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Updated: 24 जून, 2017 04:19 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
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पाकिस्तान आखिर कब तक अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद के बीच अंतर करता रहेगा? उसके आतंकवाद के प्रति ढीले रवैया ने न केवल भारत अपितु स्वयं पाकिस्तान के लिए भी आतंकवाद का गंभीर खतरा उत्पन्न कर दिया है. 23 जून शुक्रवार को जब पूरी दुनिया के मुसलमान पवित्र रमजान के अलविदा जुमे में खुदा की इबादत कर रहे थे, तो पाकिस्तान आतंकी हमलों से लहुलूहान हो रहा था. पाकिस्तान के क्वेटा में आत्मघाती हमले, अल्पसंख्यक शिया बहुल पारचिनार में ईद हेतु भीड़-भाड़ वाले बाजार में दोहरे विस्फोटों तथा करांची में आतंकियों की पुलिस पर गोलीबारी में कम से कम 65 लोग मारे गए तथा 130 से ज्यादा घायल हुए.

23 जून शुक्रवार को पाकिस्तान के क्वेटा में पुलिस मुख्यालय (आईजी ऑफिस) के समीप आत्मघाती हमला में 5 पुलिसवालों सहित कम से कम 15 लोग मारे गए तथा 30 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. क्वेटा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी है तथा यह चीन के "वन रोड, वन बेल्ट" के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट स्थल के रुप में भी प्रसिद्ध है, जहाँ चीन ने 57 बिलियन डॉलर निवेश भी किया है. पुलिस के अनुसार आतंकवादी विस्फोटकों से भरे गाड़ी को संदेहास्पद के रुप में पुलिस मुख्यालय के समीप घुमा रहा था. जब पुलिस ने आतंकवादी हमलों को रोकने का प्रयत्न किया, तो आत्मघाती हमलावरों ने विस्फोट कर दिया, जिसमें 7 पुलिस वालों सहित कम से कम 15 लोग मारे गए. स्पष्ट है कि आतंकवादियों के टार्गेट पर क्वेटा पुलिस मुख्यालय ही था.

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इसके अलावा पाकिस्तान के अल्पसंख्यक शिया बहुल पारचिनार में ईद की खरीददारी कर रहे बाजार में दोहरे बम विस्फोट में कम से कम 46 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से ज्यादा घायल हुए. पहला विस्फोट पारचिनार के तूरी बाजार में हुआ जहां एक बस टर्मिनल है. दूसरा विस्फोट तब हुआ, जब बचाव कर्मियों और आसपास खड़े लोग पहले विस्फोट में घायल हुए लोगों की मदद करने पहुँचे.

वही आतंकियों ने तीसरा वारदात करांची में अंजाम दिया, जहाँ शाम में मोटरसाइकिल पर सवार दो सशस्त्र लोगों ने एक रेस्तरां में पुलिस अधिकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें 4 पुलिस अधिकारी मारे गए. सेना के विमान से पारचिनार के घायलों को पेशावर भी लाया गया है. इससे पूर्व 24 अक्टूबर को पाकिस्तान के क्वेटा से 20 किमी दूर 'बलूचिस्तान पुलिस कॉलेज' पर आतंकवादी हमले में करीब 61 लोग मारे गये, जबकि 100 से ज्यादा घायल हुए. यहाँ पर 2006 तथा 2008 में भी आतंकवादी हमले हो चुके हैं. क्वेटा जो बलूचिस्तान का महत्वपूर्ण क्षेत्र है, लंबे समय से आतंकवादी हमलों के चपेट में रहा है. यह क्षेत्र इरान एवं अफगानिस्तान की सीमा से संबद्ध है.

पाकिस्तान ने आतंकवाद से निपटने के लिए "नेशनल एक्शन प्लान" बनाया था, जिसमें 20 विंदु थे. इसके अनुसार पाकिस्तान में आतंकवाद के परिचालन पर पूर्णत: रोक लगाना था. परंतु वास्वविक स्थिति यह है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों को भी सरकार एवं सेना का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है. वहाँ के सरकार के वरिष्ठ नेता और मंत्री आतंकवादियों से मिलते हैं. कानूनी कार्यवाही को आधे अधूरे ढंग से क्रियान्वित कर हाफिज सईद एवं मसूद अजहर जैसे आतंकवादी खुलेआम घुम रहे हैं. ऐसे में पाकिस्तान का आतंकवाद से निपटने के लिए नेशनल एक्शन प्लान केवल "आई वाश" के रुप में ही दिखा.

पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद को एक प्रमुख साधन के रुप में प्रयोग करता रहा है. वह गुड तालिबान और बेड तालिबान का अंतर आज भी कर रहा है. पेशावर में जब आर्मी स्कूल पर आतंकवादी हमले में काफी संख्या में मासूम मारे गए थे तब लगा था कि पाकिस्तान गुड और बेड तालिबान के अंतर को खत्म करके आतंकवाद से दृढ़ता से लड़ेगा.परंतु पाकिस्तान को तो मानो आतंकवाद के जननी राष्ट्र का खिताब ही पसंद है. पाकिस्तान की जो आंतरिक हालत है,उसमें अब भी कोई परिवर्तन नहीं दिख रहा है,बल्कि आतंकवाद के प्रति एक विशिष्ट नीति दिख रही है कि जो आतंकवादी गुट भारत में सक्रिय हो या अफगानिस्तान में, उनके विरुद्ध कार्यवाई नहीं करना है. हाल ही में अमेरिकी पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान सरकार स्वयं खुलकर आतंकवाद का पोषण कर रही है, जो भारत,अफगानिस्तान सहित संपूर्ण विश्व के लिए खतरा है. साथ ही ट्रंप अब पाकिस्तान को आर्थिक सहायता के पक्ष में भी नहीं है.वहीं पाकिस्तान का सदाबहार मित्र चीन जो विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान के आतंकवादी करतूतों पर पर्दा डालता है तथा मौलाना मसूद अजहर इत्यादि का खुलकर बचाव करता है, अब उसने भी संघाई सहयोग संगठन के आस्ताना बैठक में पाकिस्तान को आँख दिखाई और नवाज शरीफ से कोई वार्ता नहीं की.

पाकिस्तान को स्पष्टत: समझ लेना चाहिए कि आतंकवादी किसी के प्रति सहानुभूति नहीं रखते;चाहे वे उसके संरक्षक या पोषक ही क्यों न हो.सच में अगर पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ना चाहता है तो उसके पास केवल एक विकल्प है कि वहाँ की सरकार मुख्यत: सेना और इस्लामी गुट,जो समाज और सरकार पर पूर्णत:प्रभावी नियंत्रण रखते हैं,आतंकवाद के विरुद्ध बिगुल फूँक दें. अगर पाकिस्तान ऐसा करता है,तो न केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में पाकिस्तान को सहयोग देंगे.लेकिन वर्तमान स्थिति में यह केवल कपोल कल्पना के ही समान है.इस संदर्भ में भारत और अफगानिस्तान दोनों को मिलकर आतंकवादी हमलों से लड़ना होगा,क्योंकि दोनों ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमलों से पीढ़ित हैं.

अब एक मूल सवाल उठता है कि आखिर पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर अपने रवैया में सुधार क्यों नहीं करता? दरअसल देखा जाए तो पाकिस्तान में 3 दशकों से भी ज्यादा समय या यूँ कहे कि जनरल जिया से लेकर आज तक ईस्लाम की गलत व्याख्या करते हुए कट्टरपंथियों ने आतंकवाद की जड़ें काफी गहरी कर दी है.ये पाकिस्तान में भी स्कूल,अस्पताल,कॉलेज जैसे सॉफ्ट टारगेट पर हमला करता है. क्वेटा हमले के लिए मुख्यत: लश्करे जहाँनवी को दोषी माना जा रहा है, जो कि शियाओं को ही अपना शिकार बनाता है.Pakistan

इसके अतिरिक्त पाकिस्तान में आतंकवादियों को संरक्षण देने में वहाँ के सरकार एवं फौज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. पाकिस्तान की सरकार, जहाँ अपनी आंतरिक अक्षमताओं को छुपाने के लिए भारत-विरोधी माहौल बनाने के लिए आतंकवाद को पोषित करती है, वहीं पाकिस्तानी सेना का भी इसमें व्यावासायिक लाभ निहित है. भारत विरोधी माहौल में फौज को भी भारी मात्रा में देशी विदेशी फंडिंग होती है. इसके अतिरिक्त जो सर्वविदित तथ्य है, वह है आतंकवाद और पाकिस्तान का घनिष्ठ संबंध.

पेशावर आर्मी स्कूल पर आतंकवादी हमले के बाद यह लगा था कि पाकिस्तानी सेना की आतंकवाद के प्रति भूमिका परिवर्तित होगी, और वह आतंकवादियों से सख्ती से निपटेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में अब जब पाकिस्तान के पुलिस एकेडमी पर हमला हुआ है, तो यह सोचना कि फौज के रूख में परिवर्तन होगा पूर्णत: गलत है. आर्मी स्कूल, मूलत: आर्मी का ही भाग था, जिसमें वरीय सैन्य अधिकारियों के बच्चे पढ़ रहे थे, लेकिन इस बार हमला पुलिस एकेडमी पर हुआ है, जिसका सेना से कोई संबंध नहीं है.

उरी आतंकवादी हमलों के बाद पाकिस्तान भारत के "सर्जिकल स्ट्राइक" और अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार को झेल रहा है. उरी आतंकवादी हमले के विरोध में भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के सार्क में भाग नहीं लेने के कारण पाकिस्तान में सार्क का आयोजन नहीं हो पाया. दूसरी ओर भारत ने सफलतापूर्वक न केवल ब्रिक्स का आयोजन किया अपितु बिम्सटेक आउटरीच के माध्यम से पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य दक्षिण एशियाई व दक्षिण पूर्व एशियाई महत्वपूर्ण देशों को आमंत्रित कर सफलतम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. इसी बीच अब अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी अब पाकिस्तान को सबक सीखाने की बात कही है.

वहीं अगर पाकिस्तान आतंकवादियों पर समुचित कार्यवाई नहीं करता है, तो भारत भी उस पर एकतरफा बड़ा सर्जिकल स्ट्राइक के लिए बाध्य होगा.

गुरुवार को भी पाकिस्तान के बॉर्डर एक्शन टीम ने भारतीय सेना के 2 जवानों को घात लगाकर हमला कर शहीद कर दिया, जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी बैट के 2 जवानों को मार गिराया. पाकिस्तान बार-बार भारत के धैर्य को कमजोरी मानने का भूल न करे.

अगर कोई भी समाज या मुल्क इस प्रकार के रास्ता अपनाएंगे, तो बार बार मुझे भस्मापुर की कहानी याद आती है. ऐसी शक्तियों का समर्थन अंतत: समर्थन करने वाले को ही नष्ट कर देता है. बावजूद आने के बाद भी कुछ परिवर्तित होने की संभावना कम ही है. सच तो यही है कि पाकिस्तान जितना जल्द भस्मासुर के कहानी के मूल संदेश को समझ जाए, वह उतना ही अच्छा होगा.

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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