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Updated: 09 अगस्त, 2017 12:16 PM
गोपी मनियार
गोपी मनियार
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"बनिए का दिमाग और मियांभाई कि डेयरिंग" ये डायलॉग वैसे तो फिल्म 'रईस' का है, जो डॉन लतीफ के जीवन पर बनाई गई थी. हालांकि कुछ ऐसे ही हालात गुजरात के सेक्रेटेरिएट में भी देखने मिले, जिस वक्त वोटिंग हो रही थी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल को हराने के हर प्रयास करने में जुटे थे, तो वहीं अहमद पटेल खुद की जीत को आश्वस्त करने में लगे थे. पूरा दिन लडाई, दिमाग और डेयरिंग के बीच चल रही थी.

ahmed patel, gujarat

हालांकि उस वक्त अहमद पटेल के लिए संकट मोचन के तौर पर शक्ति सिंह गोहिल सामने आए. दरअसल बीजेपी अपने तीसरे उम्मीदवार बलवंतसिंह राजपूत को जिताने और अहमद पटेल को हराने कि लिये साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति करने में लगी थी. तो वहीं शक्तिसिंह अपने 44 सुरक्षित वोट को बचाने और कांग्रेस के बागी विधायकों के वोट को किस तरह रोका जाए उसकी प्लानिंग में लगे हुए थे.

जिस वक्त कांग्रेस के भोलाभाई गोहिल और राघवजी पटेल ने अपना बैलेट पेपर रिटर्निंग ऑफिसर के सामने ही अमित शाह को दिखाया, उन्होंने तुरंत ही वहां हो रही रिकॉर्डिंग में ही ये मुद्दा उछाला. ना सिर्फ मुद्दा उछाला बल्कि उस मुद्दे पर अड़े रहे. और वही कड़ी अहमद पटेल को जिताने के लिए अहम साबित हुई.

अहमद पटेल को जीत के लिये 43.5 वोट चाहिये थे, जबकि उन्हें 44 वोट कांग्रेस और उसके किसी एक साथ के जरिए मिले. जो दो वोट चुनाव आयोग ने रद्द किये उस वजह से 0.50 वोट मार्जिन कम हो गया. शक्तिसिंह गोहिल आखरी वक्त तक उसी बात पर अड़े रहे कि पहले इस कम्पलेन का हल निकाला जाए और फिर काउंटिंग की जाए.

shakti singh gohil, gujaratअहमद पटेल के लिए संकट मोचन बने शक्ति सिंह गोहिल

अहमद पटेल के संकट मोचन शक्तिसिंह गोहिल का कहना है कि संकट मोचन वो नहीं बल्कि उनके वो विधायक हैं जिन्हें बीजेपी के जरिए खरीदने की कोशिश की गई. जो गरीब आदिवासी होने के बावजूद 15 करोड़ जैसी बड़ी लागत में फंसे नहीं. हालांकि शक्तिसिंह गोहिल खुद पेशे से एक वकील हैं, वो जानते थे कि बीजेपी अगर किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी खड़ी करती है तो वो कैसे कानूनी भाषा में उसका जवाब दें.

पूरा दिन शक्तिसिंह गोहिल उसी पोलिंग स्टेशन में बैठे रहे. यहां तक कि पोलिंग खत्म होने के बाद भी शक्तिसिंह गोहिल काउंटिंग तक वहीं पर बने रहे. और इस मुद्दे को जोरों से यहां उठाते रहे. जिसपर आखिरकार चुनाव आयोग को फैसला लेना पड़ा और दो विधायकों के वोटों को रद्द किया गया.

साफ है कि, अहमद पटेल की जीत से गुजरात में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनबोल बढ गया है, जिसका सीधा फायदा दो महीने बाद होने वाले गुजरात विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को देखने मिलेगा.

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लेखक

गोपी मनियार गोपी मनियार @gopi.maniar.5

लेखिका गुजरात में 'आज तक' की प्रमुख संवाददाता है.

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