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Updated: 19 अगस्त, 2018 05:09 PM
देवेश कुमार
देवेश कुमार
  @deveshkumar.chaubey
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पिछले हफ़्ते मेरी बेटी दिल्ली आई हुई थी. एक दिन वह मेरे साथ मेरे स्कूल गई. उस दिन उसकी एक गलतफ़हमी दूर हुई...अब तक वह मुझे एक छात्र समझती थी. उस दिन स्कूल में परीक्षा चल रही थी. हमारी ड्यूटी लगी तो कुछ देर के लिए बिटिया भी हमारे साथ परीक्षा कक्ष में गई. हमें ये नहीं पता होता कि छोटे बच्चे क्या-क्या नोटिस करते चलते हैं. बारहवीं क्लास का एक छात्र दस मिनट की देरी से आया तो मैंने उसकी पीठ ठोंकते हुए कहा कि बेटा टाइम से आया करो. उसने कहा सर मुझे चिकनगुनिया है.. किसी तरह पेपर देने आ पाया हूं. 

बिटिया गांव चली गई. वहां पर टीवी में उसने देखा कि दिल्ली में एक अध्यापक की दो छात्रों ने चाकू मारकर हत्या कर दी. अब इस खबर का असर देखिए. मेरी 6 साल की बिटिया मुझसे फोन पर कहती है कि पापा आप बच्चों को डांटा या मारा मत करिए. उस दिन मैंने देखा था आपने एक भइया को डांटा था और उनकी पीठ पर मारा भी था, जबकि उनकी तबीयत ख़राब थी.

बिटिया की बातें सुनकर दिमाग़ सन्नाटे में चला गया. उस हादसे के बाद से दो-चार ऐसी घटनायें और हुईं कि भरोसा ही नहीं होता. दुष्ट प्रवृति के छात्रों के लिए तो जैसे इस हादसे ने टॉनिक का काम किया है. एक विद्यालय में प्रिंसिपल की कार छात्रों द्वारा तोड़ दी गई, एक विद्यालय के ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ मिला कि अभी तो एक गया है, अभी न जाने कितने और ऊपर जायेंगें. एक जगह छात्र को नकल करने पर रोकने से अध्यापिका को यह कहा गया कि लगता है मैडम आजकल आप अखबार नहीं पढ़ रही हैं. 

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 मुकेश कुमार...जिनकी दो छात्रों ने हत्या कर दी थी..

ये बातें सचमुच चिंतित करती हैं और एक प्रलयंकारी भविष्य की तस्वीर प्रस्तुत कर रही हैं. मौजूदा CCE पैटर्न के अनुसार आठवीं क्लास तक बच्चा किसी भी हाल में फेल नहीं किया जा सकता चाहे भले ही वह कॉपी कोरी ही छोड़ के आ जाए. नौवीं कक्षा में उसको पास होने के लिए न्यूनतम 25% अंकों की ज़रूरत होती है. ज़्यादातर छात्र आठवीं कक्षा तक मुफ़्त का रिज़ल्ट लेकर मुफ़्तखोरी की आदत के शिकार हो जाते हैं. फिर उनके लिए नौवीं कक्षा में 25%नंबर लाना टेढ़ी खीर साबित होता है. लिहाजा साल दर साल नौवीं कक्षा के रिज़ल्ट में भयंकर गिरावट होती चली जा रही है.

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कई स्कूलों में रिजल्ट वाले दिन छात्रों और अभिभावकों द्वारा मारपीट और बदतमीज़ी की घटनायें होती रही हैं. अब जो हालात हैं और जिस तरह ये हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं उसका दुष्प्रभाव बहुत गहरा होने वाला है. वे अध्यापक जो बच्चों के भविष्य को संवारने में अपना सौ प्रतिशत योगदान देते रहे हैं, उनकी सोच पर भी अब ये असर होगा कि बच्चा पढ़े या न पढ़े, अपनी इज़्जत और अपनी जान खुद ही बचानी होगी.

जब हम पढ़ा करते थे, न जाने कितने जूते और डंडे हमारे बदन पर टूटे हैं. मैं नहीं कहता कि वो व्यवस्था और व्यवहार उचित था लेकिन अध्यापकों के प्रति मन में सम्मान नहीं श्रद्धा का भाव रहता था. हमें नहीं याद आता कि कभी हमारे अभिभावकों को स्कूल जाने की भी ज़रूरत पड़ी होगी.

इस हादसे के बाद दिल्ली सरकार ने रेडियो पर एक नया ड्रामा शुरू किया है. उसमें शिक्षामंत्री द्वारा छात्रों और अभिभावकों से यह अपील की जा रही है कि आप अध्यापकों से जाकर कहिए कि हम आपका सम्मान करते हैं. सोचिए, यह खैरात में मिला सम्मान हमें कितना और अपमानित करेगा. व्यवस्था बदलने की जरूरत है, सोच स्वत: बदल जाएगी...वरना भविष्य में चुपचाप पूरी की पूरी पीढ़ी को बर्बाद होते देखने के लिए यह देश अभिशप्त हो जाएगा.

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लेखक

देवेश कुमार देवेश कुमार @deveshkumar.chaubey

लेखक दिल्ली में शिक्षक हैं.

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