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Updated: 16 अक्टूबर, 2017 11:24 AM
प्रभुनाथ शुक्ल
प्रभुनाथ शुक्ल
 
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उत्तर कोरिया की परमाणु प्रसार नीति ने अमेरिका को हिला कर रख दिया है. सनकी तानाशाह किम जोन की हठता से शांतिप्रिय देशों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. किम की यह मुहिम अमेरिका को डराने के लिए है या फिर चौथे विश्वयुद्ध की दस्तक कहना मुश्किल है. क्योंकि अमेरिका की लाख कोशिश और धमकी के बाद भी उत्तर कोरिया पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा.

उत्तर कोरिया की जिद उसे कहां ले जाएगी? वह परमाणु संपन्नता से क्या हासिल करना चाहता है. वैश्विक युद्ध की स्थिति में क्या वह अपने परमाणु हथियारों को सुरक्षित रखा पाएगा? वह परमाणु अस्त्र का प्रयोग कर क्या अपने को सुरक्षित रख पाएगा? परमाणु अस्त्रों के विस्फोट के बाद उसका विकिरण और इंसानी जीवन पर पड़ने वाला दुष्परिणाम किसे झेलना पड़ेगा? उसकी यह मुहिम सिर्फ एक सनकी शासक की जिद है या फिर मानवता को जमींदोज करने एक साजिश.

USA, North Korea, Warकोरिया का ये पागलपन पूरी मानवता पर भारी पड़ेगा

कोरिया पर बढ़ती वैश्विक चिंता के बाद भी दुनिया इस मसले पर गम्भीर नहीं दिखती. जिसकी वजह से अमेरिका कि चिंता काफी गहरी होती जा रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कड़ी सैन्य चेतावनियों के बाद भी किम की सेहत पर कोई असर फिलहाल नहीं दिख रहा. इस मसले पर चीन और रूस की भूमिका साफ नहीं है. किम की दहाड़ से यह साबित होता है कि रूस और चीन आणविक प्रसार को लेकर संवेदनशील नहीं हैं.

उत्तर कोरिया लगातर परमाणु परीक्षण जारी रखे हुए है. संयुक्त राष्ट्र संघ की चेतावनी के बाद भी यूएन के सभी स्थाई सदस्य चुप हैं. इसी वजह से सनकी शासक पर कोई असर नहीं दिखता है और वह मिशन पर लगा है. किम हाइड्रोजन बम का भी परीक्षण कर चुका है. जिसका कबूलनामा और तस्वीरें दुनिया के सामने आ चुकी हैं. यही वजह है कि अमेरिका के साथ जापान के भी पसीने छूट रहे हैं. क्योंकि उत्तर-कोरिया बार-बार ट्रम्प की धमकियों को नज़रअंदाज़ कर मुंहतोड़ जवाब देने की बात कह रहा है.

कोरिया को पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर ने यह तकनीक पाकिस्तानी सरकार के कहने पर उपलब्ध कराई थी. इस बात के साफ होने के बाद से अमेरिकी सरकार और चिढ़ गई है. यही कारण है कि पाक की नीतियों को संरक्षण देनेवाला अमेरिका उसे अब आतंकियों के संरक्षण का सबसे सुरक्षित पनाहगार मानता है. दूसरी अंतरर्राष्ट्रीय बात है कि अमेरिका, भारत और जापान की बढ़ती नजदीकियों से चीन और पाकिस्तान जल उठे हैं. जिसकी वजह है की रूस, चीन और पाकिस्तान की तरफ से उत्तर कोरिया को मौन समर्थन मिल रहा है.

हालांकि वैश्विक युद्ध की फिलहाल संभावना नहीं दिखती है. लेकिन अगर ऐसा हुआ तो रूस, चीन और पाकिस्तान, उत्तर कोरिया के साथ खड़े दिख सकते हैं. जबकि भारत, जापान और अमेरिका एक साथ आ सकते हैं. क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ ट्रम्प सरकार ने जिस तरह वैश्विक मंच पर भारत का साथ दिया है और जिसकी वजह से भारत आतंकवाद को वैश्विक देशों के सामने रखने में कामयाब हुआ है. यूएन ने भी भारत के इस प्रयास की सराहना की है.

दक्षिण सागर और डोकलाम पर भारत की अडिगता चीन को खल रही है. जिसके कारण उसने कोरिया पर चुप्पी साध रखी है. रूस ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि उत्तर कोरिया फिर मिसाइल परीक्षण की तैयारी में जुटा है जिसकी ज़द में अमेरिका का पश्चिम भाग होगा. वैसे अमेरिका, कोरिया पर लगातर दबाव बनाए रखे है. वह आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध भी लगा चुका है. जबकि रुस और चीन की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं की गई.

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हालांकि अमेरिका किसी भी चुनौती के लिए तैयार खड़ा है. अमेरिका, कोरिया पर हमला करता है तो उस स्थिति में रूस और चीन की क्या भूमिका होगी अब यह देखना होगा. दोनों तटस्थ नीति अपनाते हैं या फिर कोरिया के साथ युद्ध मैदान में उतरकर चौथे विश्वयुद्ध के भागीदार बनते हैं. क्योंकि यह बात करीब साफ हो चली है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया में शीतयुद्ध के बाद की स्थिति परमाणु जंग की होगी! क्योंकि किम को यह अच्छी तरह मालूम है कि सीधी जंग में वह अमेरिका का मुकाबला कभी नहीं कर सकता है.

सैन्य ताकत के सामने किम की सेना और हथियार कहीं से भी टिकते नहीं दिखते. उस स्थिति में उत्तर कोरिया के सामने अमेरीका को बंदर घुड़की देने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता. युद्ध की स्थिति में कोरिया लम्बे वक्त तक नहीं टिक पाएगा. उस हालात में सब से अधिक बुरा परिणाम सनकी शासक किम को भुगतना पड़ेगा. इसके अलावा सबसे बुरा असर पूरी मानवता पर पड़ेगा.

परमाणु अस्त्रों के प्रयोग से विकिरण फैलेगा. दुनिया में अजीब किस्म की बीमारियों का प्रकोप बढ़ेगा. विकिरण की वजह से लोग विकलांग पैदा होंगे. धरती पर तापमान बढ़ेगा और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. परमाणु युद्ध की पीड़ा कोई जापान से पूछ सकता है. 1945 में विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने परमाणु हमले किए थे. जिसका नतीजा है कि 70 साल बाद भी लोग विकलांग पैदा होते हैं और उसका दंश पीढ़ियों को भुगतना पड़ रहा है. कोरिया के खिलाफ दुनिया को एक मंच पर आना चाहिए और उसकी परमाणु दादागिरी पर रोक लगनी चाहिए. वरना मानवीय हित संरक्षक संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्था को कड़े कदम उठाने चाहिए.

उत्तर कोरिया की तानाशाही पर वैश्विक देश एक मंच पर नहीं आते तो स्थिति विकट होगी. फिर दूसरे देशों पर भी लगाम कसनी मुश्किल होगी और दुनिया में परमाणु प्रसार की होड़ मच जाएगी. उत्तर कोरिया की बढ़ती तानाशाही की वजह से अमेरिका ने साफ तौर पर कह दिया है कि परमाणु प्रसार प्रतिबंध की बातें बेमानी हो रही है. परमाणु अप्रसार संधि का कोई मतलब नहीं रह गया है. अमेरिका की इस बात से साफ जाहिर हो गया है कि अब उसे इस संधि पर अधिक भरोसा नहीं रह गया है. दुनिया भर में आंतरिक सुरक्षा को लेकर संकट खड़ा हो गया है. स्थिति यह साफ संकेत दे रही है कि अगला विश्व युद्ध परमाणु अस्त्रों का होगा.

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