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Updated: 24 मई, 2017 11:43 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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ये बात तो सभी जानते हैं कि बच्चा पैदा करना बहुत तकलीफदेय होता है. इसमें संदेह जरा भी नहीं है कि एक महिला अपने पूरे जीवन में अगर सबसे ज्यादा दर्द कभी झेलती है तो वो लेबर पेन ही होता है. कहते हैं एक साथ 20 हड्डियां टूटने जैसा दर्द होता है ये. ये कैसा होता है, कितना दर्द होता है, इसे भी सिर्फ वही समझ सकती है जिसने इसे झेला हो, कोई पुरुष अगर ये कहता है कि वो इस दर्द को समझता है तो यकीन नहीं किया जा सकता, क्योंकि वो कभी इस पीड़ा को समझ ही नहीं सकता.

लेकिन बात अगर अमेरिका के एक छात्र जॉनी वेड की करें, तो वो सीना ठोक के कह सकता है कि 'हां, मैं ये दर्द महसूस कर सकता हूं.' नहीं, वो ट्रांसजेंडर नहीं है और न ही उसने बच्चा पैदा किया है.

असल में जॉनी, लिंकन मेमोरियल यूनिवर्सिटी में एक नर्स एनेस्थेटिस्ट होने का अध्ययन कर रहे हैं और हमेशा अपनी पत्नी से ताने सुनते आए थे कि वो बच्चा पैदा करने के दर्द को क्या समझेंगे, इसलिए उन्होंने इस दर्द का अनुभव करने के लिए सिम्यूलेटेड लेबर पेन यानि नकली प्रसव पीड़ा सहने वाले एक्सपेरिमेंट में हिस्सा लिया. पर अफसोस कि वो उस दर्द को 20 सेकंड भी झेल नहीं पाए.

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उसके एक साथी ने उसे पीछे से पकड़ रखा था जबकी दूसरा उसे गहरी सांस लेने के लिए कह रहा था. माहौल बिलकुल वैसा जैसे वो सच में बच्चा पैदा करने जा रहा था. लेकिन असल में तारों के जरिए सिम्यूलेटेड लेबर पेन उसके पेट तक पहुंचाया जा रहा था. उसे कहा जा रहा था कि उसे कम से कम 10 सेकंड तो ये झेलना ही होगा. पर जैसे ही दर्द दिया गया, लड़के की हालत खराब होना शुरू हो गई.. वो दर्द रोकने के लिए गिड़गिड़ाने लग गया, और उसे देखकर उसके दोस्तों की हंसी छूट गई, इस वीर की चीखें आप इस वीडियो में सुन सकते हैं, जो इंटरनेट पर वायरल हो रही हैं.

बाद में जॉनी ने कहा कि 'वो दर्द इतना तेज था कि मैं उसे झेल नहीं पाया. मुझे पहले कई बार चोटें लगी हैं, लेकिन कभी भी दर्द इस कदर नहीं हुआ जैसा इस बार था. ये तो नकली है, लेकिन असली दर्द तो इससे भी ज्यादा खतरनाक होता है.'

ये महाशय 20 सेकंड भी न टिक पाए, जबकि महिलाएं लेबर पेन तीन तीन दिन तक झेलती हैं. तो ये सिद्ध होता है कि दर्द झेलने की शक्ति महिलाओं में पुरुषों से कहीं ज्यादा होती है. इसे इस छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है कि, अगर पुरुषों के प्राइवेट पार्ट पर कोई बॉल लग जाए तो वो उस पीड़ा को झेल तो लेते हैं, लेकिन फिर दोबारा उसे झेल पाने के बारे में सपने में भी नहीं सोचते, पर एक महिला प्रसव पीड़ा झेलने के बाद भी दोबारा मां बनने के ख्वाब देखती है, और दोबारा दर्द की उसी प्रक्रीया से गुजरती है. आज तो फिर भी परिवारों में एक, दो बच्चे ही दिखते हैं, लेकिन अपने दादा-दादी का जमाना याद करें तो उस वक्त एक महिला 7-8 बच्चे तो पैदा करती ही थी और तब तो ऑपरेशन की सुविधा भी नहीं होती थी.

तो महिलाओं से जुड़े किसी भी दिन, चाहे महिला दिवस हो या मदर्स डे, उसे विश करना या सिर्फ तोहफा देना ही सबकुछ नहीं होता. महिला चाहे आपकी पत्नी हो, मां हो या आपकी बेटी, वो दर्द झेलती आई हैं, और आगे भी झेलेंगी, बस ये बात हमेशा याद रखें और उनकी सहनशीलता का सम्मान करें, आपका स्नेह और ख्याल ही उन्हें दर्द को झेलने की हिम्मत देता है. मां और उसकी सहनशीलता के बारे में सोचें तो ये मामला सिर्फ मदर्स डे तक कही सीमित न हो. 

इससे पहले भी कई पुरुष गर्भ में पल रहे बच्चे की हरकतों को खुद अपने पेट पर महसूस कर चुके हैं, जानने के लिए-

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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