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Updated: 22 अक्टूबर, 2015 07:53 PM
कनिका मिश्रा
कनिका मिश्रा
  @cartkanika
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मोदी सरकार के मंत्री वी के सिंह के इस बयान पर कि अगर कोई कुत्ते को पत्थर मारे तो क्या इसके लिए सरकार जिम्मेदार है, बवाल मचा हुआ है. हो सकता है कि थोड़ी देर बाद सिंह का बयान आ जाए कि उनके शब्दों को गलत तरह से तोड़ा– मरोड़ा गया है या वो माफी मांग लें, ये कह कर कि उनकी जबान फिसल गयी. वैसे एक वर्ग विशेष की बात चलने पर जबान फिसलने का सिलसिला कोई नया नहीं है.

एक जमाने में गोधरा में हुए नरसंहार की बात चलने पर मोदी जी ने भी कहा था कि भाई दुःख तो तब भी होता है जब एक 'कुत्ता' गाडी के नीचे आ जाता है. कहीं पढ़ा था कि भला आदमी बोलने से पहले दस बार सोचता है लेकिन एक राजनेता वो होता है जो चुप रहने से पहले भी दस बार सोचता है. कहने का मतलब है कि नेताओं की ज़बान यूँ ही नहीं फिसलती बल्कि उसके पीछे एक दूरगामी सोच होती है.

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जब मोदी जी ने गोधरा की बात चलने पर कुत्ते के गाडी के नीचे आने का जिक्र किया था तब वो केवल एक राज्य के मुख्मंत्री थे. उनके इस बयान का चौतरफा विरोध तो हुआ लेकिन अगर आंकड़े देखे जाएँ तो कहा जा सकता है कि मोदी को अपने इस बयान से कभी कोई नुकसान नहीं हुआ. बल्कि लोकसभा और बाकी राज्यों में उनकी जीत के हिसाब से तो वो फायदे में ही रहे. जब वी के सिंह, एक दलित समाज के नन्हे मुन्ने बच्चों के जिन्दा जलाए जाने पर इतना असंवेदनशील बयान देते हैं तो ये जबान का फिसलना भर नहीं है. राजनेता अच्छी तरह जानते हैं कि इस तरह की घटनाएं दो वर्ग विशेष के संघर्ष का परिणाम हैं. वो ये भी जानते हैं कि उनका वोट बैंक किस वर्ग विशेष से आता है और उसे पक्का कैसे किया जाए. इस तरह के बयान एक मंझे हुए नेता की पहचान हैं और नेता संवेदना नहीं वोट देखता है.

गाय है तो एक चार पैरों वाला पशु ही, लेकिन उसके लिए हमारे नेताओं की संवेदना देखते ही बनती है. गाय के लिए वो मरने -मारने की बात करने लग जाते हैं, देश निकाला देने की बात करते हैं, एक घर के मुखिया की भीड़ द्वारा ह्त्या, वो भी केवल शक की बिनाह पर (ध्यान देने वाली बात है कि गौ-मांस पर हुई तीनों हत्याएं का आधार केवल शक था) का भी, दबी और खुली ज़बान से समर्थन करने लग जाते हैं. लेकिन वो ही राजनेता एक दलित के नौ महीने की लडकी और ढाई साल के लड़के के ज़िंदा जलाये जाने और उनके कोमल शरीर के मोम की तरह पिघल जाने के बाद भी, बड़े आराम से कह देते हैं कि अरे पागल हो आप, सरकार कुत्ते के पत्थर मारे जाने पर भी जिम्मेदार होती है क्या.

इंसान के बच्चों के मरने पर कुत्ते की बात करने वाले और एक जानवर के मरने के शक पर मरने- मारने की बात करने वाले, ये शातिर राजनेता कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं है.

हम, इस देश के रहने वाले, अगर अब भी ये सब देख और समझ नहीं पा रहे तो उन बच्चों के जलने में कुछ भागीदारी हमारी भी है.

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कनिका मिश्रा कनिका मिश्रा @cartkanika

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