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Updated: 26 मई, 2017 07:19 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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‘रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था.’ कहीं न कहीं हममें से कई लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी ये कहावत अवश्य ही सुनी ही होगी. राज्य या तंत्र में जब भी कोई बड़ी विपत्ति आती है और शासक बिना किसी फिक्र के, बिना किसी की परवाह किये अपने में मग्न रहता है तो लोगों के मुंह से अपने आप ही ये कहावत निकल आती है. ‘रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था.' इस कथन को पुनः पढ़िये और रोम के जलने की कल्पना करिये. साथ ही ये भी सोचिये कि क्या वाकई रोम के जलने पर नीरो ने बांसुरी बजाई होगी या ये बात भी अन्य बातों की तरह कोरी लफ्फाजी और मिथक है.

हो सकता है इस कहावत को आप मिथक मान लें मगर इस कहावत पर सच्चाई जरा अलग है. कुछ इतिहासकारों का मत है कि हाँ ये हुआ था कहाँ जाता है कि जब रोम जल रहा था तो मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए नीरो ने अपने बाग़ में एक पार्टी का आयोजन किया था. उस पार्टी को रौशन करने के लिए नीरो ने रोम के कैदियों और गरीब लोगों को बाग के इर्द-गिर्द इकट्ठा किया और उन्हें जिंदा जला दिया.

बहरहाल वो रोम था, ये भारत है. रोम के भूगोल की तुलना भारत के सहारनपुर से नहीं की जा सकती. रोम की स्थिति दूसरी थी, सहारनपुर की स्थिति दूसरी है. लचर और निरंकुश तंत्र के सामने सहारनपुर जल रहा है. वर्तमान में सहारनपुर में जातिगत हिंसा का सबसे विकराल रूप देखने को मिल रहा है. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस के आला अधिकारी हालात सामान्य करने की कोशिश में जुटे हैं और इसके मद्देनजर उन्होंने 24 लोगों को हिरासत में लिया है. पुलिस ने इलाके के लोगों को अफवाहों से सावधान रहने को कहा है और सोशल मीडिया पर पाबन्दी लगाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है.

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के निरंकुश शासन से त्रस्त, उत्तर प्रदेश के लोगों को उम्मीद थी कि निरंकुशता और बढ़ते अपराध पर लगाम लगाकर नयी सरकार प्रदेशवासियों के हक में काम करेगी. प्रदेश के लोगों ने जब योगी आदित्यनाथ को अपने शासक के रूप में देखा तो उनको बड़ी राहत मिली और उन्हें लगने लगा कि हो न हो मगर अब जल्द ही प्रदेश के अच्छे दिन आ जाएंगे.

सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, जातिगत हिंसा, योगी आदित्यनाथ   सरकार ने लगाई सहारनपुर में सोशल मीडिया पर पाबन्दी

आज जो हालात है उनको देखकर बस यही महसूस हो रहा है कि आज उत्तर प्रदेश अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रहा है. अपराध अपने चरम पर है और धर्म और जाति के नाम पर होने वाली गुंडागर्दी का बोलबाला है.

विशेषज्ञों कि मानें तो आज सहारनपुर की जो स्थिति है, उसको देखते हुए एक बात बिल्कुल साफ है कि अब सहारनपुर विकास के मार्ग में कम से कम 5 साल और पीछे चला गया है. आज सम्पूर्ण क्षेत्र हिंसक गतिविधियों कि चपेट में है, पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है और स्थिति जस की तस बनी हुई है.  

पहले जान लें क्या था पूरा मामला

सहारनपुर में हिंसा की शुरुआत बीते 5 मई को हुई थी, जहाँ दलित और ठाकुरों के बीच हुई झड़प ने जातिगत हिंसा का रूप ले लिया और ये हिंसा विकराल हो गयी. ज्ञात हो कि बीती 5 मई को शब्बीरपुर के गांव सिमराना में महाराणा प्रताप की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. इस आयोजन में इलाके के ठाकुरों ने महाराणा प्रताप की शोभायात्रा औऱ जुलूस निकाला था. ठाकुरों का ये जुलुस दलितों को नागवार गुज़रा और उन्होंने इसका विरोध किया. विरोध के दौरान हालात बिगड़ गए और शब्बीरपुर में दलितों और ठाकुरों के बीच हुई तनातनी ने बेहद उग्र रूप धारण कर लिया.

इसके बाद दोनों पक्षों के बीच पथराव, गोलीबारी और आगजनी भी हुई. इस उग्र प्रदर्शन के दौरान एक युवक की पत्थर लगने से मौत हो गई जबकि लगभग एक दर्जन लोग घायल हो गए थे. जिसके बाद क्षत्रिय समाज के लोगो ने दलितो के घरो को तहस नहस कर दिया. कई लोगो को मारपीट कर घायल कर किया.

बताया जा रहा है कि हिंसा की मुख्य वजह एक अन्य विवाद भी है जिसमें शब्बीरपुर गांव के दलित अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करना चाह रहे थे और क्षत्रिय समाज ने इसका विरोध किया था जिसके बाद से दोनों समुदायों के बीच तना तनी बढ़ गई थी. तब से लेके अब तक दोनों में संघर्ष हुआ जा रहा है जो किसी भी सूरत पर थमने का नाम नहीं ले रहा.

सहारनपुर हिंसा पर कार्रवाई के तहत अब तक 24 लोगों को हिरासत में लिया गया है. इसके अलावा क्षेत्र में धारा 144 के बाद सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पाबन्दी लगा दी गयी है. इस पाबन्दी के बाद प्रश्न ये उठता है कि क्या हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में सोशल मीडिया पर पाबन्दी ही समस्या का समाधान है? तो शायद इसका उत्तर न में हो.

यदि सरकार कार्यवाही के नाम पर केवल संचार के एक माध्यम पर पाबन्दी लगा रही है तो ये बात साफ तौर पर ये दर्शाती है कि कहीं न कहीं हमारा तंत्र बेहद लचर और व्यवस्था भयंकर रूप से बिगड़ी हुई है. ध्यान रहे कि पूर्व में देश में असम, कश्मीर, मणिपुर समेत कई स्थानों पर हिंसा के मामले देखे गए हैं जहाँ राज्य सरकारों द्वारा दोषियों पर कार्यवाही बाद में हुई है पहले सम्पूर्ण क्षेत्र के लोगों के सोशल मीडिया हैंडल स्थिति सामान्य होने तक बंद कर दिए गए हैं.

अंत में हम यही कहेंगे कि सहारनपुर हिंसा के मद्देनजर यदि योगी सरकार यही सोच रही है कि सोशल मीडिया पर पाबन्दी के चलते स्थिति सामान्य हो जायगी तो ये उसकी बहुत बड़ी भूल है. उसे ये समझना होगा कि ये पब्लिक सब जानती है और सब देख रही है. उसने लचर कानून व्यवस्था के चलते पूर्व सरकार को सिरे से खारिज किया था और यूं ही पांच साल बीतते लम्बा वक्त नहीं लगता.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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