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Updated: 09 फरवरी, 2017 06:09 PM
पाणिनि आनंद
पाणिनि आनंद
  @panini.anand
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बुधवार का दिन संसदीय मर्यादाओं के लिए एक कदम और गर्त में जाने वाला था. मौका था राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धन्यवाद भाषण का. लेकिन इसकी परिणति सदन के बहिष्कार और कटुतापूर्ण टिप्पणियों के बीच संसदीय मर्यादाओं के और अधिक कमजोर होने के तौर पर हुई.

अपने धन्यवाद भाषण में प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर निशाना साधा. यहां तक कि सदस्यों पर निजी टिप्पणियां भी प्रधानमंत्री के भाषण में थीं. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि प्रधानमंत्री यह तक भूल गए कि वो सदन में हैं और उन्हें लोगों को नहीं, चेयर को मुखातिब रहते हुए अपना संबोधन देना है.

प्रधानमंत्री के वक्तव्य को सदन के कई विपक्षी सांसदों ने चुनाव भाषण तक करार दिया. ऐसा हुआ भी क्योंकि भाषण के कई हिस्से ऐसे थे जिन्हें प्रधानमंत्री अपनी चुनावी रैलियों के बोलते रहे हैं. ऐसी बातें, ऐसे तथ्य इस भाषण में रहे जो धन्यवाद और सांसदों के प्रश्नों का जवाब न होकर राजनीतिक वक्तव्य जैसे थे.

आहत उपराष्ट्रपति

सबसे दुखद यह रहा कि दोनों ही पक्षों ने सदन के सभापति, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी तक पर आरोप मढ़े. जहां सत्तापक्ष के सांसदों ने कहा कि आपके रहते सदन में ऐसा नकारात्मक माहौल है, वहीं विपक्ष के नेताओं ने भी नियमों की दुहाई देते हुए पक्षपात का आरोप लगाया.

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प्रधानमंत्री के भाषण के अंत में हामिद अंसारी ने अपनी चेयर से उठकर सदन को संबोधित करते हुए कहा, “मैंने आज दोपहर की कार्यवाही को काफी तकलीफ के साथ देखा. मैं किसी एक पर आरोप नहीं लगाना चाहता क्योंकि अगर इस पूरे प्रकरण को देखें तो सदन के सभी सदस्यों (सत्तापक्ष और विपक्ष) को इस तकलीफदेह स्थिति का आरोप साझा करना पड़ेगा.”

इसके बाद धन्यवाद भाषण पर वोटिंग की प्रक्रिया शुरू हुई. लेकिन जिस तरह से उपराष्ट्रपति को सदस्यों की टिप्पणियों और व्यवहार का सामना करना पड़ा, वो वोटिंग के पहले ही सदन छोड़कर चले गए. सदन में वोटिंग का काम उपसभापति कुरियन की उपस्थिति में पूरा हुआ.

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वोटिंग के समय सदन में संशोधन प्रस्तावों पर वोट देने के लिए विपक्ष का कोई सांसद मौजूद नहीं था. आखिर तक सभी सांसद वॉकआउट कर चुके थे. यह सदन में सरकार और संसदीय प्रक्रिया के लिए एक शर्मनाक स्थिति थी.

प्रधानमंत्री की गरिमा घटी

ऐसा कम ही हुआ है कि सदन में किसी प्रधानमंत्री को इतने उग्र और व्यक्तिगत हमले करते हुए पहले कभी देखा गया हो. विशेषकर धन्यवाद प्रस्ताव पर वक्तव्य देते हुए इस तरह के निजी आक्षेप पहले सदन में कभी देखने को नहीं मिले.

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प्रधानमंत्री ने सदन के वरिष्ठतम सदस्यों में से एक, मनमोहन सिंह के बारे में यह तक टिप्पणी कर डाली कि वो रेनकोट पहनकर बाथरूम में नहाने की कला में दक्ष हैं. इससे कांग्रेस के सांसद काफी उग्र हो गए और फिर मनमोहन सिंह सहित सभी पार्टी सांसद वॉकआउट कर गए.

इसी तरह की टिप्पणी प्रधानमंत्री ने जदयू सांसद शरद यादव और सीपीएम सांसद सीताराम येचुरी के बारे में भी की. शरद यादव जब बीच में कुछ बोलना चाह रहे थे तो पीठ को संबोधित करने के बजाय प्रधानमंत्री ने उनसे सीधे मुखातिब होते हुए कहा कि आप अभी बैठ जाइए, बाद में जो कहना हो, कह लीजिएगा. आपको तो मैं जीवनभर सुनूंगा.

सीताराम येचुरी के साथ ऐसी ही बात कहते हुए प्रधानमंत्री एक पायदान और नीचे उतर गए. वो बोले, “बाद में जवाब देना भइया, अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है. कहीं न कहीं से आ ही जाओगे.”

हालांकि प्रधानमंत्री के भाषण के बाद सत्तापक्ष ने नियमों की दुहाई देते हुए दोनों ही सदस्यों को बोलने नहीं दिया और सीधे वोटिंग की मांग की. विपक्षी नेताओं का मानना है कि जिस तरह के निर्णय प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों लिए हैं और जिस तरह का संकट आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को दिखाई दे रहा है, उसके चलते प्रधानमंत्री में ऐसी बौखलाहट देखने को मिल रही है.

संसदीय मर्यादा और परंपराओं में बुधवार का दिन एक पायदान और नीचे गिरने के तौर पर दर्ज हो चुका है.

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पाणिनि आनंद पाणिनि आनंद @panini.anand

लेखक आजतक वेबसाइट के एडिटर हैं.

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