New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 दिसम्बर, 2016 11:27 AM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
  • Total Shares

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों केंद्र की मोदी सरकार से जानें क्यों बुरी तरह से खार-खाई दिख रही हैं. मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद से ही ममता बनर्जी केंद्र सरकार के प्रति अत्यंत आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं. वो केंद्र पर निशाना साधने के लिए तरह-तरह के दाँव-पेंच आजमाने में लगी हैं. पहले उन्होंने दिल्ली के स्वघोषित ईमानदार और महाविवादित मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के साथ आजादपुर में नोटबंदी के खिलाफ रैली की और फिर पटना से भी उन्होंने केंद्र पर निशाना साधा. यहाँ तक कि पटना से रैली करके लौटते समय हवा में ही उनके विमान में कुछ तकनीकी खराब आ गई और फिर लैंडिंग के लिए सुभाष चन्द्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से संभवतः तकनिकी कारणों के मद्देनज़र अनुमति मिलने में ज़रा देर हुई तो इसके लिए भी उन्होंने केंद्र को जिम्मेदार ठहरा दिया.

mamta_650_120416112237.jpg
ममता बनर्जी फाइल फोटो

उनकी पार्टी का कहनाम रहा कि विमान में खराबी होने के बावजूद उसे लैंडिंग के लिए अनुमति मिलने में देरी कराना ममता को मारने के लिए केंद्र की साज़िश थी. कहना गलत नहीं होगा कि नोटबंदी के बाद ममता बनर्जी का केंद्र के प्रति विरोध अब सिर्फ राजनीतिक विरोध तक नहीं रह गया है, बल्कि नफ़रत की सारी हदों को पार कर चुका है. इसी कारण वो तथ्यों-तर्कों को ताक पर रखते हुए किसी भी बात को केंद्र से जोड़कर आरोप लगाने में लग जा रही हैं. इसी तरह अब उन्होंने पश्चिम बंगाल में भारतीय सेना के अभ्यास को भी केंद्र की साज़िश करार दे दिया है.

ये भी पढ़ें- '70 साल की लूट' गिनाने में मोदी से हुई भारी भूल

दरअसल पिछले दो-एक दिनों से पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भारतीय सेना के कुछ जवानों की मौजूदगी है, इसे लेकर ममता बनर्जी ने केंद्र पर हमलावर रुख अपना लिया है. उनका कहना है कि केंद्र सरकार सेना के जरिए हमें डराने और तख्तापलट करने की कोशिश की जा रही है. इस बात को लेकर वो सचिवालय में ही डटी रहीं. उनका आरोप है कि प्रदेश सरकार किसी प्रकार की सूचना दिए बगैर ही बीते गुरुवार को राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर पलसित और दनकुनी के दो टोल प्लाजा पर सेना तैनात की गई है जो ‘अभूतपूर्व और गंभीर मुद्दा है.’ उन्होंने इसके विरोध करते हुए राज्य सचिवालय में ही डेरा डाल लिया. हालांकि, जब सेना द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि वो यहाँ सिर्फ अपने अभ्यास के लिए आई है, तो ममता बनर्जी के इस तथ्यहीन आरोप की पोल भी खुल गई.

सेना ने इस पूरे मसले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस तरह की प्रैक्टिस पूरे देश में आर्मी सालाना तौर पर करती रहती है. इस तीन दिवसीय अभ्यास का कल (शुक्रवार को) आखिरी दिन है. इसका मकसद यह होता है कि सेना को किसी आपात स्थिति में कितने वाहन उपलब्ध हो सकते हैं. रक्षा मंत्रालय के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (सीपीआरओ) ने बताया कि कुछ जगहों से जरूरी आंकड़े जुटा लिए गए हैं और आर्मी को वहां से हटने को कहा गया है. उन्हें कल दूसरी जगहों पर तैनात किया जाएगा. एक रक्षा प्रवक्ता ने कहा कि सेना साल में दो बार देशभर में ऐसा अभ्यास करती है जिसका लक्ष्य सड़कों के भारवहन संबंधी आंकड़े जुटाना होता है.

mamta_651_120416112302.jpg
 ममता बनर्जी फाइल फोटो

सवाल ये है कि आखिर ममता बनर्जी सेना को लेकर इतने डर और संशय में क्यों है? ये किसी दूसरे देश की सेना तो है नहीं, उसी देश की सेना है, ममता बनर्जी जिस देश की वासी हैं. भारतीय सेना ने हमेशा लोकतान्त्रिक व्यवस्था का सम्मान किया है, अब उस सेना के लिए ममता बनर्जी का ये कहना कि वो बंगाल में तख्तापलट करने आई है, न केवल निंदनीय बल्कि बेहद शर्मनाक भी है.

ये भी पढ़ें- क्या ममता का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा होगा?

गौरतलब है कि वो भारतीय सेना ही है, जो सीमा पर निरन्तर और अथक रूप से अपनी जान की परवाह किए बगैर अडिग रहती है ताकि इस देश के आम आदमी से लेकर ममता बनर्जी जैसे बड़े-बड़े सियासतदान तक चैनों-सुकून से अपने घरों में सो सकें. चीन-पाकिस्तान जैसे संदिग्ध पड़ोसियों से घिरे होने के बावजूद भी देश अगर निडर होकर प्रगति की तरफ बढ़ रहा है, तो सिर्फ इस विश्वास पर कि सीमा पर हमारी सेना के जवान खड़े हैं, उनके रहते भारत की तरफ कोई भी गलत नज़र से नहीं देख सकता. मगर, ममता बनर्जी शायद भारतीय सेना की इस महानता और अपरिमित योगदान को भूल गई हैं, तभी केंद्र के प्रति अपने राजनीतिक अंधविरोध में सेना को भी घसीटने का दुस्साहस कर रही हैं. चिटफंड घोटाले से लेकर अवैध बांग्लादेशियों को संरक्षण देने जैसे आरोपों के कारण ममता बनर्जी की छवि पहले से ही काफी ख़राब हो चुकी है, तिसपर उनकी ये अगंभीर और विवादास्पद गतिविधियाँ उनकी बची-कुची छवि को भी ले डूबेंगी. उचित होगा कि समय रहते वे सचेत हो जाएँ, अन्यथा जनता के दरबार में जानें पर इसका बड़ा खामियाजा उन्हें चुकाना पड़ सकता है.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय