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Updated: 26 जून, 2017 11:32 AM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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बात 1400 साल पुरानी है, तब अरब के हालात खराब थे. हिंसा, अराजकता अपने चरम पर थी. चूंकि ये इस्लाम के उदय के दिन थे तो लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मुसलमानों के आखिरी रसूल ने मस्जिद का प्रयोग किया. मस्जिद में लोग एकत्र होते और वहां से उनको दीन की शिक्षा और दीक्षा दी जाती. कहा जा सकता है कि तब के राजनीतिक परिदृश्य में मस्जिद एक बेहद विशिष्ठ माना जाता था. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक तरफ मस्जिद से इबादत होती तो वहीं दूसरी तरफ इससे पूरी मुस्लिम राजनीति की भी देख रेख की जाती.

कह सकते हैं शायद तब के परिदृश्य में राजनीति के लिए मस्जिद की जरूरत हो अब बिल्कुल नहीं है और भारत जैसे देश के सम्बन्ध में तो इसकी जरूरत बिल्कुल भी नहीं है. इस बार को अगर आप कश्मीर, मीरवाइज उमर फारूक़ और उग्र भीड़ द्वारा मारे गए डीएसपी अयूब पंडित के संबंध में देखिये आप आसानी से बात समझ जाएंगे.

कश्मीर, मस्जिद, पुलिस, भीड़कई तरह से एक दूसरे से मेल खाते हैं मीरवाइज उमर फारूक और बगदादी

ज्ञात हो कि अभी कुछ दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर में भीड़ ने नौहट्टा की जामिया मस्जिद के बाहर जम्मू-कश्मीर के डिप्टी एसपी मोहम्मद अयूब पंडित को पीट पीटकर मार डाला. डिप्टी एसपी मस्जिद परिसर के पास सिविल यूनिफार्म में ड्यूटी पर थे और वो मस्जिद के बाहर पत्थरबाजी कर रहे कुछ लोगों की तस्वीर ले रहे थे जिस पर कुछ लोग उनसे उलझ पड़े.

अयूब पंडित ने अपनी आत्मरक्षा में गोली चलाई जिससे तीन लोग घायल हो गए और इससे भीड़ उग्र हो गयी और उन्हें पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया.  बताया जा रहा है कि राज्य के प्रमुख अलगाववादी नेता मीर वाइज उमर फारूक़ उस समय मस्जिद के अंदर मौजूद थे जहां वो मस्जिद के अन्दर से लोगों को संबोधित करने वाले थे.

इस बात पर गौर करिए तो मिलेगा कि जब डीएसपी को उन बेरहम जानवरों द्वारा पीटा जा रहा था तब मीर वाइज उमर फारूक़ वहीं मौजूद थे और वो कश्मीर के आम लोगों के बीच नफरत और अपने अलगाववादी विचारों का संचार करने के लिए मस्जिद का प्रयोग करने वाले थे. इस बात से ये तो साफ है कि इनका चरित्र हाथी के दांत जैसा है यानी खाने का अलग और दिखाने का अलग. 

ये एक बड़ी ही हैरत में डालने वाली बात है. रमजान के दिनों में, मस्जिद के अन्दर एक मुसलमान के सामने एक मुसलमान को मुसलमानों द्वारा मारा जा रहा था. ये सब उस मुसलमान यानी मीर वाइज उमर फारूक़ के सामने हो रहा था जो अपने को कश्मीरी मुसलमानों का मसीहा और रहनुमा कहता है.

कश्मीर, मस्जिद, पुलिस, भीड़मस्जिद को राजनीति का अड्डा बनाकर एक अलग तरह का चरमपंथ दिखा रहे हैं मीर वाइज

इस पूरे प्रकरण में जो राज्य के प्रमुख अलगाववादी नेता मीर वाइज उमर फारूक़ का रवैया रहा है वो साफ दर्शाता है कि वो एक सोबर 'बगदादी' बनने की राह पर हैं. आइये ऐसे कुछ बिन्दुओं पर रौशनी डालें जिनको जानने के बाद ये साफ हो जायगा कि उमर, बगदादी बनने के मार्ग पर है.

तीखे भाषणों के लिए मस्जिद का इस्तेमाल

ऐसा इसलिए क्योंकि बगदादी भी मस्जिद का ही इस्तेमाल करके खाड़ी देशों में रह रहे आम मुसलमानों के बीच अपनी राजनीति चमकता है वैसा ही उमर भी कर रहे हैं. ये भी लगातार मस्जिद का इस्तेमाल करके कश्मीर की भोली भाली आवाम को अपने तीखे भाषणों से बहकाने का काम कर रहे हैं.

एक जैसा अंदाज

आप बगदादी को देख लीजिये, आप उमर पर नजर डाल लीजिये, दोनों की मांग के पहलू तो अलग हैं मगर अंदाज एक दूसरे से मिलता जुलता है.  

विदेश से फंडिंग

इस बात से हम भली भांति परिचित हैं कि आज कोई भी काम मुफ्त में नहीं होता और इसे के मद्देनज़र कई मुल्कों द्वारा बगदादी और उसके समूह आईएसआईएस के लिए फंडिंग की जा रही है. कश्मीर के परिपेक्ष में देखें तो हम पूर्व से लेकर आज तक उमर जैसे लोगों द्वारा लगातार आज़ाद कश्मीर की मांग देख रहे हैं जिसके लिए इनके द्वारा हिंसक आंदोलन किये जा रहे हैं. इसके बाद एक बात तो साफ है कि उमर को भी इस अलगाववाद की अच्छी फंडिंग मिल रही है.

लोगों को एकजुट करना

बगदादी दुनिया में रह रहे 'काफिरों' के खिलाफ मुसलमानों को एकजुट करना चाहता है और उनके अस्तित्व को मिटाना चाहता है. कश्मीर में यही रवैया उमर का है जो 'आजाद कश्मीर' के लिए लोगों को एकजुट कर रहे हैं और एक अच्छी फैन फॉलोइंग होने के चलते इन्हें लोगों का भरपूर सपोर्ट भी मिल रहा है.

कहीं सरकार की क्षरण तो नहीं है प्राप्त

ये बात थोड़ी अजीब है लेकिन भारतीय राजनीति का अवलोकन करें तो पता चलता है कि यहां सब मिले हुए हैं और सबको एक दूसरे का समर्थन प्राप्त है. कश्मीर में जो हो रहा है उसको देखकर ये बात अपने आप साफ हो जाती है कि बिना किसी समर्थन के भीड़ का इतना उग्र होना संभव नहीं है. अतः कहा जा सकता है कि कश्मीर में अलगाववादी और सरकार दोनों ही एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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