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Updated: 09 जुलाई, 2017 02:04 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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एक बार फिर से लालू यादव के 12 ठिकानों पर सीबीआई के छापे के बाद बिहार का सियासी पारा चरम पर पहुंच गया है. इस बार मामला सीबीआई द्वारा लालू परिवार के ऊपर एफआईआर दर्ज करने का है. सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में राज्य के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद सीएम नीतीश पर उनको पद से हटाने का दबाव बढ़ने लगा है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और भूतपूर्व उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी ने तो नीतीश से लालू के दोनों बेटों को कैबिनेट से बर्खास्त करने की मांग भी कर डाली है. यह पहली बार नहीं है जब नीतीश कुमार पशोपेश में हैं, इससे कुछ दिन पहले ही राजद नेताओं तथा कांग्रेस महासचिव के वक्तव्य को लेकर भी नीतीश कुमार असहज हो गए थे.

nitish kumarनीतीश कुमार पशोपेश में हैं

अब चूंकि उनके मंत्रिमंडल में सहयोगी तेजस्वी यादव पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी ही है कि वो कौन सी मजबूरियां हैं जो नीतीश कुमार को महागठबंधन से बाहर निकलने में बाधा डाल रही हैं, क्योंकि नीतीश कुमार ने अपनी छवि साफ सुथरी राजनीति करने वाले नेता की बनाई है. उनकी छवि ही उनकी पूंजी है. वे 12 साल से मुख्यमंत्री हैं और कई बरसों तक केंद्रीय मंत्री रहे हैं लेकिन उनके ऊपर किसी तरह के भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं. हाल में ही नीतीश कुमार जनता दल यूनाइटेड की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में महागठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस पर निशाना साधते हुए साफ शब्दों में कहा था कि वे न तो कांग्रेस पार्टी की तरह अपने सिद्धांतों को तिलाजंलि देते रहे हैं और न ही वे किसी के पिछलग्गू हैं.

नजर डालते हैं उन संभावित वजहों पर जो नीतीश कुमार को महागठबंधन से अलग नहीं होने देतीं-

नरेंद्र मोदी

जब 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया, तब इसके विरोध में नीतीश कुमार ने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था. उस चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली और उसके बाद से मोदी का कद बढ़ता ही चला गया. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए कोई ज्यादा स्पेस यहां पर नहीं दिखता.

भाजपा को सहयोगी पार्टियों की उतनी जरूरत नहीं

भाजपा काफी मजबूत स्थिति में है और उसकी सरकार पर कोई खतरा नहीं है. ऐसे में नीतीश कुमार की अहमियत न के बराबर हो जाएगी. शिव सेना इसका प्रमाण है.

राजनीतिक छवि

नीतीश कुमार का छवि ही उनका पूंजी है. बिहार में वो सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं. अपनी छवि को बरकरार रखने के लिए ही वो एनडीए से 17 सालों के बाद अलग हुए थे. अब महज़ तीन सालों के बाद अपना पाला फिर से बदलते हैं तो उनके छवि को नुकसान हो सकता है.

lalu-nitish_070917020312.jpgआरजेडी के दम पर ही चल रही है नीतीश की सरकार

राजनीतिक अस्तित्व

नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी राजनैतिक अस्तित्व की है. ये बात अलग है कि नीतीश कुमार बिहार में तीसरी बार मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान हैं लेकिन हर बार वो सहयोगियों के साथ ही सरकार बनाने में कामयाब हुए हैं. अकेले दम पर वो सरकार नहीं बना सकते. पिछले विधानसभा चुनाव में भी वो लालू के राजद से कम ही सीटें जीते थे.

ये सारी मजबूरियां नीतीश कुमार को महागठबंधन से अलग होने में बाधक प्रतीत होती हैं. लेकिन दूसरा सवाल यहां ये भी उठता है कि आखिर लालू प्रसाद के बेटों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं करते? ऐसा वो नहीं कर सकते क्योंकि उनकी सरकार आरजेडी के दम पर ही चल रही है. और अगर वो ऐसा करेंगे तो फिर महागठबंधन से बाहर आना पड़ सकता है जो इस समय नीतीश कुमार के लिए अनुकूल नहीं है.

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अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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