New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 16 अप्रिल, 2017 02:24 PM
  • Total Shares

यूपी की हार से बेहाल हुए विपक्षी दल अब एकता की बात करने लगे हैं. बाघ और बकरी एक ही घाट पर पानी पियेंगे. आग और पानी एक साथ रहेंगे. सपा बसपा एक ही चरनी में चरेंगे. यानी स्वभाव के विपरीत एकता करना मजबूरी भी तो है. कल तक एक दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले दल और उनके नेता अब गले में बाहें डाले घूमेंगे. बुआ भतीजे और बहन भाई की रिश्तेदारी भी हो जाएगी.

alliance_650_041617022127.jpgबिहार का गठबंधंन सफल रहा, लेकिन यूपी के समय ये बात गलत साबित हो गई जेडीयू नेता के सी त्यागी ने इसे आज की जरूरत बताया वहीं समाजवादी नेता आजम खान ने कहा कि एकता की ओर ये कदम तो बहुत पहले उठा लेना चाहिए था. अगर पहले ही ऐसा होता तो देश की सत्ता हमारे हाथों में होती. कांशीराम प्रधानमंत्री बने होते. सत्ताधारी दल का झूठ का राज नहीं होता. त्यागी कहते हैं बिहार में हमने जो जलवा दिखाया आरजेडी और जेडीयू जैसे दलों से ज्यादा नफरत सपा बसपा में नहीं है. लेकिन जब बिहार में ये प्रयोग सफल रहा तो यूपी में भी नई शुरुआत हो सकती है. रिकॉर्ड भी यही कहते हैं कि यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले 93 लाख ज्यादा वोट मिले. हम यहां साथ चुनाव लड़ते तो 320 सीटें हमारी होतीं. योगी का नामोनिशान नहीं होता. अभी भी देर नहीं हुई है. आगे आने वाले चुनावों में हम एकता की शक्ति का अहसास करा सकते हैं.  

चुनाव के दौरान तो ये दल अलग-अलग लड़ते रहे और खुश होते रहे. लेकिन अब जब मोदी की अगुआई में एनडीए की सरकार आ ही गई है और इन विपक्षी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़कर सामने से आते हार के दानव को झेल लिया तो सबकी अकल ठिकाने आ गई है. सभी सयानेपन की बातें करने लगे हैं. लेकिन पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए तो पनघट की डगर बहुत कठिन लगती है. क्योंकि अहम की मटकी बहुत जल्दी छलक जाती है. एकता का प्याला लब तक आते आते हाथों से रपट जाता है. इस एकता में सेंध लगने में कितनी देर लगेगी कहा नहीं जा सकता. क्या गारंटी है कि सीबीआई, आपराधिक मामलों की जांच और अन्य घपलों की जांच का डर दिखाकर इनको तोड़ा नहीं जा सकता. क्योंकि जब आर खोटा हो तो पार को क्या दोष दिया जाय.

बात चाहें यूपी के चुनाव की करें या लोकसभा चुनाव की. दोनों जगह अपने-अपने चूल्हों पर सियासी रोटियां पकाते रहे. दूसरों की रोटियों के आटे में जुलाब की गोलियां मिलाते रहे. हां, बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने भांप लिया था कि हार निश्चित है. लिहाजा इसके अलावा कोई और राह नहीं थी कि रसोई इकट्टा मिलकर तैयार की जाय. लेकिन यूपी उत्तराखंड में अपना ही सबक भूल गये. अब यूपी, उत्तराखंड और अन्य राज्यों के बाद उपचुनाव के नतीजों के बाद आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर इन दलों की चिंता गहरा गई है. ओखली में सिर देने के अलावा कोई और चारा नहीं. इन सारे दलों ने सत्ता के छुहारे चख रखे हैं. लेकिन कहा जाता है ना कि अक्ल बादाम खाने से नहीं ठोकर खाने से आती है. यहां तो अब एकता की बातें बना रहे इन दलों और उनके नेताओं ने धक्के पर धक्के खाये हैं. जब हड्डियां कीर्तन करने लगें तो एकता की बात करने के अलावा कोई और चारा नहीं. अब तो नेताजी से लेकर भय्या जी तक, बहनजी से लेकर बुआजी तक, दीदी ले लेकर दादा तक सबके जबान पर एक ही राग.. एकता में शक्ति है... 

ये भी पढ़ें-

मोदी के खिलाफ महागठबंधन का कीवर्ड फिलहाल तो EVM ही है

बसपा की सल्‍तनत संभालने के लिए मायावती ने ढूंढा उत्‍तराधिकारी !

लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय