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Updated: 29 नवम्बर, 2016 06:37 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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भारत सरकार ने आठ नवंबर की आधी रात से 500 और 1,000 रुपए के नोट को बैन कर दिया था. उस दिन से आजतक, भारत का लगभग हर व्यक्ति नकद नारायण की प्राप्ति में लगा हुआ है. नकदी की इस खोज में समाज के बड़े से लेकर छोटे तबके के लोग भी शामिल हैं. इस खोज ने जाति-धर्म, छोटे-बड़े का अंतर मिट गया है. मतलब की इस मुद्दे पर पूरे समाज में एक तरह की समरसता आ गई है.

आजकल लोग विभिन्न प्रकार के जुगाड़ से अपना पैसा ऐसे निकाल रहे हैं मानो ये किसी और की संपत्ति हो. असफल लोग तो मायूस हो जा रहे हैं. कुछ तो इस असफलता के लिए मोदी को दोषी ठहरा रहे हैं तो कुछ को इस असफलता में अपनी अक्षमता का एहसास हो रहा है. पर जो सफल हो रहे हैं उनके मन में अपने जुगाड़ की सार्थकता की बड़ी ही ओजस भावना आ रही है. ऐसा लग रहा है कि लक्ष्मी का साक्षात् दर्शन हो गए हों.

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हालांकि बैंक में काम करने वालों को बहुत ज्यादा काम करना पड़ रहा है. वो रात दिन मेहनत कर रहे हैं. पर नोटबंदी से लोगों के मन में उनके लिए जो सम्मान था वो बहुत ज्यादा बड़ गया है. पर साथ ही साथ उनके इस परिश्रम ने उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में चार चांद लगा दिया है. अचानक बैंक में काम करने वालों की पूछ बहुत ज्यादा हो गई है. केवल उनके मित्र, संबंधी, पडोसी, मित्र के मित्र, संबंधी के संबंधी, पडोसी के पडोसी ही नहीं पूछ रहे हैं बल्कि ये सम्बन्ध कई कड़ियों तक पहुंच रहा है. यानि की मित्र के मित्र के मित्र के मित्र तक भी इनका हाल-चाल ले रहे हैं.

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प्रशासनिक अधिकारी हों, पुलिस अधिकारी हों, राजनेता हों या समाज के किसी भी वर्ग के लोग हों, हर कोई उनका हाल चाल ले रहा है. नोटबंधी ने पहली बार उनके काम की सार्थकता इतनी ज्यादा है, इससे समाज को अवगत कराया है.

मेरे एक मित्र ने बताया कि उसके जान पहचान का एक व्यक्ति एटीएम में नोट भरने वाला मोटर वैन का ड्राइवर है. वो जब भी उसके इलाके में आता हैं तो फोन करके बता देता हैं कि फलां एटीएम पर आ जाओ, वहां अभी नोट भरे जाने वाले हैं. मेरा मित्र सबसे पहले इस लाइन में खड़ा हो जाता है. और नगद नारायण की प्राप्ति में सफल हो जाता है. शायद मेरे मित्र को उस मोटर वैन ड्राइवर की इस उपयोगिता का एहसास पहली बार हुआ. और हो भी क्यों न.

आपको बैंक से पैसा निकालना है या पुराने नोट जमा करने हैं तो बैंक के किसी भी कर्मचारी से जान पहचान बहुत ही मदद कर रही है. आप ये काम बिना घंटो लाइन में लगे कर सकते हैं. आपको कितना कम कष्ट होगा ये आपके बैंक कर्मचारी से संबंधों पर निर्भर करता है. जिनके संबंध प्रगाढ़ हैं वो ये सेवा घर बैठे हे प्राप्त कर सकते हैं.

और अगर आप बैंक में किसी को नहीं जानते तो शायद घंटों तक कई दिन लाइन लगने के बाद भी सफल नहीं हो सकते. हो सकता है कि आपके बैंक के कैशियर तक पहुंचने तक बैंक का पैसा ही खत्म हो जाए. इसलिए ये जान पहचान आपके सफलता एवं असफलता में बहुत बड़ा रोल अदा कर सकती है. लोग विभिन्न प्रकार के जुगाड़ से ये संबंध स्थापित कर रहे हैं.

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मतलब कि नकद नारायण की खोज से सामाजिक समरसता आई है. बैंक कर्मियों का सामाजिक उत्थान हुआ है. आम लोगों में प्रतियोगिता की भावना आई है. लोगों ने ग्रेट इंडियन जुगाड़ का इस्तेमाल करके रोज नई पद्धतियां इजाद करना प्रारम्भ कर दिया है. नगद नारयण की महत्ता लोगों को पता चल रही है. इसी अभाव में कुछ बचत भी हो रही है. और कुछ हो न हो नोटबंदी से लोगों का बहुमुखी विकास हो रहा है.

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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