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Updated: 02 जुलाई, 2017 08:11 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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हम एक बड़े मुश्किल दौर में जी रहे हैं, मुश्किल दौर इसलिए कि आज के समय में लोग ज्यादा से ज्यादा दिखना और छपना चाहते हैं. कहा जा सकता है कि दिखने की भूख और छपने की चाह ही वो दो कारण हैं जिसके चलते लोग कई बार ऐसा कर जाते हैं जिसको देखकर न सिर्फ तकलीफ होती है बल्कि मन ये भी सोचने को मजबूर हो जाता है कि आखिर अपने कृत्यों से हम देश को कहां ले जाना चाहते हैं.

हम बात आगे बढाएंगे मगर उससे पहले आपको एक खबर से अवगत कराना चाहेंगे. खबर है कि लोकप्रिय अभिनेता और भाजपा सांसद परेश रावल ने भीड़ के हाथों मारे गए लोगों के मामले में होने वाले प्रदर्शनों को ढोंग और कपट का माध्यम बताया है. हालिया दिनों में भीड़ के हाथों बढ़ रही लिंचिंग के मामलों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए रावल ने कहा है कि, 'कोई भी इंसान कहीं भी मरता है तो वो मेरे लिए हिंदू या मुस्लिम नहीं है बल्कि किसी परिवार का सदस्य है.' #NotInMyName जैसे हैश टैग पर अपना मत प्रकट करते हुए रावल का मानना है कि #NotInMyName और शेम को वो नहीं मानते और उनकी नजर में इंसानियत बड़ी चीज है.

रावल के अनुसार ऐसा करने वाले सभी लोग नकलची हैं और ये कैंडल मार्च जैसी चीजें और कुछ नहीं बस ढोंग हैं, अब वो समय आ गया है जब लोगों को विरोध का कोई नया तरीका लाना चाहिए. बहरहाल रावल ने जो कहा उसपर विचार किया जाना चाहिए. विचार इसलिए क्योंकि रावल ने और कुछ नहीं बस सत्य दोहराया है. एक ऐसा सत्य जो एक साथ कई समाज सुधारकों की जीभ खट्टी कर सकता है.

परेल रावल, भाजपा, बयान परेश रावल ने जो सच कहा है, वो कड़वा है, आपको बुरा लग सकता है

आज जो हालात हैं उनके मद्देनजर यही कहा जा सकता है कि हर कोई क्रांति कर रहा है. कोई हाथ में काली पट्टी बांधे क्रांति कर रहा है तो कहीं कोई भगवा अंगोछा ओढ़ के. किसी के लिए क्रांति का मतलब टीवी पर आना और अखबार में छप जाना है तो किसी के लिए फेसबुक पर फॉलोवर जुटाना है. कहीं समोसे पर हरी चटनी डाल के क्रांति हो रही हैं तो कहीं बाटी चोखे संग क्रांति के बिगुल बजाए जा रहे हैं. कहा जा सकता है कि आज के समय में लोग डॉक्टर नारंग के नाम पर तो कभी जुनैद और अख़लाक़ के नाम पर क्रांति कर रहे हैं, करे जा रहे हैं और इसका उद्देश्य बस अपने आप को फायदा पहुंचना भर है.

हम परेश की बात से इत्तेफाक रखते हैं और मानते हैं कि जो होना है वो हो चुका, जो हो रहा है वो बेचैन करने वाला है और भविष्य में भी जो होगा वो भी दुखद है. मगर आज जो एक तरफ़ा क्रांति हो रही है वो और कुछ नहीं बस फेसबुक की डीपी बदलने और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने का माध्यम बनकर रह गयी है.

मानिए या न मानिए लेकिन बेमतलब तो कोई अपने रिश्तेदारों की अंतिमयात्रा में भी नहीं जाता. वहां भी कुछ लोगों के लिए पूड़ी, सब्जी, चावल, रायते, और कुछ लोगों के लिए बिरयानी, सालन और सलाद का मोह रहता है. विश्वास करिये इन क्रांतियों को करने के पीछे कहीं न कहीं आपका भी कुछ स्वार्थ है. शायद ये आपका स्वार्थ ही है जो आपको दिखास, छपास, सुनास के पीछे ढकेल रहा है और आज आप इन्हीं के भूखे बन कर रह गए हैं.

आपके अन्दर सहानुभूति है, ये एक बहुत अच्छी बात है मगर इसे सबके लिए रखिये आपको दीपू शुक्ला के मरने पर भी उतना ही अफसोस होना चाहिए जितना शमशाद खान की मौत पर. मरे डॉक्टर नारंग भी हैं और पहलू खान, अख़लाक़ और जुनैद भी. ऐसे में आप नारंग को नजरअंदाज करके पहलू और अख़लाक़ पर अपना दामन गीला करें तो ये आपकी नीयत का खोट है.

बहरहाल, हम पुनः परेश की बात का समर्थन करते हुए यही कहेंगे कि यदि भीड़ किसी को मार रही है तो ये मत देखिये कि वो हिन्दू है या मुसलमान बस ये देखिये कि वो एक इंसान है. इसके बावजूद अगर आप मरने वाले इंसान को हिन्दू मुसलमान के तराजू में तौल रहे हैं तो फिर आपको एक मुसलमान की मौत का जितना अफसोस होना चाहिए उतना ही रंज आप एक हिन्दू की मौत पर करिए. याद रखिये आपका ये दोगला रवैया और कुछ नहीं बस देश को तोड़ने और उसे बांटने का काम कर रहा है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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