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Updated: 17 अक्टूबर, 2017 05:50 PM
अनूप मणि त्रिपाठी
अनूप मणि त्रिपाठी
  @anoopmani.tripathi.9
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हम भारतीय हैं और कहने को हमारा एक अदद चरित्र भी होता है. चूंकि मेरा भारत महान है, तो यहां वास करने वाले भारतीय भी महान हुए और जब भारतीय महान हुए, तो उनका भारतीय चरित्र भी महान हुआ. चरित्र का ढिढ़ोरा तब ज्यादा पिटना शुरू होता, जब कोई त्योहार हम भारतीयों के सिर पर आ खड़ा होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि तभी हमारा महान भारतीय चरित्र खुल कर उजागर होने लगता है. त्योहार से पहले खाद्य विभाग के छापे पड़ने शुरू हो जाते हैं. देश की पवित्र भूमि पर इसके होने का औचित्य अचानक से समझ में आने लगता है. 

त्योहार, भारतीय, भारतीय बाजार, मानसिकता  त्योहार में हमारा महान भारतीय चरित्र खुल कर उजागर होने लगता हैत्योहार आने से पहले इस विभाग को लेकर, इसके होने-न होने के जितने भम्र थे, वे त्योहारों के मौसम में चारों खाने चित हो जाते हैं. त्योहारों के ठीक सिर पर आ जाने पर मिलावट के खिलाफ हमारे देश में महज कुछ छापे मारने से काम नहीं चलता. इसके लिए अभियान चलाया जाता है, बकायदा अभियान.

संयम-त्याग पर बल देने वाला महान भारतीय चरित्र मुनाफाखोरी के लिए कैसे बल खा जाता है इन त्योहारों के मौसम में. ऐसे मौके पर अखबारों में हमारे भारतीय मिष्ठान-बेकरी की दुकानों का चरित्र सुर्खियां बनती हैं. कुछ सुर्खियां यहां नमूनार्थ पेश हैं- कीड़े वाले बेसन की बन रही थी मिठाइयां! पैरों से फेटा जा रहा था बूंदी को! जूते के बीच बन रही थी मिठाई! सडे़ काजू की बनायी जा रही थी मिठाई. घी के बहत्तर में से चौसठ नमूने फेल! त्योहार पर मिलावट और मुनाफाखोरों की चांदी! अब देखिए, हम महान भारतीयों का महान चरित्र कैसे भरभरा कर यकायक समाने आ कर किलोल करने लगा.

सच बात तो यह है बंधु, भारतीय उत्सव का महत्व हमारी उत्सवधर्मिता से इतर हमारे महान भारतीय चरित्र की गाढ़ी तस्वीर प्रस्तुत करने के चलते दिनोंदिन बढ़ रहा है. अभी इतने में ही भारतीय चरित्र की मुकम्मल तस्वीर आप न देख सकेंगे. भारतीय चरित्र की मुकम्मल तस्वीर तब दिखती है, जब हम उन दुकानों की मिठाइयों की पैकिंग और डिब्बों को देखते हैं. कितनी आकर्षक पैकिंग! एक से एक मॉडल के डिजाइनर डिब्बे! ऐसे इस्टाइलिस गिफ्ट हैम्पर्स की जिन्हें देख कर जुबान पर ताले पड़ जाए.

त्योहार, भारतीय, भारतीय बाजार, मानसिकता  कह सकते हैं कि हम भारतीय त्योहारों के मौसम में चारों खाने चित हो जाते हैं

मिठाई चखने की बात तो बाद की. विज्ञापन भी एक से बढ़कर एक! यहां कुछ विज्ञापन आप के नमूनार्थ पेश हैं-त्योहारों की खुशियां, फलाने स्विट हाऊस के साथ! त्योहारों की उमंग, हमारे संग! आप के जीवन में हमने घोली है मिठास! मिठाइयां देखकर मुंह में पानी आए न आए, मगर मिठाइयों की पैकिगं देखकर आंखे फटी की फटी रह जाती हैं.

कल इस तरह का विज्ञापन छपा था और आज छापा पड़ा. कल छापा पड़ा और आज भी वही विज्ञापन छपा. कई दुकान मानकों पर खरी नही उतरीं जिन्होंने कहा था कि केवल हमारे यहां केवल केवल शुद्ध देसी घी की मिठाइयां मिलती हैं, वह भी नहीं. और वह भी नहीं, जो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि नक्कालों से सावधान. पहले कभी होते होंगे, ऊंची दुकान के फीके पकवान. अब ऊंची दुकान के फीके पकवान नहीं होते. गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के जुग में हर दुकानदार चाहता है कि उसका पकवान मीठा ही हो, भले ही चीनी की जगह उसे सैकरीन क्यों न मिलाना पड़े.

आज निजी मिठास का मूल मंत्र है, पहले लाभ, बाद में शुभ. जब लाभ होगा, तभी शुभ होगा. जहां लाभ है, वहीं शुभ है. जो लाभ दे, वही शुभ है. जहां लाभ की सम्भावना अधिकतम हो, शुद्ध वही कर्म करना शुभतम है. बात हो रही थी हमारे महान भारतीय चरित्र की! हां तो, हमारा महान भारतीय चरित्र महान कैसे हुआ? हम भारतीयों के लिए त्योहार, कृत्रिम चीजों के ऊपर 'सौ फीसदी प्राकृतिक' का चिप्पी चिपका कर, शुद्ध नाम से अशुद्धियां बेचकर, 'असली खुशियों' के नाम पर धीमा जहर घोलकर चांदी कूटने का शुभ अवसर है. वस्तुतः जो नहीं होना चाहिए, वह है, और जो होना चाहिए, वह नहीं है, ऐसे में कुल मिलाकर जो बनता है, मगर दिखता नहीं, वह है हमारा महान भारतीय चरित्र.

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