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Updated: 10 दिसम्बर, 2016 12:29 PM
अशोक सिंघल
अशोक सिंघल
 
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अपने नेता राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस की रणनीति एक बार फिर गड़बड़ा गई. कांग्रेस चाहती थी कि राहुल गांधी नोट बंदी के मुद्दे पर लोकसभा में अपना भाषण रखें. हालांकि राहुल गांधी ने भाषण को लेकर पूरी तरीके से तैयारी की हुई थी. मगर मौका राहुल गांधी के हाथ नहीं लग पाया और अपने भाषण से भूकंप लाने की बात करने वाले राहुल गांधी के मन में ही रह गया और वह लोकसभा में अपना भाषण नहीं दे पाए.

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राहुल नहीं दे पाए भाषण

पिछले कई दिनों से नोटबंदी को लेकर कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां संसद को चलने नहीं दे रही थी. जिस वजह से राहुल गांधी को मौका नहीं मिल पाया कि वह बात रख सकें. क्योंकि जो कांग्रेस की मांग थी कि नियम 56 या नियम 184 के तहत चर्चा होनी चाहिए. क्योंकि इस नियम के तहत चर्चा के बाद वोटिंग होती है. जिसको सरकार ने मानने से इनकार कर दिया. हालांकि सरकार की ओर से यह कहा गया कि वह नोटबंदी पर चर्चा करवाने को तैयार है. मगर कांग्रेस विपक्षी पार्टी अपनी इसी मांग पर अड़े रहे. जिस वजह से राहुल गांधी भी अपनी बात नहीं रख पा रहे थे.

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दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेशक सदन के भीतर नोट बंदी को लेकर नहीं बोले हों, मगर वह अलग-अलग मंचों पर नोटबंदी को लेकर विपक्ष पर हमला बोलते रहे हैं. यही वजह रही कि कांग्रेस को भी लगने लगा कि राहुल गांधी अपनी बात अभी तक किसी ऐसे मंच पर नहीं रख पाए हैं जिससे वह सरकार पर ठोस आक्रमण कर सकें. आखिर कांग्रेस के नेताओं को यह लगने लगा कि सदन ना चलने के कारण सरकार उल्टा कांग्रेस और विपक्ष को ही निशाना बना रही है. इसलिए कांग्रेस के नेताओं ने विपक्ष के साथ मिलकर यह रणनीति बना डाली कि वह लोकसभा की कार्यवाही चलवाकर नोटबंदी पर बहस करवाएं और उन्होंने अपनी पुरानी मांग को छोड़ते हुए स्पीकर के सामने प्रस्ताव रखा कि प्रश्नकाल स्थगित कर बिना किसी नियम के वह चर्चा को तैयार है.

इसके पीछे कांग्रेस की रणनीति ठीक है इसी बहाने उनके नेता राहुल गांधी को अपनी बात नोट बंदी को लेकर सदन में रखने का मौका मिल जाएगा. कांग्रेस की रणनीति को भांपते हुए सत्ता पक्ष ने कांग्रेस पर पलटवार किया और उनके सामने दो मांगे रख डाली. एक मांग सदन न चलने के कारण देश से माफी मांगने की बात कही गई. दूसरा लोकसभा में जितेंद्र रेड्डी द्वारा 193 के तहत जो बहस शुरू की गई थी. वहीं से यह चर्चा शुरू करने की बात कही गई. इस पर कांग्रेस और विपक्ष माना नहीं और जिसके चलते लोकसभा की कार्रवाई आज भी नहीं चल पाई और राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस की बनाई गई रणनीति धरी की धरी रह गई. राहुल गांधी द्वारा तैयार किया का भाषण भी वह लोकसभा में नहीं बोल पाए. और कांग्रेस मैं जो रणनीति बनाई थी सरकार को घेरने की असफल हो गई.

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कांग्रेस की रणनीति सदन चलाने के पीछे यह बताई जा रही है कि उनके नेता राहुल गांधी अपना भाषण नोट बंदी को लेकर तैयार करके  आए थे, जो कि वह सदन में बोलना चाहते थे. इस बात की भनक सत्ता पक्ष को लगी और उन्होंने विपक्ष की मांग नहीं मानी और खुद ही सुबह सुबह हंगामा करने लगे. सत्ता पक्ष को कहीं ना कहीं लग रहा था कि राहुल गांधी अगर आज सदन में बोलेंगे तो कांग्रेस हंगामा कर सकती है. सत्ता पक्ष को उसका जवाब देने का मौका नहीं मिल पाएगा. दूसरा संसद कि मंगलवार तक छुट्टियों के कारण राहुल को जवाब देने के लिए एक गैप आ सकता है. ऐसे में राहुल गांधी तो अपनी बात कह जाते मगर सरकार उनकी बातों का जवाब नहीं दे पाती. तो यह सरकार के सामने मुश्किल थी. जिस कारण सरकार ने कांग्रेस की रणनीति को फेल कर दिया. इस वजह से राहुल गांधी सदन के बाहर आकर मीडिया से बोले और मोदी के फैसले पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि बहुत बड़ा घोटाला है जिस पर सदन में आज बोलना चाहते थे मगर सत्ता पक्ष ने उनको बोलने नहीं दिया. राहुल गांधी का तो यहां तक कहना था कि अगर उनको बोलने का मौका मिलता तो भूकंप आ जाता.

बेशक सत्ता पक्ष ने कांग्रेस की रणनीति को फेल किया हो, लेकिन इसके लिए कहीं ना कहीं कांग्रेस की खुद की रणनीति पर भी सवाल उठता है कि इतने दिनों से संसद न चलने देने के बाद आखिर आज राहुल गांधी को लोकसभा में बोलने का निर्णय इतनी देर से क्यों समझ में आया. राहुल गांधी  सदन में बोलने की अपनी योजना पहले भी बना सकते थे. रणनीति बनाने में देरी भी की और वह भी  सत्तापक्ष को समझ में आ गई.

लेखक

अशोक सिंघल अशोक सिंघल

लेखक आजतक नैशनल ब्यूरो के एडिटर हैं

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