अवैध बूचड़खानों के बैन पर हंगामा क्यों ?
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शासन में आने के बाद से अब तक लगभग 300 से अधिक अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई हुई है.
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उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों के बंद कराने का काम तेजी से जारी है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शासन में आने के बाद से अब तक लगभग 300 से अधिक अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई हुई है. इसमें लखनऊ समेत, गाजियाबाद, मउ और प्रदेश के दूसरे कई शहर भी शामिल हैं. अवैध बूचड़खानों के बंद कराने का वादा भाजपा ने अपनी चुनावी घोषणा पत्र में भी किया था और प्रदेश में भाजपा सरकार आने के पहले ही दिन से अवैध बूचड़खानों पर कार्यवाई होने लगी.
हालांकि मीट व्यापार से जुड़े लोग और कई जानकार भी प्रदेश सरकार के इस फैसले को अजीबोगरीब तर्क या कहें कुतर्क से गलत साबित करते नजर आ रहें हैं और साथ ही साथ सरकार के इस फैसले को एक अलग चश्मे से भी देख रहें हैं.
बूचड़खानों पर बैन के खिलाफ लोगों का तर्क है कि इस तरह के बैन से इस व्यापर से जुड़े लाखों लोगों के सामने रोजगार का संकट आ जायेगा और साथ ही बैन के बाद तक़रीबन 11000 करोड़ के नुकसान का भी सवाल उठा रहे हैं. हालाँकि यहाँ यह जान लेना जरुरी है कि 11000 करोड़ के नुकसान की जो बात की जा रही है वो वैध बूचड़खानों से एक्सपोर्ट की रकम है न की किसी अवैध बूचड़खानों से, रही बात रोजगार के जाने की तो क्या हर उस चीज के प्रति नरमी बरतनी चाहिए जो लोगों को रोजगार दिलाती है, भले ही वो अवैध ही क्यों न हो? किसी भी अवैध चीज को केवल इस लिए जरूरी बताना की उनसे लोगों को रोजगार मिलता है, कही से तर्कसंगत नहीं लगता और इस नजिरिये से देखा जाय तो सभी गैरकानूनी चीजें कुछ लोगों को रोजगार तो देती ही हैं.
अवैध बूचड़खानों पर बैन क्यों जरुरी है
अवैध बूचड़खाने बिना किसी लाइसेंस के और बिना कोई टैक्स चुकाए अपना कारोबार करते हैं. लाइसेंस ना लेने का दूसरा मतलब ये है की इन बूचड़खानों में सुरक्षा को लेकर ना कोई मानकों का पालन होता है और ना ही इन बूचड़खानों से निकलने वाले वेस्ट मैटेरियल का सही तरह से डंपिंग की जाती है. अगर आप किसी बूचड़खाने के बाहर से भी गुजरें तो वहां की तस्वीर रोंगटे खड़े करने वाले होते हैं. आपकों जानवरों के खून और कंकाल बेतरतीब सड़कों के किनारे मिलेंगे और बात करें इन बूचड़खानों के आस पास रहने वाले लोगों की जिंदगी के बारें में तो वाकई उनकी जिंदगी नरकीय होती है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(NGT) ने कई बार इस मुद्दे पर पूर्व की राज्य सरकारों को अवैध बूचड़खानों को बैन करने को कहा था. NGT ने इन बूचड़खानों के बारे में जो चिंताएं थी उनके अनुसार इन बूचड़खानों से निकलने वाले जानवरों के खून किस हद तक गंगा, यमुना जैसी नदियों को प्रदूषित कर रही है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, साथ ही NGT ने यह भी कहा था की जहाँ यह बूचड़खाने मौजूद हैं वहां के आस पास की भूमिगत जल भी बुरी तरह प्रदूषित हो रही है .
मगर पूर्व की राज्य सरकारों ने पर्यावरण के दर्द को समझने से बेहतर कुछ लोगों की तुष्टिकरण को ही तरजीह दी. इन बूचड़खानों के पक्ष में खड़े लोग भले ही इससे होने वाले कुछ हजार करोड़ के लाभ को आवश्यक बता रहें हैं, मगर इन बूचड़खानों के होने से पर्यावरण को जो नुकसान हो रहे हैं, और इसके कारन इनके आस पास रहने वाले लोगों को जो नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है, क्या उसका कोई आकलन किया जा सकता है?
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