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Updated: 03 अगस्त, 2016 02:09 PM
विकास मिश्र
विकास मिश्र
  @vikas.mishra.7393
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डेढ़ दशक पुरानी बात है. एक अखबार के मेरठ में उपसंपादक ने एक खबर संपादित की. हेडिंग लगाई- दलित लड़की से बलात्कार. संपादक जी ने पूछा-इस हेडिंग का क्या मतलब है. उपसंपादक ने कहा-सर, इसमें गलत क्या है. संपादक बोले-क्या बलात्कार की वजह लड़की का दलित होना है. उपसंपादक बोला- जी सर, किसमें दम है जो ब्राह्मण-ठाकुर की बेटी की तरफ आंख उठाकर भी देखे. संपादक जी मौन हो गए.

ये नजीर मैंने जानबूझकर रखी है. शुरू में ही कहा कि ये घटना डेढ़ दशक से ज्यादा पुरानी है. तबसे बहुत कुछ बदला है देश में. तबसे बीजेपी की एक, बीएसपी की एक और समाजवादी पार्टी की दूसरी सरकार चल रही है. बहरहाल अभी समाज इस सवाल का जवाब देने में उलझा है कि 'आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता'. तो क्या बलात्कारियों की कोई जाति होती है, कोई धर्म होता है..? मेरी राय में तो बलात्कारियों की कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता, लेकिन बलात्कार पर समाज कैसे रिएक्ट करेगा, जब ये देखता हूं तो लगता है कि बलात्कारियों की हो न हो, लेकिन बलात्कार के शिकारों की जाति जरूर होती है.'

बुलंदशहर में नेशनल हाइवे पर भी शुक्रवार की रात बलात्कार हुआ. एक इंसान अपनी दादी की तेरहवीं में शामिल होने परिवार के साथ अपने गांव जा रहा था. रास्ते में दरिंदों ने पूरे परिवार को बांध दिया. जरा सोचिए उस इंसान पर क्या गुजरी होगी. जिस पत्नी की सुरक्षा के सात वचन लेकर उसने सात फेरे लिए थे, उस पत्नी की इज्जत उसकी आंखों के सामने ही तार-तार कर दी गई. फूल जैसी 12-13 साल की बच्ची को गिद्धों ने पिता के सामने नोंच डाला, रस्सियों में बंधा बेबस पिता बस देखता रह गया. कहता रह गया-पैसे ले लो, लेकिन मेरी बेटी, मेरी पत्नी की इज्जत बख्श दो. गैंगरेप की शिकार महिला और उस मासूम बच्ची का का क्या हाल होगा, हम-आप तो बस अंदाजा लगा सकते हैं.

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बुलंदशहर के हाइवे पर हुई इस हैवानियत पर मैं अखिलेश यादव और उनकी सरकार को नहीं कोसूंगा. इसका ये मतलब भी नहीं कि मैं उनको बख्श रहा हूं. दरअसल चैनलों में तो हम लोग सरकार, पुलिस की दाई-माई कर ही रहे हैं. ये मामला बहुत वीभत्स था, एनसीआर में था, लिहाजा मीडिया की अटेंशन में आ गया. मीडिया ने इसे उठाया, उठा भी रहा है, लेकिन इस घटना या फिर ऐसी घटनाओं पर समाज में जैसा रिएक्शन हो रहा है, वो मुझे हैरान कर रहा है.

छोटी-छोटी घटना पर छाती कूटने वाले बौद्धिक, वामपंथी, कुछ स्वघोषित और पोषित सेकुलर खामोश हैं. तो क्या उनकी खामोशी की वजह ये मानी जाए कि इस घटना में जो मां-बेटी सामूहिक बलात्कार की शिकार हुईं, वो सवर्ण थीं. साफ-साफ बताता हूं. बलात्कार की शिकार मां-बेटी ब्राह्मण परिवार की हैं. अब फेसबुक पर जरा रिएक्शन देखिए. महिलाओं ने एक सुर से इस घटना की वीभत्सता की चर्चा की है, बहन-बेटियों की सुरक्षा के प्रति चिंता जताई है. कुछ मुस्लिम मित्रों ने भी इस दरिंदगी की घटना को लानत भेजते हुए बलात्कारियों के लिए शरीयत का कानून लागू करने की सलाह दी है.

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बुलंदशहर गैंगरेप पीड़ितों को न्याय दिलाने के बजाय अपने-अपने फायदे के हिसाब से राजनीतिक दलों ने राजनीति शुरू कर दी है!

लेकिन इतनी वीभत्स घटना पर उनका तालू नहीं चटक रहा है, जो गुजरात में दलितों के आंदोलन पर अरण्य रोदन कर रहे हैं, जो कश्मीर में जुल्मों सितम पर छाती कूट रहे हैं. मैं इनकी खामोशी पर मैं क्या सिर्फ इस नाते सवाल उठा रहा हूं कि बुलंदशहर बलात्कार कांड के पीड़ित ब्राह्मण थे..? वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम, पत्रकार साहित्यकार गीताश्री, पद्मश्री से विभूषित लोकगायिका मालिनी अवस्थी, समेत तमाम लोगों ने इस जघन्य कांड पर लिखा है और हां, ये सब सवर्ण परिवार से हैं. और जो लोग खामोश हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या अब बलात्कार के पीड़ितों, बलात्कारियों की जाति और धर्म तय करने जा रहे हैं आप लोग.

कहां हैं दिलीप सी मंडल साहब... कहां हैं अरुंधती राय, कहां हैं शबा नकवी, कहां हैं कविता कृष्णन..? और हां...कहां है वो अवार्ड वापस करने वाला गिरोह... भाई साहब, बहनजी..! आप लोगों की खामोशी सवर्ण बहन-बेटियों के गैंगरेप को मौन समर्थन दे रही हैं. क्या ब्राह्मणवाद को लेकर आपका विरोध यहां तक पहुंच चुका है.? क्या सवर्णों की बेटियों से बलात्कार की घटनाओं से कुछ लोगों का अहंकार संतुष्ट हो रहा है.

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इस घटना पर जिस तरह समाज का एक बड़ा तबका खामोश है, उसकी प्रतिक्रिया भी देख लीजिए. अभी तक पीड़ित परिवार को एक नए पैसे के मुआवजे का ऐलान नहीं हुआ है. कोई संस्था उस परिवार का दर्द बांटने के लिए आगे नहीं आई है. दानवीरों के हाथ पीछे की तरफ बंधे हैं, तो बात-बात पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ट्वीट करने का भी मौका नहीं मिल पाया.

दिल्ली के दानवीर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस परिवार के लिए कोई चेक नहीं काट पाए. जामिया में आतंकवादियों के मारे जाने पर आंसू बहाने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके सुपुत्र राहुल गांधी और दलित की बेटी मायावती की जुबान भी तालु से चिपकी हुई है. शायद ये सभी लोग नाप-तौल कर रहे हैं कि इस घटना पर कितना रिएक्ट करें, जिसमें फायदा हो. बोलने में फायदा है कि चुप रहने में फायदा है. क्योंकि इन्हें बलात्कार की शिकार मां-बेटी की जाति पता है, और शायद बलात्कारियों की जाति भी पता हो गई है. चुनाव आने वाले हैं, बोलने में नहीं, खामोश रहने में फायदा है.

बलात्कार इस समाज के लिए सबसे भद्दी गाली है. बलात्कार में तन से ज्यादा मन रौंदा जाता है. अरसे से दबंगों द्वारा असहायों पर इस तरह के जुल्म ढाए जाते रहे हैं, लेकिन अब ट्रेंड यहां भी बदल चुका है. निर्भया कांड से लेकर बुलंदशहर कांड तक बता रहे हैं कि सवाल सिर्फ और सिर्फ दरिंदों से बच्चियों की सुरक्षा का है. 21वीं सदी आ गई, लेकिन घर से लेकर बाहर तक बहन-बेटियां असुरक्षित है.

आए दिन गैंगरेप की घटनाएं सुनने में आती हैं. ये समाज के लिए शर्मनाक है. गुजारिश है कि अब गैंगरेप जैसी घटनाओं में भी जाति और मजहब मत खोजिए. बलात्कार पीड़ितों की कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता, बलात्कारियों की कोई जाति, कोई धर्म नहीं होता. बुलंदशहर में एक इंसान की बेटी को दरिंदों ने रौंदा है. समाज अगर इन दरिंदों के खिलाफ एकजुट नहीं हुआ तो अगला परिवार किसी का भी हो सकता है. आपका भी, हमारा भी. आपकी भी बेटी, हमारी भी बेटी. हमारे, आपके, सबके घर में बहुए हैं, बेटियां हैं.

लेखक

विकास मिश्र विकास मिश्र @vikas.mishra.7393

लेखक टीवी पत्रकार हैं. सियासत, समाज और सिनेमा पर लगातार लिखते रहते हैं.

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