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Updated: 10 अप्रिल, 2017 01:44 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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अब अनुशासहीनता और अपने विभागीय दायित्वों के प्रति गैर-जिम्मेदराना रुख अपनाने की महामारी ने देश की सेना और अर्धसैनिक बलों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. निश्चय ही यह अपने आप में बेहद गंभीर मसला है. एक ताजा मामले में नेवी के एक अधिकारी के साथ उसके अपने जहाज पर ही बद्तमीजी और मारपीट की घटना प्रकाश में सामने आई है. उड़ीसा के पास तैनात नेवी के जहाज आईएनएस संध्यायक के चार नाविकों ने अपने अफसर को पीटा. नाविकों ने अफसर के निर्देशों को मानने से इंकार कर दिया था और जब अफसऱ ने एक्शन लेने की बात कही तो उसे पीटा गया. इससे मिलता-जुलता एक मामला कुछ समय पहले मेरठ में भी सामने आया था. वहां थल सेना के जवानों ने अपने अफसरों को पीटा था. इसकी वजह यह सामने आई थी कि एक मुक्केबाजी के मैच में पराजित होने के बाद अफसर ने अपने जवान को डांटा. इससे खफा उस जवान ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर अपने अफसर को ही पीटना चालू कर दिया.army_650_041017010459.jpg

मुझे याद आती है 1983 के अंत में हुई वह घटना जब बिहार (अब झारखण्ड) के रामगढ कैंट में सिख रेजिमेंटल संतरे के कुछ जवानों ने ऑपरेशन “ब्लू स्टार” के बाद बहकावे में उत्तेजित होकर अपने ही सेंटर कमान्डेंट ब्रिगेडियर पुरी की गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी थी और हथियारों सहित भाग निकले थे. यह बात अलग है कि ये सरे दिग्भ्रमित जवान पकड़े गए, कोर्ट मार्शल हुआ और जेल गए. पर जो उत्पात उन्होंने मचाई वह सिख रेजिमेंट के स्वर्णिम इतिहास पर कालिख पोत कर चली गई. ये कुछ मामले हैं, जो इस ओर इशारा कर रहे हैं कि सेना में अनुशासनहीना काफी अरसे से पैर पसार रही है. इस मानसिकता को सख्ती से खत्म करने की अविलंब आवश्यकता है. इसके साथ ही उन काऱणों के गहन अध्ययन की भी आवश्यकता है,जिसके कारण सेना और अर्धसैनिक बलों में एक गंभीर समस्या पैदा हो रही है.

पिछले वर्ष 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की एक तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सीआरपीएफ के एक जवान की अपने अधिकारियों से अभद्रता करने से लेकर ड्यूटी में कोताही बरतने के सवाल पर चल रहे मामले की सुनवाई के दौरान साफ किया था कि सुरक्षा बलों में अनुशासनहीनता या अपने अफसर के निर्देशों की अवलेहना करने वाले जवानों पर सख्त कार्रवाई हो. सर्वश्रेष्ठ सेना...

निर्विवाद रूप से भारतीय सेना संसार की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में हैं. इसके तथा अर्ध सैनिक वलों के जवान अपनी बहादुरी और शौर्य़ के लिए सारे संसार में जाने जाते हैं. उनका कोई सानी ही नहीं है. यह भी सच है कि कुछ ही जवानों में भटकाव आया है. ये ही अनुशासनहीनता, काम चोरी और अफसरों के साथ मारपीट करते हैं. पर, यह सब पहले तो नहीं होता था. आखिर देश के लिए अपने प्राणों की आहुती देने के लिए सदैव तैयार रहने वाले जवानों में क्यों भटकाव दिखाई दे रहा है? अब ये क्यों आत्महत्या करने लगे हैं?

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वजह तनाव?

कुछ वर्ष पहले आईआईएम, अहमदाबाद ने अपने एक महत्वपूर्ण शोध में तनाव को एक बड़ा कारण माना था जवानों में अनुशासनहीनता के लिए. इस शोध रिपोर्ट का यह निष्कर्ष था कि जवानों के तनाव के लिए कम नींद, लंबी ड्यूटी, कम छुट्टी, रैंक के अनुसार ड्यूटी न मिलना, हमले की स्थिति में भी फैसला लेने का कम अधिकार, वेतन में असमानता, शिकायतों पर गौर न करना, खराब वर्दी पहनने से आत्मविश्वास कम होना, मेस का ख़राब खाना, अफसरों का गाली-गलौज परिवार के साथ वक्त गुजारने का कम मौका और अधिकारियों की गलत कारणों से प्रताड़ित किया जाना है.

यह कोई नहीं कह सकता कि सेना या अर्धसैनिक बलों में जो कुछ हो रहा है, उसको लेकर सरकार हाथ पर हाथ धर कर बैठी हुई है. कतई नहीं, पूर्व केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने अगस्त, 2015 में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि जवानों का तनाव कम करने के लिए योग, ध्यान, वरिष्ठों के साथ नियमित संपर्क, छुट्टियों को लेकर लचीली नीति और तनाव प्रबंधन जैसे उपाय किए जा रहे हैं.

इससे पहले साल 2012 में सांबा में जवानों और अधिकारियों के बीच झड़प के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने भी जवानों की तनाव को ही इसकी वजह बताया था. यानी जवानों में तनाव के उपाय तो खोजने होंगे.

स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद पहली बार सैनिकों ने गड़बड़ 1984 में की थी. आपरेशन ब्लू स्टार के बाद 7 -10 जून के दौरान देश के कई हिस्सों में सिख सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था. सिख रेजीमेंट के क़रीब 500 सैनिकों ने राजस्थान के गंगानगर ज़िले में ऑपरेशन ब्लू स्टार की ख़बरें सुनकर बग़ावत कर दी थी. इसी तरह से बिहार के रामगढ़ (अब झारखंड में), अलवर, जम्मू, थाणे और पुणे में सिख सैनिकों ने विद्रोह किया था. रामगढ़ में विद्रोही सैनिकों ने अपने कमांडर, ब्रिगेडियर एससी पुरी की हत्या कर दी थी. निश्चित रूप से देश के लिए वह बेहद संकट का काल था. देश को मालूम है कि विद्रोह करने वाले सैनिकों पर कठोर कार्रवाई भी हुई थी. हालांकि, उस विद्रोह को आजकल हो रही घटनाओं से सीधा जोड़कर तो नहीं देखा जा सकता. क्योंकि दोनों के कारणों और चरित्र में मूलभूत अंतर है. सिख रेजिमेंट के जवानों के विद्रोह का कारण उनके भावनाओं का  आहात होना था. पर किसी भी कारण से सुरक्षा बलों में विद्रोह और अनुशासनहीनता को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता.

और अब सेना और अर्धसैनिक बलों में घोर अनुशासनहीनता का एक और रूप सामने आ रहा है. बीते कुछ समय के दौरान पहले बीएसएफ के एक जवान, फिर सीआरपीएफ और अंत में सेना के एक जवान का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होता रहा. इन जवानों ने वीडियो के जरिए अपनी परेशानी के बारे में बताया. सेना के जवान यज्ञ प्रताप सिंह ने वीडियो में अपने सीनियर ऑफिसर पर उनके साथ भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप लगाया था. क्या इन्हें यह सब करना शोभा देता है? सारे देश ने इन वीडियों को देखा. पाकिस्तान में भी वीडियो को देखा गया. और तो और, उधर के अखबारों ने इन तमाम वीडियो पर चटखारे लेकर खबरें भी छापी. सेना के जवान का वीडियो वायरल होने के बाद सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने खुद इस मामले का संज्ञान लिया. रावत ने कड़े शब्दों में कहा कि जवान सोशल मीडिया पर वीडियो ना डालें. उन्हें अगर कोई शिकायत है तो वो सीधे मुझसे शिकायत करें. यक़ीनन जवानों को सोशल मीडिया से बचने की जरूरत है. सेना प्रमुख ने कहा कि हर आर्मी हेडक्वॉर्टर पर अब शिकायत पेटी लगाई जाएगी. इसके जरिए जवान अपनी शिकायत पहुंचा सकते हैं.

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जिस तरह से सेनाध्यक्ष रावत ने इस मामले पर संज्ञान लिया, उससे मैं प्रभावित हुआ हूं. सारा देश प्रभावित हुआ है. इन मामलों पर तुरंत एक्शन होना चाहिए. सेना या अर्धसैनिक बलों ही नहीं, बल्कि किसी भी सरकारी महकमें में अनुशासनहीनता के लिए कोई जगह नहीं हो सकती. पर ये भी देखने की जरूरत है कि कहीं किसी के साथ अन्याय भी नहीं हो. भेद भाव न वरता जाये. अभद्रता और गाली-गलौज न हो. दरअसल, पहले जवान मात्र ग्रामीण क्षेत्रों से और बहुत ही कम पढ़े-लिखे आते थे. नब्वे फीसदी या उससे भी ज्यादा हाई स्कूल तक भी नहीं पढ़े होते थे. अब शत प्रतिशत कम से कम हाई स्कूल और ज्यादातर यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट आ रहे हैं. उनका मूल चरित्र और महत्वाकंक्षाएं बढ़ गई हैं, परन्तु, सेना के अफसरों का परंपरागत व्यव्हार जैसा बदलना चाहिए था, नहीं बदला है. वह बदलना होगा तभी बात बनेगी. अगर सेना और अर्धसैनिक बलों की  ही बात हो तो मान कर चलिए कि यहां पर कुछ जवानों को अपने अफसरों से शिकायतें होंगी ही. कुछ आपने काम से संतुष्ट भी नहीं होंगें. सिर्फ भारतीय सेना में 12 लाख जवान हैं. इसमें अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी शामिल कर लिया जाए तो आंकड़ा बहुत ऊपर चला जाएगा. इसलिए छोटे-मोटे मसले तो कायम रहेंगे. अगर इनसे जुड़े लोगों के मसलों को हल करने का बेहतर सिस्टम तैयार हो जाए तो सब ठीक हो सकता है. अंत में मैं एक और पहलू पर अपनी बात रखूंगा. दरअसल  भारत में सेना के तीनों अंगों में करप्शन और हथियारों की खरीद में जिस तरह से बड़े अफसर फंस रहे हैं उसके चलते भी अफसरों को लेकर जवानों के मन में सम्मान का भाव घटा है. इसलिए सेना के अफसरों को भी अपनी गिरेबान में झांक लेना जरूरी है. रक्षा मंत्रालय को अधिकारीयों पर भी सख्ती बरतनी होगी.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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