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Updated: 24 सितम्बर, 2016 11:28 AM
प्रेरणा कौल मिश्रा
प्रेरणा कौल मिश्रा
  @PrernaKoulMishra
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ये इंटरवल अलग था. किसी ने कुछ नहीं कहा. पॉपकॉर्न, कोला..कुछ नहीं. कोई मांग नहीं. मेरी 11 साल की बेटी मेरी ओर मुड़ी और कहा 'मॉम, मुझे लगता है कि मैं समझ गई हूं कि आपका क्या मतलब था.' ऐसा लगा कि उसने ये बात सबकुछ जानते-समझते हुए कही. 'कभी कभी चीजें आपके हाथ से बाहर चली जाती हैं. अनजाने में. ऐसा जानबूझ कर नहीं किया जाता लेकिन शायद हो जाता है. है ना?'

हम 'पिंक' देख रहे थे. फिल्म अभी आधी ही खत्म हुई थी और मुझे ऐसा लगा कि मेरी बेटी जो मेरे बगल में ही बैठी थी, थोड़ी बड़ी हो गई. और ऐसा होने का इससे अच्छा समय नहीं होता.

दरअसल, पिछले कुछ दिन हम मां-बेटी के लिए काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे. उसने बताया था कि वो एक दिन अपने दोस्त के घर पर बिताना चाहती थी. समस्या ये नहीं थी. समस्या इस बात को लेकर थी कि ये ऐसी दोस्त थी, जिससे मैं कभी मिली नहीं थी. उसके माता-पिता के बारे में मैं नहीं जानती थी और यही नहीं, वो दोस्त भी स्कूल में मेरी बच्ची से कुछ साल सीनियर थी. कुछ भी ऐसा नहीं था, जो मेरी चिंता का कारण नहीं बनता. वो भी तब जब बड़े होते बच्चों को लेकर आप हमेशा जागरूक और कुछ न कुछ परखने की कोशिश में लगे रहते हैं.

मैंने तब जो भी कहा, वो सब कुछ बेअसर जैसा साबित हो रहा था. और दुर्भाग्यवश, इसकी वजह शायद मैं ही थी. मैंने अपनी बेटी को बिना डर के रहना सिखाया है. मैंने उसे विश्वास करने और सबके बीच प्यार से रहने की सीख देते हुए बड़ा किया है. अब तक मुझे कभी ऐसी जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि मैं उसे किसी तरह की नकारात्मक बात बताऊं. जबकि असल दुनिया में हकीकत कुछ और है.

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लेकिन अब समय आ गया है. वो बड़ी हो रही है और जरूरी है कि मैं उसे इस जिंदगी की क्रूर और काली सच्चाईयों से भी रूबरू कराऊं. एक मां के लिए ये सबसे कठिन काम होता है.

अजनबियों से डरो, लोगों के मंसूबों को लेकर सतर्क रहो, जाने-अनजाने लोगों के दोस्ताना व्यवहार को परखने की कोशिश करों... आदि. अपनी ही मासूम बच्ची को ये सब बताना, ऐसा लगता है कि जैसे अपनी ही हार है.

लेकिन एक पैरेंट होने के नाते कभी न कभी आपको ये सब करना पड़ता है.

मैंने कई घंटे उससे बात करने और ये बताने में बिताए कि क्यों मैं उसे अजनबी घर में अजनबी लोगों के साथ नहीं रहने दे सकती. लेकिन मेरी अपनी ही दी हुई शिक्षा और ट्रेनिंग इसके आड़े आ रही थी. मैं अब उससे कह रही थी कि उसने अब तक जो सीखा है, भूल जाए और हर बात पर संशय और शक करने की आदत अपना ले. ये और बात है और शायद अच्छी बात भी कि कि वो लगातार बेहद प्रबल तरीके से मेरी बातों का विरोध कर रही थी.

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बहरहाल, सिनेमा हॉल की बत्ती एक बार फिर बुझ चुकी थी और हम एक बार फिर फिल्म की कहानी में उलझ गए. लड़कियों के लिए रूलबुक और तमाम बातें फिल्म में आईं और हम कुछ और सच्चाइयों के साथ घर आ गए.

इस फिल्म ने जिस तरह नारीवाद जैसे एक बेहद संवेदनशील मुद्दे को छुआ है, उससे मैं वाकई स्तब्ध और प्रभावित हूं. ये एक तरह से किसी आइने में देखने की तरह है जो उसी दृष्टिकोण को दिखाती है, जिसे आप वाकई देखना चाहते हैं.

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फिल्म देखने वालों ने दीपक सेहगल के रूलबुक के व्यंग्‍य को जिस नजरिए से भी देखा हो, मैं उसे एक गाइड की तरह देखती हूं. एक गाइड जो कहता है- 'पछताने से बेहतर है कि महिलाएं खुद सुरक्षित रहें'.

इस नियम वाली किताब के अनुसार...

- महिलाओं के अधिकारों पर जोर-शोर से जो बातें होती है, उसी में बेहद चालाकी से उनकी जिम्मेदारियां भी याद दिला दी जाती हैं

- महिलाओं को ये भी बता देना चाहिए कि जिस प्रकार 'नहीं का मतलब नहीं' होता है, उसी तरह 'हां का मतलब भी हां' है. अगर आपने अपनी जिंदगी में किसी चीज पर 'हां' को चुन लिया है तो उससे होने वाले किसी असर की जिम्मेदारी भी आपको ही लेनी होगी.

- एक और सुझाव महिलाओं के लिए कि वो केवल वहीं करें जिसको वो बाद में हैंडल कर सकें. आपका नारीवाद आपको मुश्किल परिस्थितियों से नहीं निकाल सकता. क्योंकि नारीवाद का मतलब ये नहीं कि आप कितनी सुरक्षित महसूस कर सकती हैं बल्कि ये है कि आप कितनी सुरक्षित हैं. (क्योंकि देखिए ना, उन गुंडों ने किसी तरह मीनल को जबरदस्ती एक कार में कब्जे में ले लिया और सिस्टम इसके खिलाफ कुछ नहीं कर सका.)

इसलिए, एक आधुनिक महिला होने के नाते अपने विरोधियों को भी ध्यान से चुनिए! क्योंकि जरूरी नहीं कि आपको भी पड़ोस में डिप्रेशन से जूझता कोई वकील मदद के लिए मिल जाए.

ये महिला और पुरुष होने के अंतर की ओर भी ध्यान खींचता है. मुझे नहीं मालूम, लोग क्यों नाराज होते हैं जब कहा जाता है कि 'मैन विल बी मैन'! जाहिर है अगर मैन विल बी मैन है.. तो 'वुमन विल बी वुमन' भी तो सच्चाई है.

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आपने महिलाओं को कब देखा है कि वे किसी पुरुष का उत्पीड़न करने की कोशिश कर रही हैं. नगण्‍य. आपने कितनी बार देखा है कि ना कहने वाले पुरुष के चेहरे पर किसी महिला ने तेजाब फेंका हो? क्या आपने किसी ऐसी ठुकराई गई महिला को देखा है जो बदला लेने के लिए बीच सड़क पर किसी पुरुष पर 22 बार चाकुओं से वार कर रही हो. इसलिए, मान लीजिए पुरुष दरअसल महिलाओं से ज्यादा कठिन चीजें कर सकते हैं

पिंक की कहानी ने मेरी बेटी को वो सबकुछ समझा दिया जो मैं उसे कई दिनों से समझाने की कोशिश कर रही थी. केवल एक फिल्म ने उसे सारा संदेश दे दिया.

वो ये कि इस देश की बेटी होने के कारण उसे जिम्मेदार बनना है और हमारे बेटों को 'सुरक्षित' रखना है. और ये किसी रूलबुक में नहीं लिखा है...नया हो या पुराना

#पिंक, #बॉलीवुड, #समाज, Pink, Bollywood, Amitabh Bachchan

लेखक

प्रेरणा कौल मिश्रा प्रेरणा कौल मिश्रा @prernakoulmishra

लेखिका इंडिया टुडे में सोशल मीडिया एडिटर हैं.

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