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Updated: 29 जनवरी, 2017 04:57 PM
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पंजाब चुनाव में अरविंद केजरीवाल ही आम आदमी पार्टी का चेहरा हैं. कुछ वैसे ही जैसे यूपी और उत्तराखंड में अभी बीजेपी के नरेंद्र मोदी हैं - और पहले बिहार और पश्चिम बंगाल सहित दूसरे राज्यों में रहे. गोवा में बीजेपी ने असम से मिलता जुलता लेकिन थोड़ा अलग स्टैंड ले रखा है.

केजरीवाल के नाम पर कन्फ्यूजन मनीष सिसोदिया के बयान के बाद ज्यादा बढ़ा - वैसे अब तो केजरीवाल भी साफ कर चुके हैं कि वो पंजाब में मुख्यमंत्री के दावेदार नहीं हैं?

आखिर ऐसी क्या बात है कि आम आदमी पार्टी पंजाब में अपने डिप्टी सीएम की बात तो कर रही है, लेकिन सीएम कैंडिडेट के नाम पर सस्पेंस बनाये हुए है?

डर किस बात का?

आप की ओर से डिप्टी सीएम को लेकर भी सिर्फ जाति का खुलासा हुआ है. बताया गया है कि आप के सत्ता में आने पर जो डिप्टी सीएम होगा वो दलित समुदाय से होगा. इसके पीछे पंजाब का दलित वोट बैंक है जिसे केजरीवाल अपनी ओर खींचना चाहते हैं. पंजाब का दलित वोट बैंक यूपी और बिहार से बिलकुल अलग है. यही वजह रही कि पंजाब के होकर भी कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में अपना आधार बनाया.

बीजेपी में सीएम कैंडिडेट का नाम न बताए जाने की वजह कार्यकर्ताओं की गुटबाजी और कोई एक सर्वमान्य नेता न होना माना जाता है. बीजेपी को डर होता है कि कहीं एक जाति के नेता को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर दिया तो कहीं दूसरे समुदाय बिदक न जायें. हाल के चुनावों में दिल्ली और असम इसके अपवाद हैं. गोवा में भी बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी की जगह रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को बहाने से पेश कर रही है.

kejriwal-mann_650_012917044353.jpg"मैं नहीं बनूंगा पंजाब का सीएम..."

अरविंद केजरीवाल से जब इंडिया टुडे ने पूछा - क्या मुख्यमंत्री पंजाब से होगा? उन्होंने 'हां' में जवाब दिया. क्या मुख्यमंत्री पंजाबी होगा? इस पर भी उनका जवाब 'हां' ही रहा. लेकिन, क्या केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं होंगे? इस पर केजरीवाल ने जोर देकर नहीं कहा.

साथ ही, केजरीवाल ने एक और बात जोर देकर बोली - 'जो भी होगा, उसके लिए मेरे पर भरोसा रखना होगा क्योंकि चुनावी वादे पूरे करवाने की जिम्मेदारी मेरी ही है."

इस बीच केजरीवाल ने पंजाबी सीखने का क्रैश कोर्स कम्प्लीट कर लिया है. बताते हैं कि जाने माने वकील और आप नेता एसएस फूल्का ने एक महीने तक केजरीवाल की क्लास ली. इस दौरान फूल्का ने स्पोकेन पंजाबी के साथ साथ गुरुमुखी लिखना और पढ़ना भी सिखाया. एबीपी न्यूज से बातचीत में इसी बात को लेकर केजरीवाल ने फूल्का को गुरु भी बताया.

एक चर्चा ये भी है कि आप के सत्ता में आने पर फूल्का भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं. फूल्का के साथ साथ कॉमेडियन भगवंत मान भी रेस में आगे पीछे चलते रहे हैं.

कहां, मिले हुए हैं जी?

पंजाब की लांबी सीट से मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल उम्मीदवार हैं. ये बादल के रिश्तों और राजनीति का असली गढ़ है जहां उनके भाई-भतीजों सहित तमाम नातेदारों की भरमार है और कई लोग शिरोमणि अकाली दल का हिस्सा भी हैं. लंबी, बठिंडा संसदीय क्षेत्र में पड़ता है जहां से बादल की बहू हरसिमरत कौर सांसद और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री भी हैं.

इसी सीट से बादल को कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह भी ताल ठोक रहे हैं. कैप्टन के इस सीट पर बादल को चुनौती देने की भी एक खास वजह बताई जाती है. असल में केजरीवाल ये प्रचार कर रहे थे कि कैप्टन और बादल में समझौता हुआ है कि दोनों मिलकर आम आदमी पार्टी को बाहर कर दें. केजरीवाल के इसी दावे को खारिज करने के लिए कैप्टन ने लांबी से चुनाव लड़ने की घोषणा की.

आप ने इस सीट से जरनैल सिंह को मैदान में उतारा है. जरनैल सिंह दिल्ली से विधायक हैं और उनकी एक पहचान ये भी है कि उन्हें यूपीए सरकार में ताकतवर मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता उछाला था. तब वो पत्रकार हुआ करते थे.

तो लांबी सीट से दो सीएम कैंडिडेट तो हो गये लेकिन जरनैल के बारे में अभी कोई चर्चा नहीं है. हालांकि, वो केजरीवाल के सीएम कैंडिडेट के पैमाने से बाहर भी नहीं हो रहे हैं.

हाल में हुए द वीक-हंसा ओपिनियन पोल के मुताबिक पंजाब में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर सकती है. पोल के मुताबिक कांग्रेस को 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 49-51 सीटें मिलने की उम्मीद है, जबकि आम आदमी पार्टी को 30-35 सीटें हासिल हो सकती है. इस पोल के नतीजों में शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन को तीसरे स्थान पर रखा गया है जिसे 28-30 सीटें मिलने की संभावना है.

ओपिनियन पोल के बीच सोशल मीडिया पर भी पंजाब को चुनाव को लेकर खूब बहस हो रही है. इन बहसों में लोग अपने अपने तरीके से थ्योरी पेश कर रहे हैं.

फेसबुक पर पत्रकार नवीन पाल अपनी पोस्ट में लिखते हैं, "11 मार्च को पंजाब में वोटों की गिनती के बाद कुछ नया सामने आ सकता है. अकाली दल अगर सरकार बनाने में कुछ पीछे रहा और कांग्रेस आगे रही तो अकाली दल कांग्रेस को समर्थन दे सकता है. अंदरखाने की खबरों के मुताबिक दोनों पार्टियों की कोशिश है कि आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने से रोका जाए. विक्रम सिंह मजीठिया को जेल भेजने की धमकी को अकाली दल गंभीरता से ले रहा है. अभी जो हालात हैं उसके मुताबिक पंजाब में आम आदमी पार्टी के दूसरे स्थान पर रहने की उम्मीद है. सबसे ज्यादा सीटें पार्टी को मालवा इलाके में मिलने की उम्मीद है. राज्य की 117 सीटें में से 69 मालवा में हैं यानि सत्ता का रास्ता मालवा से ही निकलेगा."

नवीन पाल की पोस्ट पर पत्रकार मोहित मिश्रा का कमेंट भी है. मोहित लिखते हैं, "अकाली दल समर्थन दे सकता है... लेकिन लेने वाला भी तो होना चाहिए... खबर तो ये है कि ऐसे में राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी के नेता को बुलाएंगे और बादल विरोध पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ आएंगे... अकाली+बीजेपी खत्म हैं..."

एक तरफ पंजाबियत की दुहाई दी जा रही है तो दूसरी तरफ हवा में ताजगी की बात हो रही है. जिस पंजाब में हर युवा विदेश में बसने या कम से कम जिंदगी के खुशनुमा लम्हे गुजारने की हसरत रखता हो वहां आप की कामयाबी का काफी स्कोप है, बशर्ते बदलाव के नाम पर कांग्रेस अपनी जगह न बना पाये.

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