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Updated: 03 मार्च, 2017 09:56 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बनारस का मिजाज ही ऐसा है कि सब कुछ अपने में सहेज लेता है. पूरा लखनऊ और पूरी दिल्ली उतर आयी है - और 4 मार्च को तो सुबह-ए-बनारस में शाम-ए-अवध का भी अक्स दिखने वाला है. ग्रह-नक्षत्रों की तरह सियासत के संसार का ये खास संयोग है जब यूपी चुनाव के सारे किरदार एक साथ बनारस में नजर आएंगे.

अखिलेश यादव-राहुल गांधी का रोड शो इस बार पक्का है, शायद इसलिए भी क्योंकि डिंपल यादव भी शामिल हो रही हैं. वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो शहर में अपने लोगों से मिलेंगे ही - दूसरी छोर पर कुर्सी की प्रबल दावेदार मायावती भी अपने एजेंडे के साथ हाजिर हो रही हैं.

डिंपल का रोड शो

हाल के दिनों में डिंपल के आक्रामक अंदाज को देखते हुए बनारस में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उनके हमलावर रुख का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है. कभी संसद में रुक रुक बोलने पर भी ससुर की खुशी समझ संतोष कर लेने वाली डिंपल ने 'कसाब' को लेकर अमित शाह के जुमले का नयी परिभाषा गढ़ कर जवाब दिया. खास बात ये रही कि डिंपल ने उसमें समाजवादी पार्टी का एजेंडा भी समझा दिया.

dimple-akhilesh_650_030317043349.jpgडिंपल हैं तो रोड सो पक्का है

जब बीजेपी की अर्जी के बाद चुनाव आयोग के फरमान पर एंबुलेंस सेवा से 'समाजवादी' शब्द हटाना पड़ा तो डिंपल ने 2000 के नोटों पर 'कमल' और 'हाथी' की तस्वीरों को लेकर सवाल उठाये. मायावती ने भी इस बात पर जरूर गौर फरमाया होगा क्योंकि उनके हाथियों को भी आयोग ने ढकवा ही दिया था. सुना है अब उन्हें चमकाया जाने लगा है.

अब बीजेपी ने बुर्के में वोट देने आने वाली महिलाओं के लिए महिला पुलिस की ड्यूटी लगाने की आयोग से मांग की है - डिंपल के तेवर को देखते हुए बनारस में उनका रिएक्शन देखने को मिल सकता है.

मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के चुनाव प्रचार से दूर रहने की स्थिति में डिंपल ही अखिलेश यादव के बाद समाजवादी पार्टी की स्टार प्रचारक हैं. चाहे परिवार के दूसरे गुट को कठघरे में खड़ा करने की बात हो या फिर राजनीतिक विरोधियों पर हमले का मामला, डिंपल पति के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं.

rahul_650_030317043441.jpgबनारस में बनारस की बात...

वैसे तो वाराणसी रोड शो में अखिलेश यादव और राहुल गांधी भी होंगे लेकिन ऐसा लगता है कि लीड रोल डिंपल के लिए ही लिखा गया होगा.

किला बचाने की चुनौती

गंगा मां के बुलाने पर गुजरात से वाराणसी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब खुद को यूपी का गोद लिया ही सही बेटा बता चुके हैं, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बनारस का ही किला बचाने की है - वैसे तो पूरा पूर्वांचल ही दांव पर लगा है. लोक सभा चुनाव के बाद हुए निकाय चुनावों में बीजेपी को झटके लगे थे. बीएसपी की मिली बढ़त उसके लिए चिंता वाली बात थी.

मामले की गंभीरता इसलिए भी समझ आ रही है क्योंकि मोदी अपने व्यस्त चुनावी अभियान का तीन दिन बनारस को देने वाले हैं. इन तीन दिनों में शहर के तमाम गली मोहल्लों से 2014 के लोक सभा चुनाव के बाद उन्हें गुजरते देखना दिलचस्प होगा.

वैसे तो बीजेपी के बड़े नेता दावा कर रहे हैं कि टिकट को लेकर नाराज नेताओं को मना लिया गया है, लेकिन शहर दक्षिणी से सात बार के विधायक श्यामदेव रॉय चौधरी दादा की बात उन्हें गलत साबित कर रही है. दादा ने साफ कर दिया है कि वो न तो बीजेपी छोड़ रहे हैं और न ही पार्टी के लिए प्रचार करने वाले हैं. वाराणसी लोक सभा की पांच में से तीन सीटों पर बीजेपी का कब्जा है लेकिन तीनों विधानसभा क्षेत्रों में बागी नेता हथियार डालने को तैयार नहीं दिखते.

modi_650_030317043528.jpgमां गंगा ने फिर बुलाया है...

बताते हैं कि संघ ने सलाह दी है कि मोदी कार्यकर्ताओं से मीटिंग करें ताकि उनकी बात मान कर कार्यकर्ता चुनाव प्रचार से मन से जुड़ें और बीजेपी को नुकसान से बचाया जा सके.

समझा जाता है कि वाराणसी में अपने संपर्क अभियान के साथ साथ मोदी नाराज नेताओं को बीजेपी के लिए सब भुलाकर काम करने के लिए कहेंगे.

रोहनिया में माया की रैली

शहर की भागमभाग और भीड़भाड़ से दूर मायावती की रैली रोहनिया में होगी. रोहनिया भी वाराणसी लोक सभा में पड़ता है और फिलहाल समाजवादी पार्टी की कब्जे वाली दो सीटों में से एक ये भी है.

मायावती की मऊ और गाजीपुर की रैलियों को देखते हुए माना जा सकता है कि बनारस उनके टारगेट नंबर वन तो प्रधानमंत्री मोदी ही होंगे. मऊ में बाहुबली और कटप्पा के जिक्र के साथ मायावती ने मुख्तार का बचाव किया था तो गाजीपुर में उन्होंने अमित शाह पर फिर हमला बोला.

mayawati_030317043623.jpgसबसे बड़ा कसाब तो...

मऊ और गाजीपुर के बाद बनारस में भी मुख्तार का बचाव और प्रधानमंत्री पर हमले की खास वजह भी है. पूर्वांचल के मुस्लिम वोट दिला देने के भरोसे के साथ जुड़े मुख्तार मऊ से चुनाव लड़ रहे हैं तो गाजीपुर का मोहम्मदाबाद उनका घर है. बनारस के साथ नाता ये है कि 2009 में वो बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं.

ये बनारस का ही कैनवास है जिसमें सिर्फ लखनऊ और दिल्ली क्या, सारे शूरमा यूं ही समा जाते हैं - ये शहर एक साथ उन सभी को हिसाब किताब बराबर करने का मौका दे रहा है.

8 मार्च को रंगभरी एकादशी है और उसी दिन बनारस में वोट डाले जाने हैं. ये वो खास मौका होता है जब काशीवासी भोले शंकर से होली खेलते हैं और उसके साथ ही होली की मस्ती शुरू हो जाती है.

चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आएंगे और उसके दो दिन बाद होली है. प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार केशरिया रंग से होली खेले जाने की बात कही है. मन की बात और है - शायद वे भूल जाते हैं कि राजनीतिक की ही तरह रंगों की दुनिया में दावेदार और भी हैं.

मोदी ने कहा था कि लोगों ने बीजेपी को बहुमत दे दिया है - और बाकी बचे दो दौर के चुनाव में उसे 'बोनस' भी वोट दे देना चाहिये. बात यहीं आकर अटक जाती क्या बनारस किसी को बोनस वोट देगा - और देगा भी तो किसे?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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