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Updated: 16 जनवरी, 2017 07:04 PM
सुजीत कुमार झा
सुजीत कुमार झा
  @suj.jha
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क्या बिहार के लोगों के लिए उत्सवों में मौत नियति बन गई है? पिछले ढाई सालों में तीन ऐसी घटनाएं इस बात की गवाह हैं. पहले छठ के अवसर पर भगदड़, फिर दशहरे पर भगदड़ और अब नाव का डूबना. इन तीनों कार्यक्रमों की व्यवस्था प्रशासन ने की थी लेकिन घटानाएं रूकी नहीं. छपरा के संबंलपुर दियारा में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग ने पतंगउत्सव के लिए लोगों को अखबार में विज्ञापन देकर बुलाया था. लोग पहुंचे भी लेकिन सुरक्षित लौट न सके.

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प्रकाश पर्व के सफल आयोजन के बाद लगता है कि सरकार के अधिकारी ओवर कंफिडेन्स में आ गए थे. यही कारण है कि उन्होंने जनता की कोई परवाह नहीं की. जिस प्रकाश पर्व में पटना की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी चुस्त-दुरुस्त नजर आ रही थी. देश-विदेश से 5 लाख लोग पटना पहुंचे थे लेकिन कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी उस प्रशासन की सभी तत्परता क्या केवल प्रकाश पर्व तक ही थी. आखिर क्या वजह रही जो सरकारी आयोजन जिसे पर्यटन विभाग के द्वारा आयोजित तो किया जाता है पर वहां आने वाले लोगों की सुरक्षा को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है. क्या बिहार के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उतनी तत्परता से नहीं लेनी चाहिए?

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 बिहार सरकार हादसों के बाद दशहरे और छठ पर तो विशेष इंतजाम करती है, लेकिन शायद संक्रांति उनकी लिस्ट में शामिल नहीं थी

इतिहास गवाह है कि कभी कोई भी हादसा हुआ तो सीएम ने जाँच का आदेश दिया है, लेकिन न ही सरकार और न ही स्थानीय प्रसाशन ने उस घटना से कोई सीख ली. पटना में इससे पूर्व दो घटनाएं हुईं एक रावण दहन के दौरान और दूसरी छठ पर्व के दौरान. घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री ने मौत पर सम्वेदना व्यक्त की और जाँच के आदेश दिए. सरकार के लोग दही-चूड़ा में लीन रहे और गंगा नदी के घाट पर नाव डूबती रही और जनता मरती रही. 25 लोगों की मौत हो चुकी है और एक बार फिर वही इतिहास दोहराया जा रहा है. घटना दूसरी भले ही हो, लेकिन घटनाक्रम तो वैसा ही रहता है.

पिछली तीन बार से ये देखने में आया है कि सरकार के भरोसे लोग आयोजनों में हिस्सा लेने जाते हैं पर उनका ख्याल नही रखा जाता. 2013 में छठ पर्व के अवसर पर गंगा घाट की घटना को ले लें जो कुछ अपवाहों की वजह से हुई थी और 18 लोगों की मौत हो गई थी या फिर 2014 की दशहरे वाली घटना देखें जिसमें गांधी मैदान वाली भगदड़ 32 लोगों के लिए काल बन गई थी. अब मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित पतंगबाजी का उत्सव मना कर लौट रहे 25 गंगा की लहरों में समा गए.

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पहले दो घटानाओं से सबक लेकर राज्य सरकार दशहरे और छठ पर विशेष सावधानी बरते लगी है, लेकिन मकर संक्रांति पर ये सावधानी क्यों नहीं. ऐसा नही है कि सरकार ने व्यवस्थाएं नहीं की थीं. व्यवस्थाएं थीं लेकिन उस व्यवस्था का ठीक से उपयोग नहीं हुआ. राज्य सरकार ने विज्ञापन देकर लोगों को बुलाया और विज्ञापन में ये भी वादा किया कि क्रूज से मुफ्त उन्हें संबंलपुर दियारा पहुंचाया जाएगा. करीब 30 हजार वहां पहुंचे भी. क्रूज ने लोगों को वहां पहुंचाने के लिए कई फेरे लगाए. पर भीड़ इतनी हो गई कि शाम 4 बजे प्रशासन ने लोगों को दियारा की तरफ जाने से रोक दिया. यहां तो सावधान बरती लेकिन लोगो को वहां से वापस कैसे लाया जाएगा इसके बारे में नहीं सोचा. क्रूज ने 2 बजे बाद फेरी लगाना भी बंद कर दिया.

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 ऐसा कैसे हो सकता है कि एक मनोरंजन पार्क चल रहा था और सरकार को उसकी भनक तक नहीं थी

शाम होने लगी थी लोग परिवार के साथ वहां पहुंचे थे इसलिए सबको जल्दी पटना पहुंचना था. लोगों ने वापस जाने के लिए लोकल नावों का सहारा लिया. एक-एक नाव पर लोग क्षमता से ज्यादा चढ़ गए. जिस नाव से हादसा हुआ उस नाव के नाविक ने नाव चलाने से मना कर दिया, लेकिन लोगों के दबाव डालने पर नाव चली. कुछ दूरी पर जाने के बाद वो डूब गई.अब फिर जांच बैठी है, लेकिन सरकार को बताना चाहिए कि पिछले दो हादसों में जांच पर क्या कार्रवाई हुई. नाव हादसे की जांच में दो जिला प्रशासन जिम्मेदार है एक पटना और दूसरा छपरा. जांच की जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन के सचिव प्रत्यय अमृत और पटना के डीआईजी शालिन को दी गई थी.

हांलाकि, पुलिस ने मामले को डाइवर्ट करने के लिए संबंलपुर दियारे में शुरू होने वाले बच्चों के मनोरंजन पार्क डिजनीलैण्ड के संचालक और नाविक पर एफआईआर दर्ज की है, लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी का कहना है कि लोग तो सरकार के बुलावे पर वहां गए थे और प्रकाश पर्व और कालचक्र के सफल आयोजन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार श्रेय ले रहे हैं तो नाव हादसे कि जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए. पर इस सबके बीच सवाल अभी भी वहीं का वहीं है. क्या बिहार में लोग ऐसे ही मरते रहेंगे?

लेखक

सुजीत कुमार झा सुजीत कुमार झा @suj.jha

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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