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Updated: 14 अक्टूबर, 2017 03:54 PM
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KBC के फुल फॉर्म को आपने कभी कुछ इस रूप में महसूस किया है - 'कौन बनेगा कांग्रेस-अध्यक्ष?' कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर इस तरह का सवाल न तो सोनिया गांधी और न ही कभी राहुल गांधी के सामने ये उठा होगा, पीठ पीछे बयानबाजी की बात और है. न ही, लालू प्रसाद को छोड़ कर, कभी मुलायम सिंह यादव, एचडी देवगौड़ा, एम करुणानिधि जैसे नेताओं को ही ऐसे सवालों से रूबरू होना पड़ा होगा. "बेटा वारिस नहीं होगा तो क्या भैंस चराएगा... ", ये महान वाक्य है तो लालू प्रसाद का लेकिन उन सभी राजनीतिक दलों के 'मन की बात' है जिन पर वंशवाद की प्रैक्टिस की नाममात्र भी तोहमत लगती रही है. उत्तर से दक्षिण तक जहां कहीं भी इस बात की जरा भी गुंजाइश है सभी को ये वाक्य पसंद है.

लंबे इंतजार के बाद अब वो वक्त भी आ चुका है जब राहुल गांधी की ताजपोशी होना पक्की बात मानी जा रही है - और सोनिया गांधी के सार्वजनिक संकेत के बाद तो इस पर शक शुबहे की आशंका भी नहीं बचती.

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राहुल गांधी की ताजपोशी. दरअसल, उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने को इसी रूप में देखा, समझा और बताया जाता है. अमेरिका में राहुल गांधी ने जरूर ये कहा था कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी वो लेने को तैयार हैं. जब यही सवाल दिल्ली में पूछा गया तो वो टाल गये. मगर, सोनिया गांधी ने इस बार इस सवाल का सही जवाब दिया.

अब तक पूछे जाने पर सोनिया गांधी का जवाब होता रहा - ये तो राहुल से ही पूछ लीजिए. लेकिन इस बार उन्होंने साफ कर दिया कि अब वक्त आ चुका है.

rahul gandhiसवाल तो सवाल होते हैं...

सोनिया ने पहली बार ऐसा कुछ कहा है. सोनिया ने कहा - 'ये सवाल कई सालों से पूछा जा रहा है कि राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष कब बनेंगे? इस सवाल का जवाब देने का अब समय आ गया है.'

सोनिया का जवाब कुछ उसी तरह है जैसा केबीसी सीजन 9 के प्रोमो में अमिताभ बच्चन को कहते हुए सुना गया - 'अब जवाब देने का वक्त आ गया है.'

इसी तरह केबीसी के पहले के एक सीजन में भी अमिताभ बच्चन बोला करते थे - 'आपका ज्ञान ही आपको आपका हक दिलाता है.'

राहुल गांधी के केस में नया और पुराना दोनों ही स्लोगन काफी सूट करता है. समझा जा सकता है एक दशक से ज्यादा समय तक अपने पॉलिटिकल एक्स्पेरिमेंट से राहुल गांधी ने जो भी ज्ञान अर्जित किया वो उन्हें उनका हक दिलाने वाला है. वैसे कांग्रेस ने गुजरात में अपने सोशल मीडिया कैंपेन में इसी अंदाज में सवाल पूछा है. गुजरात में कांग्रेस का सोशल मीडिया कैंपेन बीजेपी की नाक में दम किये हुए है - 'विकास गांडो थायो छे'. इसमें भी कांग्रेस की ओर से केबीसी की तर्ज पर ही सवाल पूछे गये हैं.

ये सवाल और उसके चारों ऑप्शन गुजराती में हैं. सवाल है 'विकास को क्‍या हुआ है?' ऑप्शन A है - 'विकास पागल हो गया है'. ऑप्शन B है - 'विकास पस्‍त हो गया है.' ऑप्शन C है - 'विकास डर गया है,' और ऑप्शन A है - 'उपरोक्‍त सभी.'

rahul gandhiसवाल विकास के एक मॉडल का...

तो अब मान कर चलना चाहिये इतने दिनों में अर्जित राजनीतिक ज्ञान अब ताजपोशी का हक जरूर दिलाने वाला है, लेकिन इसके साथ ही नये सवालों के जवाब देने का वक्त भी आ गया है.

31 अक्टूबर

सूत्र बन कर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की ताजपोशी की जो तारीख लगातार लीक कर रहे हैं, वो है - 31 अक्टूबर. पहले दिवाली बाद की बात कही जाती रही और अब ये तारीख बतायी जा रही है. माना जा रहा है कि तब तक राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी जाएगी.

31 अक्टूबर वही तारीख है जब इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते उनके सुरक्षा गार्डों ने उनकी हत्या कर दी थी. उसके बाद प्रधानमंत्री बन कर राजीव गांधी जब आम चुनाव में उतरे तो उन्हें बेशुमार बहुमत मिला.

rahul gandhi, sonia gandhiइंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि देते सोनिया और राहुल

अमेरिका यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बर्कले यूनिवर्सिटी में हिंसा की घटनाओं का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने इंदिरा गांधी का हत्या का उल्लेख किया था. राहुल गांधी का कहना था कि हिंसा को भला उनसे बेहतर कौन समझ सकता है. राहुल ने कहा कि हिंसा के चलते ही उन्होंने अपने पिता और दादी को खो दिया.

31 अक्टूबर 1984 की उस घटना को याद करते हुए राहुल गांधी ने कहा, 'जिन लोगों ने मेरी दादी को गोली मारी, मैं उन लोगों के साथ बैडमिंटन खेलता था. मुझे पता है कि हिंसा से क्या नुकसान हो सकता है. जब आप अपने लोगों को खोते हैं, तो आपको गहरी चोट लगती है.' इस बार 31 अक्टूबर को लेकर कांग्रेस की क्या क्या योजना है, देखना होगा.

हार में भी जीत

हर काम तय वक्त पर ही होता है. सही वक्त का मतलब माकूल माहौल होने से भी है. कहने वाले कह सकते हैं कि राहुल गांधी को बहुत पहले कांग्रेस की कमान संभाल लेनी चाहिये थी, लेकिन उनके फायदे के हिसाब से देखें तो ताजपोशी के लिए ये बेहतरीन समय हैं. राहुल गांधी अगर गुजरात चुनाव जीत जाते हैं तो कांग्रेस के लिए कहना ही क्या? अगर ये दोनों चुनाव कांग्रेस हार भी जाती है तो राहुल गांधी के लिए जीत जैसा ही लगता है.

फिलहाल राहुल गांधी के दोनों हाथों में लड्डू है. देखा जाये तो गंवाने के लिए कुछ खास नहीं है. गुजरात में कांग्रेस सत्ता से दो दशक से दूर है और हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरे हुए हैं. फिर तो सहज तौर पर कहा जा सकता है कि दोनों ही राज्यों में गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के प्रसंग में अगर यूपी चुनाव को याद करें तो हालात बहुत ज्यादा बदले नजर आएंगे. यूपी तो नेहरू गांधी परिवार का गढ़ रहा है. अमेठी और रायबरेली को तो उनकी विरासत ही समझी जाती है. उसी अमेठी में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को सीटों के लिए संघर्ष करते देखा गया. यूपी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल का नंबर अखिलेश के बाद आता था. अब देखिये मोदी के ही गढ़ गुजरात में लड़ाई मोदी बनाम राहुल गांधी के रूप में देखी जाने लगी है. अमेरिका रिटर्न होकर ही सही, ये क्या कम है कि राहुल गांधी को कांग्रेस के अंदर भी और बाहर भी सीरियसली लिया जाने लगा है! गुजरात के विकास को पागल कहा जाये या 'बेटा मॉडल' या 'दामाद मॉडल' बात पते की तो बस यही है कि राहुल गांधी के भी अच्छे दिन आने वाले हैं.

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