ज्योतिषी और राजनीतिक विश्लेषक एक जैसे होते हैं
गुजरात चुनाव को लेकर चुनाव आयोग के पास शिकायतों का अंबार लग चुका है. सबसे संगीन आरोप राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मोदी को लेकर हैं. लेकिन दिलचस्प होगा यह जानना कि आयोग ज्योतिषियों और चुनाव विश्लेषकों को किस तरह देखता है.
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प्रोफेशनल चुनाव विश्लेषक ( Psephologist ) के तौर लंबी पारी खेल कर सियासत कर रहे योगेंद्र यादव ने गुजरात चुनाव के नतीजों को लेकर दो scenerio पेश किए हैं. गुजरात चुनाव के अंतिम चरण में वोट डाले जाने से ठीक एक दिन पहले उन्होंने किसी Exit poll की तरह एक खाका पेश किया है कि किस तरह बीजेपी राज्य में चुनाव हारने जा रही है. सच क्या है, ये तो 18 दिसंबर को पता चल जाएगा, लेकिन योगेंद्र यादव के ट्वीट ने खलबली तो मचा ही दी है.
My projections for Gujarat
Scenario1: PossibleBJP 43% votes, 86 seatsINC 43% votes, 92 seats
Scenario 2: LikelyBJP 41% votes, 65 seatsINC 45% votes, 113 seats
Scenario 3: Can't be ruled outEven bigger defeat for the BJP pic.twitter.com/5VIvk8EiyV
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) December 13, 2017
योगेंद्र यादव का ट्वीट मतदाताओं पर असर डालेगा या नहीं, लेकिन राहुल गांधी के इंटरव्यू को जरूर खतरा माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद उन्होंने जो कहा है उससे मतदाता बीजेपी को नहीं कांग्रेस को वोट डाल देगा. इसी के पलटवार में कांग्रेस कह रही है कि वोट डालने के बाद मोदी जो पैदल चले हैं उससे बीजेपी का वोट बढ़ जाएगा. अजीब है !
चुनाव आयोग की नजर में नेताओं के अलावा वे लोग भी रहते हैं जो जिनकी चुनाव पर टिप्पणी चर्चा का विषय बनती है. ज्योतिषी, टैरो कार्ड रीडर और चुनाव विश्लेषक. लेकिन, ये सब के सब चुनाव आयोग के लिए एक जैसे हैं. आयोग को एक ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर भी उतना ही विश्वास या अविश्वास है जितना राजनीति के जानकार किसी चुनाव विश्लेषक पर. शायद इसीलिए आयोग चुनाव प्रक्रिया के दौरान एक साथ सभी पर पाबंदी चाहता है.
ज्योतिषियों का प्रभाव?
चुनावों को लेकर भविष्यवाणी के मामले में श्रीलंका के ज्योतिषी बड़े कुख्यात रहे हैं. गुजरे जमाने के राज ज्योतिषियों की तरह वहां ज्यादातर नेताओं का कोई न कोई राजनीतिक ज्योतिषी जरूर होता है. भारत में भी काफी नेता मुहूर्त देख कर और ज्योतिषी की सलाह से ही कोई भी काम करते हैं, लेकिन श्रीलंका की तरह घोषित तौर पर तो बिलकुल नहीं. पिछले दिनों सुर्खियों में रहे राजस्थान के ज्योतिषी इसके अपवाद माने जा सकते हैं. जिन्होंने एक मंत्री के राष्ट्रपति बनने की भविष्यवाणी कर रखी थी.
श्रीलंका में ज्योतिषियों का भी हाल नेताओं जैसा देखने को मिलता है. किसी नेता के सत्ता में आने पर उसके ज्योतिषी के भी राजयोग शुरू हो जाते हैं और इसका बिलकुल उल्टा भी होता है. अगर किसी ज्योतिषी का नेता हार गया फिर उसकी तो खैर नहीं. यही नहीं ऊलजुलूल भविष्यवाणियों के लिए ज्योतिषियों को जेल की हवा भी खानी पड़ती है.
सब पर नकेल कसने की तैयारी...
श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सरकार थी तभी एक जाने माने ज्योतिषी ने देश में राजनैतिक परिवर्तन की भविष्यवाणी कर दी. श्रीलंका पुलिस ने इसे राष्ट्रपति के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी मानते हुए ज्योतिषी चंद्रगिरि बंडारा को जेल भेज दिया. तब बंडारा का कॉलम खासा लोकप्रिय हुआ करता था और वो रेडियो और टीवी शो भी होस्ट करते रहे. राजपक्षे के विरोधियों ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया था. सरकार को अपनी आलोचना के प्रति बेहद असहिष्णु बताते हुए विपक्षी नेताओं ने सरकार पर आलोचक पत्रकारों की हत्या और हमले के इल्जाम लगाये थे.
इसी साल श्रीलंका के एक ज्योतिषी विजिथा रोहाना विजेमुनी को भी अपनी भविष्यवाणी के चलते जेल जाना पड़ा था क्योंकि सोशल मीडिया पर एक वीडियो में उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना किसी हादसे या बीमारी के शिकार हो जाएंगे. विजेमुनी ने इसके लिए पहले 27 जनवरी और फिर 27 अक्टूबर की तारीख भी बताई थी.
भारत में विजेमुनी का नाम भले ही भूल गया हो लेकिन उनसे जुड़ी घटना शायद ही कोई भूल सकता है. विजेमुनी पहले सेना में रहे और 1987 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर राइफल के बट से हमले की कोशिश की थी.
राजीव गांधी पर पर हमले के बाद विजेमुनी का कोर्ट मार्शल हुआ - और सजा पूरी होने के बाद वो एक ज्योतिषी के रूप में लोगों के सामने आ गये. सवाल ये है कि क्या भारतीय मतदाताओं पर ज्योतिषियों का इतना असर होता है कि वो प्रभाव में आकर किसी का भी नाम सुन कर वोट दे दें?
चुनाव विश्लेषक
एग्जिट पोल पर सवाल उठते रहे हैं. एग्जिट पोल आते ही नेता नतीजों तक इंतजार करने की बात करते हैं. आप नेता अरविंद केजरीवाल को ताज्जुब इसी बात पर रहा कि बड़े बड़े पत्रकारों की भविष्यवाणी के बावजूद उनकी पार्टी पंजाब में कैसे हार गयी. एग्जिट पोल की अपनी कुछ सीमाएं हो सकती हैं, लेकिन वो ज्योतिष की तरह बिलकुल नहीं हैं.
यूपी विधानसभा चुनाव में किसी ज्योतिषी की बातें सच हुई या नहीं, नहीं मालूम, लेकिन बीजेपी के यूपी की सत्ता में आने को लेकर इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई की भविष्यवाणी तो सही साबित हुई.
पूरे ज्योतिष शास्त्र को ही कोरा बकवास मानना बहुत सही नहीं होगा क्योंकि ऐसा होता तो सूर्यग्रहण और चंद्रगहण की तारीख कभी मैच नहीं करती. असल में ये ज्योतिष के गणितीय पक्ष से जुड़ा होता है जहां 2+2 चार ही होता है, जबकि उसके फलितीय पक्ष में इसके तीन और छह दोनों होने की संभावना बढ़ जाती है. शायद इसलिए भी क्योंकि ज्योतिष में बहुत सारे नियम और शर्तें लागू होती हैं.
क्या ज्योतिष के फलितीय पक्ष से एग्जिट पोल और अनुभवी चुनाव विश्लेषकों की कोई तुलना हो सकती है? वक्त की कमी और सीमित संसाधनों के चलते अनुमान कभी भी सौ फीसदी सही नहीं हो सकते, लेकिन उन्हें बिलकुल ज्योतिषीय भविष्यवाणी मानना भी कहीं से ठीक नहीं कहा जा सकता.
इस मामले में श्रीलंका और भारत की स्थिति में काफी फर्क है. श्रीलंका में वोटर ज्योतिषियों की बातों को काफी तवज्जो देते हैं - और कुछ चुनावों में उनका असर भी माना गया. श्रीलंका में शुभ-अशुभ और शकुन-अपशकुन जैसी बातों से खासे लोग प्रभावित होते हैं जिसके चलते ज्योतिष का कारोबार खूब फलता फूलता है. ऐसी बातें भारत में भी हैं लेकिन राजनीति के मामले में तो यहां लोग इतने जागरुक हैं कि अगर किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी उनके विचारों से अलग हो तो तय है वे उस पर टूट पड़ेंगे.
यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान एक मीडिया ग्रुप की वेबसाइट के संपादक को जेल जाना पड़ा. माना गया कि उनकी वेबसाइट पर सर्वे रिपोर्ट से वोटिंग प्रभावित हुई होगी.
क्या आयोग का ध्यान कभी इस ओर गया है कि सूचना तकनीक और सोशल मीडिया के इस दौर में किसी इलाके में चुनाव प्रचार खत्म होने का अब कितना मतलब रह गया है? ये शायद उस दौर के लिए ठीक रहा होगा जब संपर्क का माध्यम चिट्ठियां और तार थे. अब तार तो खत्म ही हो चुका है और चिट्ठियां कोई लिखता भी नहीं - अगर ओपन लेटर को छोड़ दिया जाय तो.
क्या इस तरह के सर्वे का इतना बड़ा प्रभाव है जो नेताओं के भाषण के मुकाबले ज्यादा असरदार है? कई चरणों के चुनाव में एक इलाके में वोट पड़ रहे होते हैं तो किसी दूसरे इलाके में चुनाव प्रचार. क्या नेताओं की बातें वोट डालने वालों तक थोड़ा बहुत भी नहीं पहुंचतीं?
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