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Updated: 04 जून, 2017 06:16 PM
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उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत के बाद कमल का उदय, और बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मिलना वो कारण था जिसने उत्तर प्रदेश के वोटर को एक बड़ी राहत दी थी. प्रदेश के लोगों को ये महसूस हुआ था कि लम्बे समय से अपराध और निरंकुशता झेलने वाला उत्तर प्रदेश एक आदर्श राज्य बन लोगों के सामने मिसाल कायम करेगा. बीते कई दशकों से भय की स्थिति में रहने वाली उत्तर प्रदेश की जानता को ये महसूस हो गया था कि अब योगी आदित्यनाथ ही वो व्यक्ति हैं जो उनकी चिंता का निवारण कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के ताजा हालात देखें तो मिलता है कि योगी को प्रदेश की कमान संभाले दो महीने से ऊपर हो चुका है, मगर आज भी यूपी वहीं हैं जहां वो पहले था. प्रदेश की स्थिति जस की तस है. अपराध का ग्राफ घटने के मुकाबले, लगातार बढ़ता ही जा रहा है. प्रदेश की पुलिस या तो हाथ पर हाथ धरे बैठी है या फिर ऐसे मामलों में व्यस्त है जो उसकी कार्यप्रणाली को लाकर सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं.

हालिया स्थिति में प्रदेश की पुलिस लोगों की सुरक्षा के मुकाबले गाय के प्रति ज्यादा गंभीर है. ये इतनी गंभीर है कि गाय के नाम पर इन्हें कहीं से भी गलत सूचना मिल जाए या फिर मुखबिर ही इन्हें गलत सूचना दे दे तो ये कार्यवाही के लिए तुरंत तत्पर हो जाती है. आगे बढ़ने से पहले आपको एक खबर से अवगत कराना चाहेंगे. बीते शुक्रवार उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में स्थिति फिर तनावपूर्ण हो गयी थी जब किसी ने पुलिस को गौकशी की गलत सूचना दे दी.

उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश पुलिस, योगी आदित्यनाथ गलत सूचना पर यूपी पुलिस ने करी कार्यवाही

इस सूचना पर तत्काल कार्यवाही करते हुए गांव में पुलिस आ गयी और उसने लोगों की रसोई में पक रही सब्जियों को फेंक - फेंक के गौ मांस की तलाश शुरू कर दी. लोगों ने पुलिस का विरोध किया तो स्थिति गंभीर हो गयी. बताया जा रहा है कि लोगों के उपद्रव के बाद हालात नियंत्रण में लेने के लिए पुलिस को गोली तक चलानी पड़ी.

मुजफ्फरनगर में जो हुआ वो गलत था. किसी शख्स से मिली गलत सूचना के बल पर पुलिस द्वारा लोगों को परेशान करना, पक रहा उनका खाना फेंकना और चूल्हे तोड़ना एक निंदनीय कृत्य है. साथ ही पुलिस का किसी बीमार आदमी को थप्पड़ों और लातों से पीटना पुलिस की कायरता भी दर्शाता है.

गौरतलब है कि अमूमन पुलिस घटना स्थल पर पहुंचने के बाद शिकायतकर्ता से संपर्क साधती है लेकिन मुज़फ्फरनगर के इस मामले में उसने ऐसा कुछ नहीं किया. यहां पुलिस आई और छापेमारी के नाम पर सीधे उसने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया. उनको मारा पीटा, पका हुआ खाना फेंका और पूछा गोश्त कहाँ है? ध्यान रहे कि मुज़फ्फरनगर में पुलिस का जो रूप दिखा उससे वो पुलिस कम फूड इंस्पेक्टर ज्यादा लग रही थी. बहरहाल मीडिया में मामला आने के बाद क्षेत्र के एसपी ने गावंवालों को खुश करने के लिए पूरी चौकी को सस्पेंड करने की बात कह दी है.

बहरहाल इस मामले को देखने के बाद हम इतना ही कहेंगे कि उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है उसने न सिर्फ तंत्र को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है बल्कि ये भी दर्शा दिया है कि कहीं न कहीं आज भी राज्य में व्यर्थ की बातों को ही प्राथमिकता दी जाती है. साथ ही इसने ये भी बता दिया है कि अपराध नियंत्रण, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे केवल चुनाव में वोट भुनाने के लिए हैं. जब जब राज्य में चुनाव आएँगे इन मुद्दों को भुनाया जायगा और चुनाव खत्म होते ही इन्हें वापस ठंडे बसते में डाल दिया जायगा.  

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