दया याचिकाओं पर क्रूर रहे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
34 में से मुखर्जी ने 30 दया याचिकाओं को खारिज कर दिया और 4 याचिकाओं को स्वीकार कर उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.
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अगले मंगलवार को प्रणब मुखर्जी भारत के राष्ट्रपति के पद से उतर जाएंगे. हालांकि अपने उत्तराधिकारी के लिए वो मौत की सजा को बदलने की मांग वाली दया याचिकाओं की ट्रे खाली छोड़ जाएंगे. अपने पांच साल के राष्ट्रपति पद के कार्यकाल में मुखर्जी ने 34 दया याचिकाओं का निपटारा किया है और अगर 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के फाइनेंसर याकूब मेमन के दूसरी बार भेजे गए दया याचिका को मानें तो 35. हालांकि उसकी दूसरी याचिका को भी ठुकरा ही दिया गया था.
34 में से मुखर्जी ने 30 दया याचिकाओं को खारिज कर दिया (31 अगर मेमन की दूसरी याचिका को शामिल करते हैं) और 4 याचिकाओं को स्वीकार कर उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. दया याचिकाओं को अस्वीकार करने का उनका रिकॉर्ड अपने तत्कालीन पूर्ववर्तियों में अद्वितीय है. साथ ही भारत के इतिहास में राष्ट्रपति आर वेंकटरमन के बाद उनका दूसरा नंबर आता है, जिन्होंने 45 दया याचिकाएं खारिज कर की थी.
दया याचिकाओं पर दया नहीं दिखाई
जब रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति का पद संभालेंगे तो उनके पास कोई भी पेंडिंग दया याचिका नहीं होगी. ऐसा तीन राष्ट्रपतियों के काल में नहीं हुआ है. 25 जुलाई 2012 को जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बने थे तब उन्हें कम से कम 10 लंबित दया याचिकाएं विरासत में मिली थी. जिसमें से एक राष्ट्रपति के आर नारायणन के समय (1997-2002) की भी थी.
दरअसल राष्ट्रपति के आर नारायणन और उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रपति अब्दुल कलाम (2002-2007) ने सबसे ज्यादा दया याचिकाओं पर अपने फैसले सुरक्षित रखे थे. या फिर अगर कानून आयोग के 2015 की रिपोर्ट के अनुसरा कहें तो उन्होंने- दया याचिकाओं के निपटारे पर ब्रेक लगा दिए थे.
राष्ट्रपति के आर नारायणन ने एक भी दया याचिका पर कार्रवाई नहीं की थी, जबकि राष्ट्रपति कलाम ने दो याचिकाओं का निपटारा किया था- एक को स्वीकार किया था और एक को खारिज कर दिया था.
नारायणन और कलाम के कार्यकाल के दस सालों में जितने ही ज्यादा दया याचिकाओं पर निर्णय नहीं लिए गए, उसके ठीक उलटा प्रतिभा पाटिल (2007-2012) ने अपने पांच सालों में दया याचिकाओं के निबटारे की लाइन लगा दी थी. देश की पहली महिला राष्ट्रपति को भारत का सबसे उदार राष्ट्रपति माना जाता है. पाटिल ने अपने कार्यकाल में 34 याचिकाएं स्वीकार की और पांच को खारिज किया था. इनके पहले सिर्फ दो ही राष्ट्रपतियों ने उनसे ज्यादा दया याचिकाएं स्वीकार की थी. राजेंद्र प्रसाद ने 180 और सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 57.
रबड़ स्टाम्पहमारे संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति कार्यकारिणी की सलाह पर कार्य करता है. मतलब प्रधान मंत्री और उनके कैबिनेट की सलाह पर. और इसलिए अक्सर ये कहा जाता है कि दया याचिकाओं या किसी भी अन्य मुद्दे पर राष्ट्रपति के फैसले सत्ताधारी पार्टी के पसंद- नापसंद के रूप में देखे जाने चाहिए.
हालांकि, राष्ट्रपति मुखर्जी, पाटिल, कलाम और नारायणन के कार्यकाल के 20 साल कांग्रेस (2004-2014) और भाजपा (1998-2004, 2014-अबतक) के नेतृत्व की सरकारों के बीच लगभग समान रूप से विभाजित किए गए हैं. इसके अलावा संविधान ने राष्ट्रपति को दया याचिका पर कार्रवाई करने की कोई समय सीमा तय नहीं की है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया जिसमें कहा गया है कि- दया याचिका का निपटारा करने में अत्यधिक देरी पूरी तरह से मौत की सजा के लिए आधार हो सकती है. और इस तरह कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से दया याचिकाओं के निपटारे की समय-सीमा को लेकर कुछ प्रतिबंध सेट किए हैं.
मां की दया दिखाई जिसके कारण राष्ट्रपति किसी दया याचिका पर कार्य करने से इनकार कर देते हैं और नारायणन और कलाम के कार्यकाल के दौरान ये सबसे ज्यादा देखा गया था. हालांकि कुछ दुर्लभ मामलों में प्रणब मुखर्जी ने सरकार की इच्छा के विपरीत चार लोगों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था.
राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं पर कैसे कार्रवाई की-विधि आयोग से एकत्रित किए गए आंकड़ों के आधार पर बताते हैं कि भारत के राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं के साथ क्या किया:
-राजेंद्र प्रसाद ने सिर्फ एक ही दया याचिका खारिज की जबकि 180 स्वीकार कर ली थी.
-सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 57 दया याचिकाओं को स्वीकार कर दिया था. उन्होंने एक भी याचिका को खारिज नहीं किया था.
-जाकिर हुसैन ने 22 दया याचिकाओं को स्वीकार किया था. उनके कार्यकाल में भी किसी को फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचाया गया.
-वीवी गिरि ने भी कोई दया याचिका अस्वीकार नहीं की थी और तीन याचिकाएं स्वीकार कर ली थी.
-फकरूद्दीन अली अहमद और एन संजीव रेड्डी के सामने एक भी दया याचिका नहीं आई थी.
-ज्ञानी जैल सिंह ने 30 दया याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया था और केवल दो को ही स्वीकार किया था.
-वेंकटरामन ने रिकॉर्ड 45 दया याचिकाओं को खारिज किया था. उन्होंने पांच याचिकाओं को स्वीकार किया था.
-एसडी शर्मा ने सभी 18 याचिकाओं को खारिज कर दिया.
चुप्पी से दिया जवाब
-के.आर. नारायणन ने सभी दया याचिकाओं को लंबित रखा था.
-एपीजे कलाम ने सिर्फ दो याचिकाओं पर ही निर्णय दिया था, एक को खारिज कर दिया और दूसरे को स्वीकार किया.
-प्रतिभा पाटिल ने 34 दया याचिकाओं को स्वीकार किया और पांच को खारिज कर दिया.
-प्रणव मुखर्जी ने 30 दया याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया और चार को अनुमति दी थी.
दया याचिका कैसे तय होते हैं-जब सुप्रीम कोर्ट किसी को मौत की सजा सुना देती है तो वो कैदी केंद्रीय गृह मंत्रालय, जेल अधिकारियों के जरिए या फिर राज्य के राज्यपाल के माध्यम से सीधे राष्ट्रपति तक पहुंच सकता है. इसके बाद राष्ट्रपति केंद्रीय कैबिनेट की राय मांगते हैं. कुछ मामलों में राष्ट्रपति अधिक स्पष्टीकरण के लिए गृह मंत्रालय की सिफारिश वापस भेज सकते हैं.
एक बार गृह मंत्रालय ने सिफारिश पेश की तो राष्ट्रपति उसके अनुसार दया याचिका पर फैसला करते हैं. हालांकि इसके लिए कोई निर्धारित समय सीमा नहीं है जिसके भीतर राष्ट्रपति को कार्य करना चाहिए.
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