New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 जून, 2017 02:51 PM
कुमार विक्रांत
कुमार विक्रांत
  @kumar.v.singh.9
  • Total Shares

गुजरात विधानसभा चुनाव में महज कुछ महीने बाकी हैं, लेकिन कांग्रेस के सबसे कद्दावार नेता कांग्रेस में चुनाव तक बने रहेंगे या नहीं ये भविष्य़ ही बताएगा. गुजरात में विपक्ष के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला को राज्य की सियासत में बापू निकनेम से जाना जाता है. उनकी बातचीत पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से हो चुकी है और गुजरात की रणनीति पर भी चर्चा हुई है, लेकिन कांग्रेस में बने रहने के सवाल का स्पष्ट जवाब शंकर सिंह वाघेला के पास भी नहीं है. शंकर सिंह वाघेला के मुताबिक ' मैं अभी कांग्रेस में हूँ, लेकिन भविष्य कोई नहीं जानता' यानि बयान से साफ है कि विधानसभा चुनाव से पहले शंकर सिंह वाघेला और पार्टी के बीच आलाकमान से मुलाकात के बाद भी बहुत कुछ सामान्य नहीं है. हाल ही में उन्होंने गुजरात कांग्रेस की सोशल मीडिया की बैठक में हिस्सा नहीं लिया और बैठक से कुछ दिन पहले ही अपनी नाराजगी ट्विटर पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत दूसरे कांग्रेस के नेताओं और बाकी सभी लोगों को अनफॉलो करके जाहिर की.

गुजरातशंकर सिंह वाघेला का फैसला गुजरात की राजनीति में अहम मोड़ ला सकता हैक्य़ा है वाघेला की टीस?

दरअसल शंकर सिंह वाघेला की टीस पूरे बहुमत के साथ गुजरात के मुख्यमंत्री बनने की है. 1996 में बीजेपी छोडकर कांग्रेस के समर्थन से राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन 1997 में ही उन्हें राजनीतिक हालात की वजह से इस्तीफा देना पड़ा. गुजरात के कद्दावर और जमीनी नेता माने जाते हैं लेकिन बहुत कम वक्त तक मुख्यमंत्री बने रहने का दर्द अभी भी है. दरअसल 1995 में गुजरात में बीजेपी को बहुमत मिलने के बाद ज्यादातर विधायक चाहते थे कि वाघेला ही राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन बीजेपी आलाकमान ने केशुभाई पटेल को चुना. चंद महीनों के भीतर ही बीजेपी नेतृत्व पर दबाव डालकर वो सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहे. बाद में बीजेपी तोड़कर अपनी राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाकर वो कांग्रेस के समर्थन से एक साल से भी कम वक्त के लिए सीएम बन पाए. इसके बाद अपनी पार्टी के साथ कांग्रेस में शामिल हुए वाघेला सीएम बनने का सपना संजोए रहे जो अभी तक नहीं पूरा हो सका. अब वो चाहते हैं कि, सियासी पारी के आखिरी वक्त में कांग्रेस मुख्यमंत्री का चेहरा उन्हें बनाए जबकि पार्टी ऐलान कर चुकी है कि, वो बिना चेहरे के चुनाव मैदान में उतरना चाहती है.

कैसा है गुजरात में 'बापू' का कद?

77 वर्षीय शंकर सिंह वाघेला का कद गुजरात की सियासत में काफी बड़ा है. जनसंघ से अपनी राजनीति की शुरुआत करने से पहले वाघेला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे. जनसंघ के जनता पार्टी में विलय और बाद में जनता पार्टी के विघटन और 1980 में बीजेपी की स्थापना के समय वो बीजेपी के बड़े नेताओं में शामिल थे. वाघेला के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1980 से 1991 तक वाघेला गुजरात बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे. पांच बार लोकसभा सदस्य और एक बार राज्यसभा सदस्य रह चुके वाघेला केन्द्र में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. 1995 में ज्यादा विधायकों की पसंद के बावजूद मुख्यमंत्री न बनाए जाने से वाघेला खासे नाराज हुए. 6 महीने के भीतर उन्होंने केशुभाई को हटाकर सुरेश मेहता को सीएम बनवा दिया. फिर 1996 में पार्टी तोड़ कांग्रेस की मदद से सीएम भी बने, लेकिन 1997 में राजनीतिक वजहों से उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस में शामिल होने के बाद शंकर सिंह वाघेला गुजरात के कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके हैं और मौजूदा में विपक्ष के नेता हैं. वाघेला के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक समय में वो बीजेपी के अंदर गुजरात में नरेंद्र मोदी से भी बड़े नेता थे. ऐसे में सत्ता की खातिर बीजेपी तोड़ और छोड़ चुके वाघेला के अगले दांव पर कांग्रेस ने पैनी नज़र गड़ा रखी है.

गुजरात में कांग्रेस की स्थिति:

गुजरात से सरदार वल्लभ भाई पटेल के रूप में देश को पहला उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री देने वाली कांग्रेस 1995 से राज्य की सत्ता से बाहर है. गुजरात में पिछले पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लगातार हार हुई है. गौर करने वाली बात ये है कि कांग्रेस पिछले 5 विधानसभा चुनावों में किसी चुनाव में भी 182 सीटों में से 65 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई है. आमतौर पर माना जाता है कि गुजरात में मोदी की वजह से कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पा रही है लेकिन वास्तविकता ये है कि मोदी के मुख्यमंत्री बनने से 7 साल पहले से ही कांग्रेस गुजरात में सत्ता को लेकर निर्वासित जीवन जी रही है. ऐसे में साफ है कि पिछले 22 साल में कांग्रेस गुजरात में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में नाकामयाब रही है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर 10 से 12 फीसदी रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि 2017 में क्या कांग्रेस इस अंतर को खत्म कर पाएगी? फिलहाल, तस्वीर तो ऐसी नहीं. ऐसे में कांग्रेस के पास बड़ा और कद्दावर चेहरा शंकर सिंह वाघेला का भी है लेकिन सवाल ये है कि क्या कांग्रेस वाघेला की शर्तों पर गुजरात में चुनाव लड़ेगी या फिर कोई कर्नाटक की तर्ज पर कोई फॉर्मुला बनाएगी सबको संतुष्ट किया जा सके. गुजरात कांग्रेस में वाघेला के अलावा भरत सिंह सोलंकी, अहमद पटेल, शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोदवाडिया, सिद्धार्थ पटेल और मधुसूदन मिस्त्री सरीखे दिग्गज हैं, जिनके बीच आलाकमान को संतुलन साधना है.

ये भी पढ़ें-

महंगे खिलाड़ियों का सस्ता प्रदर्शन !

क्या राहुल गांधी बचा पायेंगे अपनी आदिवासी वोट बैंक ?

 

लेखक

कुमार विक्रांत कुमार विक्रांत @kumar.v.singh.9

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय