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Updated: 06 फरवरी, 2017 02:10 PM
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'चिन्नमा' के नाम से मशहूर शशिकला ने आजतक एक भी चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन पार्टी में उनकी पकड़ काफी मजबूत है और अब वह राज्य के मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने वाली हैं. तमिलनाडु की सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत के करीब दो महीने बाद उनकी सबसे निकटतम सहयोगी और चिन्नमा के नाम से चर्चित वी.के.शशिकला का तमिलनाडु के नए मुख्या मंत्री के रूप में सत्ता की कमान सँभालने का मार्ग प्रशस्त हो गया है और संभवतः आगामी 2-3 दिनों में वो मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकती हैं.

पार्टी विधायकों ने 5 फ़रवरी को हुई बैठक में उन्हें अपना नेता चुना लिया है और साथ ही, मौजूदा मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम ने इस्तीफा- राज्यपाल को भेज भी दिया है. मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम ने स्वयं शशिकला का नाम विधायक दल के नेता के रूप में प्रस्तावित किया, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया. पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद शशिकला को 29 दिसंबर, 2016 को पार्टी महासचिव चुना गया था.

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शशिकला का राजनितिक सफर काफी दिलचस्प रहा है उन्हें कभी भी कोई बड़ी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ा है लेकिन जयललिता के निधन के बाद कुछ लोगों ने विरोध जरूर किया, हालाँकि जयललिता ने भी कुछ समय के लिए शशिकला से दूरी बना ली थी लेकिन फिर से साथ जुड़ गयी.

पहले भी हुआ है ऐसा...

वैसे ये पहला मौका नहीं है कि किसी नेता ने बिना पूर्व अनुभव के मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया हो. तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता पहली बार एम जी रामचंद्रन की मृत्यु के 4 साल बाद  तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी 1991 में, हालाँकि उन्हें पार्टी में और राजनीती का कुछ अनुभव तब तक हो गया था.

लालू प्रसाद के चारा घोटाले में गिरफ्तार होने के बाद 1997 में बिहार की मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी पत्नी राबड़ी देवी बनी थी.

अखिलेश यादव  ने 2009 में अपने राजनितिक करियर की शुरुआत शहंशाह के तौर पर की थी पर 2012 के असेंबली इलेक्शन के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. अरविन्द केजरीवाल ने 2012 में आप के साथ राजनितिक शुरुआत की और पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री 2013 में बने.

मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के मुख्यमंत्री 2014 के विधान सभा चुनाव के बाद बने, जिनको कोई खास राजनीतिक अनुभव नहीं था.

बिहार में तेजस्वी यादव, 2015 में बिहार विधान सभा के चुनाव के बाद उप मुख्यमंत्री बने, उन्हें भी कोई खास राजनितिक अनुभव नहीं था.  

राजीव गांधी भी बिना किसी पूर्व राजनीतिक अनुभव के इंदिरा गाँधी के मृत्यु के बाद 1984 में प्रधानमंत्री बने थे और पांच वर्ष तक सरकार चलाई थी.

ये भी एक दुर्भाग्य है की बिना राजनीति में समय बिताये और नहीं राजनीति की पर्याप्त समझ न रहते हुए, सत्ता के गलियारे से सीधे शीर्ष पद पर आ जाने से राज्य को और खुद को बहुत तरह की और भी समस्यों से दो चार होना पड़ता है.

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लेखक

जगत सिंह जगत सिंह @jagat.singh.9210

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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