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Updated: 27 मई, 2017 08:18 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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इन दिनों सोशल मीडिया का क्रेज लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है, हर उम्र और हर वर्ग का इंसान अब सोशल हो रहा है. लेकिन सोशल मीडिया को क्या वाकई पूरी तरह 'सोशल' यानी सामाजिक कहा जा सकता है? क्या इसके खतरों को नजरंदाज किया जा सकता है ? ये सवाल उठा रही है बैंगलुरू की वो घटना जो किसी के भी होश उड़ा सकती है.

बेंगलुरू का एक 13 साल का बच्चा सोशल मीडिया की धुन में साइबर अपराधियों के चक्कर में फंस गया. शुरूआत फेसबुक पर एक लड़की से दोस्ती से हुई जो आगे चलकर सेक्स चैट, फोटोज़ और पॉर्न विडियो की अदला-बदली तक जा पहुंची. उधर से अश्लील सामग्री आती और इधर बच्चे से उसकी अश्लील तस्वीरें मांगी जातीं. ये सब चलता रहा.

facebook, boy, videoफेसबुक पर अनजानी दोस्ती का खामियाजा बहुत भारी पड़ता है

लेकिन इसके बाद जो हुआ वो और भी भयानक था. उस लड़की ने अब लड़के से उसके माता-पिता के आपत्तिजनक वीडियो भेजने के लिए उकसाया, और लड़की की बातों में आकर लड़के ने न सिर्फ अपने माता पिता के शारीरिक संबंधो को रिकॉर्ड किया बल्कि वीडियो उस लड़की को भेज भी दिया. इस खेल की असली चाल सामने तब आई जब लड़की ने उससे इस विडियो को अश्लील साइटों में न डालने के एवज में एक करोड़ रूपये की मांग की. उसके बाद छात्र और उसके परिजनों ने साइबर अपराध शाखा में इस मामले की शिकायत दर्ज कराई. पुलिस आरोपी की प्रोफाइल की जांच कर रही है. पुलिस को इस बात का भी संदेह है कि आरोपी ने और लोगों को भी शिकार बनाया होगा.

अपराध, रिश्ते और सोशल मीडिया... देखा जाए तो ये तीनों एक खतरनाक कॉम्बिनेशन है. तीनों पर अगर पकड़ ढ़ीली हो तो नतीजे ऐसे ही भयावह होते हैं. इस घटना से ये तो पता चला कि साइबर अपराध की दुनिया कितनी खतरनाक है. लेकिन और भी कई बातें हैं जो सवाल बनकर हमारे सामने खड़ी हो गई हैं.

एक तो ये कि, जिस उम्र में मानसिक और शारीरिक बदलाव अपने चरम पर होते हैं, जिस उम्र में बच्चों के बहकने के खतरे सबसे ज्यादा होते हैं. उस वक्त माता-पिता अपने बच्चों के करीब जाने के बजाए, उन्हें उनके हाल पर क्यों छोड़ देते हैं? बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखने का मतलब सिर्फ फॉर्वर्ड थिंकिंग नहीं होता बल्कि इससे वो बच्चों के दिमाग में चल रही उल्झनों को भी समझ सकते हैं, और सही दिशा निर्धारित कर सकते हैं.

दूसरा ये कि बच्चे को आगे बढ़ने और सोशल होने के लिए माता-पिता उसे मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट जैसी हर सुविधा तो उपलब्ध कराते हैं, लेकिन उसे सही मायने में सोशल होना क्यों सिखाना भूल जाते हैं. जो बच्चा अपने माता-पिता से ये नहीं सीख पाया कि उसे अपने माता-पिता के अंतरंग जीवन में झांकना चाहिए या नहीं, तो गलती बच्चे से ज्यादा माता-पिता की होती है.

एक्सपर्ट मानते हैं कि एक मोबाइल या कंप्यूटर के माध्यम से पूरी दुनिया आपकी पहुंच यानी मुट्ठी में आ जाती है. इसी तरह साइबर अपराधी भी आप तक आसानी से पहुंच जाते हैं. इस आजादी का रोमांच काफी तेजी से युवाओं को गलत रास्ते पर ले जाता है. सही गतल का फर्क करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अगर बच्चा हर चीज अपने माता-पिता खुलकर कहे तो इस तरह के अपराधों को रोका जा सकता है. और जो न रुके तो आता है एक डैड एंड और सब कुछ खत्म. इस मामले में भी यही हुआ, असल अपराधी कौन ये आप ही तय करें..

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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