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Updated: 09 फरवरी, 2017 08:49 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश, सभी पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है और इसका मुख्य कारण ये है कि राजनीतिक संवेदनशीलता से गहरी पैठ रखने वाला राज्य, उत्तर प्रदेश का प्रथम चरण का चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही शुरू हो रहा है. कहा भी ये जाता है कि जो पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विजय पाती है, वही पूरे प्रदेश में कब्जा करने में सफलता हासिल करती है. इस बात को सच मानते हुए कई पार्टियों, जिसमें बीजेपी भी सम्मिलित थी, ने कई महीने पहले ही अपना चुनाव प्रचार यहां से शुरू कर दिया था.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 136 विधान सभा सीटें हैं. पहले चरण में इस क्षेत्र की 15 जिलों की 73 सीटों पर 11 फरवरी को वोट डाले जायेंगे. अगर यहां के मुख्य मुद्दों की बात करें तो सांप्रदायिकता, जाट फैक्टर, कानून-व्यवस्था, विकास, गन्ना किसानों का भुगतान, मूलभुत सुविधाएं, सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी हैं.

बीजेपी यहां पर जाट और जाटव का साथ लेकर इस चुनाव में पैठ जमाना चाहती है. राजनीतिक एक्सपर्ट ये मान रहे हैं कि अन्य पिछड़ी जाति और सबसे पिछड़ी जाति के लोगों का झुकाव बीजेपी के तरफ जा सकता है.

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश कभी भी समाजवादी पार्टी का गढ़ नहीं माना जाता है, हालांकि पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी को ही सबसे ज्यादा सीटें इस क्षेत्र से मिली थीं. हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में समाजवादी पार्टी की स्थिति खराब हुई है. इसकी शुरूआत हुई थी 2013 की मुज़फ्फरनगर दंगो से, और उसके बाद कैराना और शामली से हिन्दुओं का पलायन और मथुरा का जवाहरबाग कांड धीरे धीरे समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी करने लगे. यहां का मुस्लिम वोट बैंक भी बसपा की तरफ झुकने लगा.  

लेकिन जैसे ही समाजवादी पार्टी का गठबंधन कांग्रेस से होता है, स्थितियों में सुधार बिलकुल दिखाई देने लगता हैं. अखिलेश यादव और राहुल गांधी जैसे ही इस क्षेत्र में सयुंक्त रोड शो और रैली करना शुरू करते हैं, न केवल इनके लीडर बल्कि वोटर खास कर युवा वर्ग में भी जोश देखने को मिलता है और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यहां के वोटर का झुकाव इस गठबंधन की तरफ जा रहा है. यहां तक कि इस क्षेत्र के मुस्लिम भी अब मान रहे हैं कि बीजेपी को रोकने में यही गठबंधन सफल हो सकता है. 

आइये एक नजर डालते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कौन सी पार्टी किस मोड़ पर खड़ी है-

बीजेपी

बीजेपी की नजर जाट वोट पर टिकी है, जिन्होंने 2014 के लोक सभा चुनाव में एक मत से वोट दिया था. 2012 विधान सभा चुनाव में भी जाटों ने बीजेपी को ही सपोर्ट किया था. लेकिन जाट रिजर्वेशन का मुद्दा इस बार बीजेपी को परेशान कर रहा है. जाटों का झुकाव इस बार राष्ट्रीय लोक दल की तरफ झुकता हुआ दिखाई दे रहा है. बीजेपी इस बार भी चाहता है कि वोटों का बंटवारा हो जिससे उसका बेड़ा पार हो जाये. योगी आदित्यनाथ जैसे लीडर भड़काव भाषण दे रहे हैं. साम्प्रदायिकता के आधार पर अगर वोटों का बंटवारा होता है तो बीजेपी को इस बार भी वैसा ही फायदा मिलेगा जैसा 2014 के चुनाव में मिला था. बीजेपी द्वारा ठुकराए गए कई कैंडिडेट राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और जो उसके खिलाफ जा सकती है. नोटबंदी के कारण इस इलाके में कई फैक्ट्री बंद हो गईं और कई लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा. इसका खामियाजा भी बीजेपी को उठाना पड़ सकता है.

सपा-कांग्रेस गठबंधन

लोगों का विश्वास धीरे-धीरे इस गठबंधन की तरफ झुकता हुआ दिखाई पड़ रहा है. आगरा रोड शो के दौरान भारी भरकम भीड़ इसको साबित करने के लिए काफी है.

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मुस्लिम अब ये समझ रहे हैं कि मोदी के मार्च को केवल यही गठबंधन रोक सकता है. वे जानते हैं कि अगर मोदी उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव जीत जाते हैं तो 2019 के लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी को जीतने से कोई नहीं रोक सकता. दलित वोटर जो बसपा के समर्थक माने जाते हैं, उनका भी झुकाव इसी गठबंधन के प्रति होता दिखाई पड़ रहा है.

बसपा

बहुजन समाज पार्टी की नजर दलित-मुस्लिम कॉम्बिनेशन पर टिकी हुई है. बसपा ने यहां से 67 मुस्लिम कैंडिडेट को खड़ा किया है. गन्ना किसानों के मुद्दा को भी बसपा भुनाने में लगी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों को उनकी समस्याओं से निजात दिलाने में मायावती की भूमिका को उम्मीद भरी नजरों से देखा जा रहा है. उत्तर प्रदेश और केंद्र की सरकार से त्रस्त गन्ना किसान मायावती के शासन को याद करते हैं, जब न केवल चीनी मिलों से समय पर गन्ने का भुगतान हो जाता था, बल्कि कीमत भी उचित मिलती थी.

राष्ट्रीय लोक दल

अजीत सिंह, भाजपा और बसपा का खेल यहां से बिगाड़ सकते हैं. उनकी पार्टी रालोद जाट और मुस्लिम वोट बैंक में सैंध लगा सकती हैं. बुजुर्ग जाट अभी भी अजित सिंह के भक्त माने जाते हैं. जाटलैंड में उन्हें मसीहा के रूप में देखा जाता है. रालोद के नेताओं को पाता है कि यहां से वो ज्यादा सीटें नहीं जीत सकते हैं, लेकिन बीजेपी का वोट वो जरूर काट सकते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य बीजेपी को हराने का है. बीजेपी और सपा दोनों दलों के कई विद्रोही रालोद के ट  िकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और इसका नुकसान इन दोनों पार्टियों को उठाना पड़ सकता है.

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आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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