत्यक्ष संबंध तो है ही. सियासी नेताओं के प्रश्रय के बिना ये इतना फैल ही नहीं सकते थे.

पंजाब पिछले 70 सालों के भीतर कई बार बदला. 1947 में देश के विभाजन के कारण इसका एक बड़ा भाग पाकिस्तान चला गया. 1966 में पंजाब से हरियाणा अलग हुआ. इसके बावजूद पंजाब और हरियाणा में बाबा, गुरु, पीर, संतों के डेरों का बढ़ना भी जारी ही रहा. समाज के भीतर अपने लिए अलग स्थान की चाहत रखने वाले राजनीतिज्ञ, व्यवसायी और समाजसेवी भी इन डेरों के बाबाओं, संतों वगैरह की शरण में निकल पड़े. जानने वाले जानते हैं कि 70 और 80 के दशक डेरों के फलने-फूलने के लिहाज से बेहद मुफीद रहे थे. कारण यह था कि तब पंजाब और हरियाणा में दलितों और दूसरी पिछड़ी जातियों में अपने हकों को लेकर जागरूरकता आने लगी थी.

भिंडरावाले का डेरा

ज्यादातर डेरे सिख गुरुद्वारों की तर्ज पर ही चलाये जाते हैं. इनकी देखरेख कोई संत या बाबा और उसके प्रबंधक लोग ही करते हैं. पुराने डेरों को अब पहले के संत या बाबा के प्रियतम शिष्य देखने लगे. संत भिंडरावाले का संबंध भी एक दौर में एक डेरे से ही था. वह आगे चलकर सिख मिलिटेंसी के प्रतीक बन गये. इसी तरह से एसजीपीसी प्रमुख रहीं बीबी जागीर कौर का भी अपना एक डेरा संचालित होता है.

Dera Sachha Sauda, Religionयहां आकर लोगों को शांति मिलती है

कहां से आता है अपार धन?

डेरों में रोज सैकड़ों-हजारों लोगों को भरपेट भोजना आख़िरकार सबों को मिलता कहां से है? कौन इनको फाइनेंस करता है? ये कुछ बेहद अहम सवाल हैं. इन प्रश्नों के जवाब तो कोई भी जानना चाहेगा.

संत रामपाल के आश्रम में भी रोज़ सैकड़ों लोग भोजन करते थे. उनसे कोई पैसा नहीं लिया जाता था. इतने लोगों को रोज खाना खिलाने से लेकर लंबे चौड़े आश्रम चलाने के लिए जाहिर तौर पर पर्याप्त धन तो डेरों में आस्था रखने वालों की तरफ से नहीं आता. ये तो ज़्यादातर दीन-हीन और आर्थिक रूप से कमज़ोर होते हैं. इन्हें फाइनेंस करने में प्रमुख तो इनके कुछ बड़े धनाढ़्य शिष्यों से लेकर राजनीतिक दलों के नेतागण ही होते हैं. इन नेताओं को संत, बाबा वगैरह चुनावों के वक्त अपने शिष्यों के वोट दिलवाने का वादा करते हैं.

उदाहरणार्थ हाल ही में बलबीर सिंह ने गुरुदासपुर के दो डेरों का दौरा किया. इन डेरों के पास क्रमश: 400 से 600 एकड़ जमीन है. राधा स्वामी और डेरा सच्चा सौदा के पास तो इससे भी ज्यादा अचल संपत्ति है. राधा स्वामी डेरे के पास तो पूरे भारतवर्ष में अपने बहुत से भूमि अधिग्रहण अधिकारी भी हैं. जाहिर है, इनका काम देश भर में घूम-घूमकर बड़े-बड़े भूखंडो और फार्मों को खरीदना ही होता है. इन डेरों की अचल संपत्ति की कीमत बहुत अधिक होगी. इसके अलावा सभी डेरों के पास अनेकों स्थायी सम्पत्तियां और फिक्सड डिपोजिट भी हैं.

खेती से भी कमाते हैं डेरे

Dera Sachha Sauda, Religionधर्म ने लोगों को पागल कर दिया है

कुछ डेरे अपनी लंबी-चौड़ी खेती करके भी अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं. उदाहरण के रूप में राधास्वामी के मात्र एक डेरे में ही 400 एकड़ में खेती होती है. यहां पर रोज 45-50 क्विंटल दूध का उत्पादन भी होता है. इसी तरह से तमाम फसलें भी उगाई जाती हैं. उन्हें बाजार में बेचकर भी पैसा कमाया जाता है. यह डेरा हिसार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से बीजों की खरीद करता है. इनके डेरे पूरे देश में फैले हुए है.

हाल ही में बिहार के बक्सर जिले में स्थित बिहार निर्माता और संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा के ग्राम मुरार जाना हुआ. वहां मैं एक सड़क बनवा रहा था. रास्ते में एक लम्बी सी चहारदीवारी दिखी जो सड़क के साथ-साथ मीलों तक जा रही थी. मुझे लगा कि कोई भारी भरकम फैक्ट्री होगी. पूछा तो पता चला कि ये राधास्वामी का डेरा है. यदि चाहिए तो बढिया बासमती चावल यहां प्राप्त होता है. इसलिए यह कहना भी ठीक नहीं रहेगा कि डेरों की आय के सारे स्रोत ही संदिग्ध या भ्रष्ट हैं. इस तरह के और भी बहुत से डेरे हैं.

बिहार, उत्तर-प्रदेश और पूर्वी भारत में इसी प्रकार से ठाकुर अनुकूलचन्द्र का "सत्संग", हरिद्वार का गायत्री महापरिवार, असम का सारस्वत मठ, रामकृष्ण मिशन, भारत सेवाश्रम संघ, महर्षि मेंहीं, चतुर्भुज सहाय और सफलदेव महाराज के सत्संग भी चलते हैं जिनके लाखों अनुयायी हैं. इनमें से अधिकांश तो भागवत सेवा और समाजसेवा में भी लगे हैं. लेकिन समय-समय पर ऐसे डेरे या बाबा पैदा हो ही जाते हैं, जो भ्रष्ट पदाधिकारियों, अपराधियों, तस्करों के लिए "सेफ़ हाउस" प्रदान करते हैं. और कई डेरों में यौन शोषण भी होता है.

Dera Sachha Sauda, Religionलोगों की भावनाओं को ये डेरे छूते हैं

सत्तर के दशक के शुरुआत में मैंने अपनी अनुसंधानपरक रिपोर्टों और लेखों के माध्यम से इन ढोंगी और धूर्त बाबाओं के विरुद्ध आन्दोलन का वातावरण खड़ा किया था. जिसके फलस्वरूप अंक बाबा को तो आजीवन कारावास हुआ और दूसरे बाबा स्थायी रूप से अमेरिका भाग गए. दस-पांच साल में कभी भारत-भ्रमण भी कर लेते हैं. लेकिन भारी सुरक्षा के बीच.

यह बात तो पहले हो ही चुकी है कि अधिकांश डेरे अपने शिष्यों की आध्यात्मिक भूख मिटाने के अलावे इन्हें भरपूर संरक्षण भी देते है. वे अपने शिष्यों को एक प्रकार से सुरक्षा का भाव और अपनत्व भी देते हैं. जो मंदिरों और गुरुद्वारों में नहीं दिखता. मदिरों और गुरुद्वारों में तो आप एक बड़ी भीड़ का हिस्सा होते हैं. डेरों में आने वाले तर्कों के आधार पर डेरे के कामकाज तथा वहां के बाबा की कथित शक्तियों पर सवाल भी नहीं खड़े करते.

शिष्यों को तो लगता है कि डेरे से उनका कल्याण ही होगा. आप एक बार किसी डेरे से जुड़ गए तो आपको इस तरह का अहसास करवाया जाएगा कि अब आपके सारे सुख-दुख डेरे के हैं. यह बात निर्धन और निरीह ज़रूरतमंद लोगों को छू जाती है. डेरे आपसे यह भी नहीं कहते हैं कि आप अपना धर्म छोड़े दें या जो भी पूजा पाठ कर रहे हैं, उसे छोड़ दें. डेरों के भक्तों को इस मामले में स्वतंत्रता प्राप्त है. आप किसी डेरे से जुड़कर भी हिन्दू, मुसलमान या सिख भी शौक से बने रह सकते हैं.

लेकिन सरकार को यह पता लगाना ही होगा कि कुछ डेरों के प्रमुख इतनी तेजी से कैसे मालामाल हो जाते हैं. रामपाल ने आध्यात्मिक सलाहकार का काम वर्ष 2000 में शुरू किया. उनका आश्रम 12 एकड़ में फैला हुआ है. उनके पास लक्जरी कारों का बड़ा सा बेड़ा है. और वह किसी तरह के कर्ज में भी नहीं हैं. उनकी लोकप्रियता की कई वजहें हो सकती हैं. एक वजह तो यह है कि वह जाति विरोधी हैं. लेकिन आख़िर यह अपार धन कहां से आ रहा है.

Dera Sachha Sauda, Religion

कुल-मिलाकर देखा जाए तो हमारा देश और सरकारें भी धार्मिक प्रगति विरोध के सवालों का सामना करने से बचती रही हैं. यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता है. यह उनको भी प्रभावित करता है जो सरकार में उच्च पदों पर आसीन हैं. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वैसे तो इनके खिलाफ थे. लेकिन 1956 में जब वो कुंभ स्नान करने गये तो ऐसी भगदड़ मची कि सैकड़ों लोगों को अखाड़ों के हाथियों ने कुचलकर मार डाला. इंदिरा गांधी को ऐसे आध्यात्मिक गुरुओं को प्रश्रय देने के लिए जाना जाता है. इंदिरा अनेकों धार्मिक गुरुओं के पास और तीर्थस्थलों पर जाती रही हैं.

राजीव गॉधी ने भी अपने 1984 के चुनाव प्रचार की शुरुआत देवर्षि देवराहा बाबा के आशीर्वाद प्राप्त करके ही की थी. जिसमें उन्हें अभूतपूर्व सफलता भी मिली थी. देवराहा बाबा प्रयाग से पटना के बीच कही भी गंगा या यमुना के बीच की रेती पर एक ऊंचे मचान पर बैठते और लोगों के सर को अपने पैर से छूकर कभी-कभी धक्का देकर भी उनको आशीष देते थे.

पटना में 1969 में जब डॉं. ज़ाकिर हुसैन पटना में बिहार के राज्यपाल थे. तब गंगा की रेती पर डेरा डाले हुए देवराहा बाबा के पास अक्सर जाते रहते थे. एक दिन बाबा जब प्रसन्न हुए तब उन्होंने राज्यपाल डॉ. ज़ाकिर हुसैन का लात मारकर आशीर्वाद दिया और कहा, "लाट बच्चा, राम- राम जपते रहो. जल्दी ही रामकृपा से भारत के राष्ट्रपति बनोगे." आगे के दौर में भी यही होता रहा. समाज के उपेक्षित वर्गों की भीड़ बाबाओं के यहां लगी ही रही. विश्वास न हो तो कभी इलाहाबाद या हरिद्वार के कुंभ में जाकर देखिए.

बहरहाल संत राम रहीम के केस ने जिस तरह से देशव्यापी हंगामा खड़ा किया है, उसे देखते हुए डेरों के कामकाज पर पैनी नजर रखने की तो जरूरत है ही!

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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