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Updated: 03 अप्रिल, 2017 05:31 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
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आतंकवादियों की वकालत करने के लिए कुख्यात प्रशांत भूषण ने उत्तर प्रदेश में एंटी-रोमियो स्क्वॉड का विरोध करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को “ईव-टीज़र” कहा है. हालांकि, उनकी यह टिप्पणी मुझे अधिक हैरान नहीं करती, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में अनेक आतंकवादियों (राक्षसों) का वध किया था, इसलिए बहुत स्वाभाविक है कि आतंकवादियों का कोई वकील उनके कैरेक्टर को पसंद न करे.

उनकी इस टिप्पणी को मुद्दा मैं इसलिए नहीं बना रहा, क्योंकि अपनी धार्मिक आस्थाओं को लेकर बहुत संवेदनशील हूं, बल्कि इसलिए बना रहा हूं, क्योंकि ऐसी ही सोच वाले कई नेता इस देश में सारे विमर्श को हिन्दू-मुस्लिम तक केंद्रित कर देना चाहते हैं और जान-बूझकर सांप्रदायिक तनाव का वातावरण बनाना चाहते हैं, जो कि भारत के संदर्भ में पाकिस्तान का शाश्वत एजेंडा है. माहौल ये लोग ख़राब करते हैं और भुगतना हमारे आम हिन्दू-मुसलमान भाइयों-बहनों को पड़ता है.

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जब ये श्रीकृष्ण को ईव-टीज़र कहेंगे, गोमांस खाते हुए जुलूस निकालेंगे, कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने से इनकार करेंगे, सेना को बलात्कारी बताएंगे, आतंकवादियों के समर्थन में खड़े हो जाएंगे, अफ़ज़ल और याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देंगे, देश के टुकड़े-टुकड़े करने का सपना देखने वालों की आज़ादी की लड़ाई लड़ेंगे, तो इस देश में अपने आप सांप्रदायिक आधार पर एक ध्रुवीकरण शुरू हो जाता है, जो भाईचारा चाहने वाले हम जैसे लोगों को बेचैन कर देता है.

"एंटी-रोमियो" नाम चाहे सही हो या ग़लत... इसकी आड़ में किसी को किसी भी धर्म के देवी-देवताओं के बारे में छिछोरी टिप्पणियां करने का लाइसेंस कैसे मिल सकता है? वैसे भी रोमियो कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं, इसलिए अगर यह नामकरण किसी को ग़लत भी लगता हो, तो इससे किसी की अवमानना तो नहीं होती. और तो और, अगर इस स्क्वॉड का नाम "एंटी-मजनूं स्क्वॉड" भी रखा जाता, तो नफ़रत के ये सौदागर उस पर भी बवाल करते और प्रचारित करते कि इसे एक ख़ास अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ बनाया गया है.

हमारा कहना है कि इस अभियान की मूल भावना देखी जानी चाहिए और इसका इम्प्लीमेंटेशन कैसा है, यह देखा जाना चाहिए. अगर इसमें कुछ गड़बड़ हो रही है, तो इस आधार पर अभियान और सरकार की आलोचना भी की जा सकती है, लेकिन महज इसके नाम को लेकर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना मुझे एक सोची-समझी शैतानी साज़िश का हिस्सा लगती है.

जान लें कृष्ण की ये बातें...

भगवान श्रीकृष्ण "ईव-टीज़र" नहीं थे. लड़कियों (गोपियों) से छेड़खानी करने का उनका कोई प्रसंग नहीं है. चूंकि उनके पात्र की कल्पना एक ईश्वर के रूप में की गई है, इसलिए नर-नारी, पशु-पक्षी सभी उनके दीवाने थे. उनका व्यक्तित्व ऐसा मोहक था कि तमाम मां-बाप उन जैसी संतान और लड़कियां उन जैसे पति की कामना करती थीं. आधुनिक भाषा में इसे उनकी फैन फॉलोइंग कहा जा सकता है.

जैसे आजकल सितारों की फैन फॉलोइंग होती है. देवानंद, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना से लेकर शाहरुख ख़ान, सलमान ख़ान तक. गावस्कर और कपिलदेव से लेकर सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली तक. अपने-अपने समय में इन सबकी लाखों लड़कियां दीवानी रही हैं, तो इससे ये लोग "ईव-टीज़र" हो जाते हैं क्या? ये लोग तो किसी एक कला के मास्टर हैं, भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता है कि वे सोलह कलाओं के स्वामी थे. ज़ाहिर है, उनकी फैन फॉलोइंग और भी बड़ी होगी.

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जिन सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियों वाले किस्से को लेकर अक्सर प्रशांत भूषण जैसे लोग तंज़ कसा करते हैं, उनमें से सोलह हज़ार एक सौ राजकुमारियां उस वक्त के कुख्यात आतंकवादी (राक्षस) नरकासुर की कैद में थीं. श्रीकृष्ण ने उन्हें उनकी कैद से मुक्त कराया और उन सबने उन्हें अपना पति (स्वामी) मान लिया. इस प्रसंग में पति का आशय मूल रूप से स्वामी, रक्षक, मालिक, दाता, राजा, दयालु या कृपालु होने से ही है.

"पति" एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है. यह अंग्रेज़ी के "Husband" का अनुवाद नहीं है. अगर भगवान गणेश को गणपति, इंद्र को सुरपति, शेर को मृगपति, हिमालय को नगपति और राजा को भूपति कहा गया है, तो प्रशांत भूषण जैसे वकील इसका अर्थ कुछ यूं लगा सकते हैं कि भगवान गणेश सभी गणों के हसबैंड थे, इंद्र जी सभी देवताओं के हसबैंड थे, शेर हिरणों का हसबैंड होता है, हिमालय नगों (कीमती पत्थरों या पहाड़ों) का हसबैंड होता है और राजा धरती का हसबैंड होता है.

नरकासुर, बंदी राजकुमारियों और कृष्ण वाले प्रसंग को लेकर आतंकवादियों के वकील प्रशांत भूषण की टीस दरअसल यह है कि कृष्ण ने उस आततायी आतंकवादी के साम्राज्य को चुनौती क्यों दी और उसका वध क्यों किया? अगर प्रशांत भूषण उस दौर में होते, तो वे नरकासुर की जान बचाने के लिए श्रीकृष्ण के ख़िलाफ़ वैसे ही अभियान चलाते, जैसे इन दिनों उन्होंने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन को बचाने के लिए चलाया था.

ईव टीज़र वह होता है, जो लड़कियों से छेड़खानी करे. छेड़खानी मतलब ही है कि इसमें लड़की की मर्ज़ी नहीं होती और लड़के की तरफ़ से एकतरफ़ा उसे परेशान किया जाता है. श्रीकृष्ण के ख़िलाफ़ प्रशांत भूषण एक भी ऐसा प्रसंग बता दें, जिसमें लड़कियों ने उनसे परेशान होकर उनके आचरण की शिकायत की हो. शिकायत हुई नहीं तो "ईव-टीज़र" कैसे हो गए? क्या किसी "ईव-टीज़र" के प्रति समाज में वैसी दीवानगी हो सकती है, जैसी श्रीकृष्ण के लिए बताई जाती है?

ज़ाहिर है, वकील होकर भी प्रशांत भूषण को या तो "ईव-टीज़र" शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम है या फिर वे समाज के असली "ईव-टीज़र्स" को बचाना चाहते हैं, उन्हें भगवान कृष्ण जैसा बताकर. आख़िर आतंकवादियों के वकील से इसके सिवा और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है?

प्रशांत भूषण के बारे में कुछ और बातें समझ लेना ज़रूरी हैं. ये इतने ईमानदार हैं कि जनलोकपाल वाली पांच लोगों की कमेटी में बाप-बेटे दोनों बैठ गए. बाप-बेटे दोनों की सैंकड़ों करोड़ की वैध-अवैध संपत्ति है, जिनपर उंगलियां भी उठती रही हैं. आम आदमी पार्टी बनाई, लेकिन केजरीवाल ने बेइज्जत करके पार्टी से निकाल दिया. फिर योगेंद्र यादव के साथ स्वराज पार्टी बनाई, लेकिन इस पार्टी का कोई भविष्य नहीं है. इसकी आड़ में थोड़ा चंदा इकट्ठा करना और थोड़ी टैक्स चोरी करना- यही उनका मकसद है, वरना वे भी जानते हैं कि चुनाव में उतरे तो अपनी ज़मानत ज़ब्त कराने का रिकॉर्ड बनाएंगे.

यानी यह सुपर-फ्लॉप नेता भारी फ्रस्ट्रेशन में है. चर्चा में बने रहने के लिए सस्ती पब्लिसिटी चाहिए. लेकिन देश की सेना को गाली देंगे, तो लोग अब बर्दाश्त करेंगे नहीं. केजरीवाल को गाली देंगे, तो कोई सुनेगा नहीं. योगेंद्र यादव को गाली देंगे, तो बुद्ध की तरह वे उन्हें ही वापस लौटा देंगे. इसलिए गाली देने के लिए इस बार उन्हें कोई ऐसा नाम चाहिए था, जो सीधा लोगों के दिल पर चोट करे. बदनामी से नाम कमाना उनका आजमाया हुआ प्रयोग है. इस प्रयोग से उन्हें बार-बार पब्लिसिटी मिल ही जाती है. इसी पब्लिसिटी से उनका धंधा चमकता है.

ज़ाहिर है, लाज-शर्म वाली उनकी ग्रंथि इतनी भोथरी हो चुकी है कि बार-बार मुंह पर कालिख पुतवाकर भी वे अपना आचरण सुधारने को तैयार नहीं हैं. अपना आचरण ठीक है नहीं, भगवान श्रीकृष्ण के लिए आचरण प्रमाण पत्र जारी करने चले हैं. अब उन्हें तो अभिव्यक्ति की आज़ादी है, लेकिन हम अगर आलोचना करें, तो इसे वे असहिष्णुता का महा-विस्फोट बताएंगे. बीजेपी और आरएसएस को गालियां देंगे. मोदी और योगी को कोसेंगे.

सच... प्रशांत भूषण जैसे लोगों ने ग़ज़ब प्रदूषण फैला रखा है. कोई “ईव टीज़र” तो किसी के तन से छेड़खानी करता होगा, ये ऐसे ईव-टीज़र हैं, जो लोगों की आत्मा तक को नोंच-खरोंच डालते हैं.

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लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

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